2 दिसंबर 2014
डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर द्वारा पांचवां द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2014-15
मौद्रिक और चलनिधि उपाय
वर्तमान और उभरती हुई समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि :
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चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीति रिपो दर को 8.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए;
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अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को उनकी निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 4.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए;
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बैंक-वार निवल मांग और मीयादी देयताओं के 0.25 प्रतिशत पर ओवर नाइट रिपो के अंतर्गत चलनिधि तथा बैंकिंग प्रणाली की निवल मांग और मीयादी देयताओं के 0.75 प्रतिशत तक 7-दिवसीय और 14-दिवसीय रिपो के अंतर्गत चलनिधि उपलब्ध कराना जारी रखा जाए।
- चलनिधि की आसान पहुंच के लिए एक-दिवसीय सावधि रिपो नीलामियां और प्रत्यावर्तनीय रिपो नीलामियां जारी रखी जाएं।
इसके परिणामस्वरूप चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर 7.0 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा दर (एमएसएफ) और बैंक दर 9.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तनीय बनी रहेंगी।
वैश्विक अर्थव्यवस्था
2. सितंबर 2014 के चौथे द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य से वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी रही है, हालांकि हाल में कच्चे तेल की कीमतों में तीव्र गिरावट का वैश्विक वृद्धि पर निवल सकारात्मक प्रभाव होगा। संयुक्त राज्य अमेरिका में मजबूत घरेलू उपभोग, बढ़ते निवेश और औद्योगिक कार्यकलाप से काफी सुधार हो रहा है। यूरो क्षेत्र में आर्थिक मंदी के कारण विपरीत परिस्थितियों से औद्योगिक उत्पादन और निवेश भावना में कमजोरी जारी है। जापान में मजबूत निर्यात के कारण फिर से वृद्धि बढ़ सकती है, इसमें आंशिक रूप से मात्रात्मक और गुणात्मक सहजता से सहायता मिली जिसके कारण येन का अवमूल्यन हुआ है। चीन में निराशाजनक कार्यकलाप और अभी भी जारी कम मुद्रास्फीति ने पीपल बैंक ऑफ चाइना को दर कम करने के लिए प्रेरित किया है। अन्य प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में बढ़ी हुई मुद्रास्फीति, कम पण्य वस्तु कीमतों, गिरती श्रम बाजार परिस्थितियों और अवरुद्ध घरेलू मांग से वृद्धि के लिए अपेक्षित जोखिम की तुलना में अधिक जोखिम बढ़ गए हैं।
3. यूएस फेडरल रिज़र्व द्वारा आस्ति खरीद बंद करने के बावजूद भी वित्तीय बाज़ार उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में उदार मौद्रिक नीतियों से प्राप्त होने वाली पर्याप्त चलनिधि से सामान्य रूप से गतिशिल रहे हैं। प्रतिलाभ की तलाश में वैश्विक इक्विटी बाज़ार नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं और निवेशक स्वर्ण और पण्य वस्तुओं से बच रहे हैं। पूंजी प्रवाह उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की ओर है जो अक्टूबर माह के पूर्वार्द्ध में बाज़ार में हुई हलचल से हासिल किया गया है, हालांकि बुनियादि तत्वों के आधार पर कुछ भेदभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दे रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का आकलन
4. वर्ष 2014-15 की दूसरी तिमाही में घरेलू कार्यकलाप कमज़ोर रहे हैं और हल्की खरीफ फसल के कारण तीसरी तिमाही में भी गतिविधि मंद रहने की संभावना है। उत्तर-पूर्व में मानसून वर्षा में कमी से दक्षिणी राज्यों को छोड़कर रबी की फसल की उगाई अवरुद्ध हुई है। प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण के उचित स्तरों के बावजूद रबी की फसल से वर्ष की शुरुआत में खरीफ उत्पादन में हुई कमी की क्षतिपूर्ति करने की संभावना नहीं है और परिणामस्वरूप वर्ष 2014-15 में कृषि वृद्धि मंद रहने की संभावना है। ग्रामीण मज़दूरी वृद्धि में मंदी के साथ इसका ग्रामीण उपभोग मांग पर दबाव बन रहा है।
5. सितंबर में वृद्धि के बावजूद दूसरी तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि सितंबर में नकारात्मक गति के साथ 1.1 प्रतिशत रही, यह पिछली तिमाही में दर्ज किए गए सुधार को बनाए रखने में असमर्थ है। पूंजीगत वस्तुओं और उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में दूसरी तिमाही में लगातार मंदी ने कमज़ोर समग्र घरेलू मांग दर्शाई। तथापि, हाल में मुख्य क्षेत्र के कार्यकलाप, वाहनों की बिक्री और खरीद प्रबंधक सूचक संभावित कार्यकलाप में सुधार दर्शाते हैं। दूसरी तिमाही में निर्यात ने औद्योगिक कार्यकलाप मंदी का प्रतिरोध किया किंतु इसमें आगे भागीदार देश की वृद्धि से सहायता की आवश्यकता है।
6. सेवा क्षेत्र में, अक्टूबर का खरीद प्रबंधक सर्वेक्षण नए कारोबार में गिरावट की ओर संकेत करता है। इसके विपरीत पर्यटकों का आगमन और घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय कार्गो गतिविधियों ने सुधार दर्शाया है। इस प्रकार सेवा क्षेत्र के विभिन्न घटक मिश्रित संकेत दे रहे हैं।
7. समग्र आर्थिक गतिविधि में संधारणीय वृद्धि के लिए निवेश में बढ़ोतरी महत्वपूर्ण है। जबकि कुछ क्षेत्रों में कम क्षमता उपयोग निरुत्साहित कारक रहा है, कारोबार विश्वास और निवेश आशय में हाल के मजबूत सुधार से सहायता मिलनी चाहिए। इस संदर्भ में सरकार के प्रयासों के बावजूद अभी भी अवरुद्ध परियोजनाओं को पुनरुज्जीवित करने की धीमी गति नीतिगत वरीयता को आवश्यक बनाती है, यद्यपि वित्तीय प्रणाली में दवाब को कम करने के लिए जारी प्रयासों से परिकल्पित निवेश वृद्धि के वित्तपोषण के लिए संसाधन उपलब्ध होंगे।
8. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट होने के कारण राजकोषीय दृष्टिकोण बेहतर होना चाहिए किंतु कमज़ोर कर राजस्व वृद्धि और धीमी विनिवेश गति राजकोषीय लक्ष्यों और अंतिम राजकोषीय समायोजन की गुणवत्ता की संभावित उपलब्धि के बारे में अनिश्चितता दर्शाती है। तथापि, सरकार इस पर बने रहने के लिए दृढ़ संकल्प प्रतीत होती है।
9. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापित खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर के चौथे द्वि-मासिक वक्तव्य से तीव्र गति से कम हुई है। यह कुछ हद तक क्षणिक कारक जैसे अनुकूल आधार प्रभाव और वर्ष के इस समय पर फलों और सब्जियों की कीमतों में सामान्य नरमी को दर्शाता है। दूसरी तरफ प्रोटीनयुक्त मदों जैसे दूध और दालों पर ऊपरी दबाव बना हुआ है जो आपूर्ति और मांग में संरचनात्मक बेमेल को दर्शाते है। विद्युत जैसे इनपुट में पर्याप्त प्रशासित कीमत संशोधन के अभाव से ईंधन समूह में मुद्रास्फीति में नरमी को योगदान मिला है।
10. गैर-खाद्य गैर-ईंधन श्रेणी में सितंबर में मुद्रास्फीति व्यापक रूप से कम हुई। अक्टूबर में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में नरमी से परिवहन और संचार में कीमत दबाव में राहत मिली तथापि, कपड़ों और बिस्तरों, आवास और अन्य विविध सेवाओं की कीमतों के संबंध में ऊपरी दबाव बने हुए हैं जिसके परिणामस्वरूप अक्टूबर माह के लिए गैर-खाद्य गैर-ईंधन मुद्रास्फीति पिछली माह के अपने स्तर और हेडलाइन मुद्रास्फीति से ऊपर बनी हुई है। सामान्य रूप से खरीदी जाने वाली मदों जैसे सब्जियों की कीमतों में गिरावट आने से सर्वेक्षण आधारित मुद्रास्फीतिजनक प्रत्याशाएं कम हो रही हैं किंतु फिर भी ये न्यून दोहरे अंकों में हैं। प्रशासित कीमत सुधार प्रभाव में आते ही प्रत्याशित कृषि उत्पादन से कम उत्पादन तथा भौगोलिक राजनीतिक जोखिमों के कारण ऊर्जा कीमतों में संभावित वृद्धि वर्तमान के उदार मुद्रास्फीति दृष्टिकोण को उल्लेखनीय रूप से बदल सकते हैं।
11. संरचनागत और घर्षणात्मक कारकों के साथ-साथ चलनिधि समायोजन ढांचे के दुरुस्त किए जाने से 2014-15 की तीसरी तिमाही में चलनिधि की स्थिति में सुधार हुआ। क्रेडिट वृद्धि की तुलना में जमा संग्रह की मात्रा के बढ़ने, पहले की प्रवृत्ति की दृष्टि से मुद्रा की मांग अपेक्षाकृत कम रहने, बैंकों के पास प्रचुर मात्रा में निधियां रहने के कारण कई बैंकों ने अपनी जमा दरों में कटौती की। सरकार द्वारा बड़ी मात्रा में किए गए व्यय/अंतरण चलनिधि का प्रमुख घर्षणात्मक स्रोत रहे। प्रचुर मात्रा में चलनिधि उपलब्ध होने के कारण बैंकों द्वारा निवल स्थिर और परिवर्ती दर मीयाद एवं एकदिवसीय रिपो तथा एमएसएफ के माध्यम से रिज़र्व बैंक की शरण लेकर जुटाई जाने वाली राशि में कमी आई जो पहली तिमाही से दूसरी तिमाही में औसतन ` 803 बिलियन से घटकर ` 706 बिलियन हुई तथा अक्टूबर-नवंबर में और घटकर ` 476 हो गई। निर्यात ऋण पुनर्वित्त के उपयोग में भी कमी आई जो तिमाही के 52.6 प्रतिशत की सीमा से घटकर अक्टूबर-नवंबर में 32.6 प्रतिशत पर पहुंच गया। सितंबर में शुरू किए गए संशोधित चलनिधि प्रबंधन ढांचे की वजह से 14-दिवसीय मीयादी रिपो नीलामियों तथा एकदिवसीय परिवर्ती दर रिपो नीलामियों में भारित औसत कट-ऑफ दरें लगभग रिपो दर के करीब रहीं, तथा भारित औसत मांग दर में कमी दर्ज हुई। इसके अलावा, दीपावली की छुट्टियों से पहले नकदी की मात्रा में भारी मात्रा में वृद्धि हुई।
12. रिज़र्व बैंक दीर्घावधिक प्रतिफलों पर विशेष दृष्टिकोण अपनाने के बजाय अपनी मौद्रिक स्थिति के मूल्यांकन के आधार पर खुले बाज़ार के परिचालनों की आवश्यकता का निर्धारण करता है। स्थायी चलनिधि स्थिति के मूल्यांकन के आधार पर रिज़र्व बैंक ने अक्टूबर से दिसंबर माह में अब तक ` 401 की ओएमओ बिक्री का आयोजन किया है।
13. अक्टूबर में व्यापारिक निर्यात में कमी आई, जिससे मुख्य रूप से विदेशी मांग के स्तर में आई सुस्ती का पता चलने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आई गिरावट की वजह से कम मात्रा में हुई वसूली का भी पता चलता है। समग्र रूप से अप्रैल-अक्टूबर अवधि के दौरान निर्यात की वृद्धि धनात्मक रही, तथापि, जुलाई से इसमें कमी दर्ज हो रही है, जिसके प्रति सतर्क रहना ज़रूरी है। कच्चे तेल की कीमतों में हुई कमी की वजह से आयातित पेट्रोलियम, तेल और लूब्रिकंट की मात्रा में आई गिरावट के कारण आयात की गति धीमी रही और पिछले वर्ष के स्तर की तुलना में व्यापार घाटे के स्तर में कमी दर्ज हुई। सितंबर माह से निर्यातित सोने की मात्रा में बढ़ोतरी हुई, जो कि त्योहारी मौसम की बढ़ती मांग को दर्शाती है। माह-दर-माह परिवर्तनों को छोड़ दिया जाए तो तेल और सोने से इतर वस्तुओं के निर्यात में मामूली वृद्धि हुई, जो कि देशी उत्पादनों में हुई कमी की भरपाई निर्यात से किए जाने का उपाख्यानात्मक प्रमाण है। विदेशी वित्तपोषण की आवश्यकताओं में सुस्ती आने के बावजूद अनिवासी जमाराशियों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के पूंजी प्रवाह में तेजी आई। अमेरिकी डॉलर की मजबूती की दृष्टि से मूल्यांकन प्रभावों में कमी आने के कारण अमेरिकी डॉलर में मूल्यवर्गित रिज़र्व की परिणामी वृद्धि की गति धीमी हुई।
नीति रुझान और औचित्य
14. सितंबर माह के चौथे द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में जोखिम से निपटने के लिए किए गए संतुलनों के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति में लगातार कमी आई और इसका मौजदा स्तर जनवरी 2015 के लिए निर्धारित 8 प्रतिशत के लक्ष्य और जनवरी 2016 के लिए निर्धारित 6 प्रतशित के लक्ष्य से कम है। नवंबर माह से संबंधित मुद्रास्फीति के स्तर, जो कि दिसंबर माह के मध्य में उपलब्ध होगा, में और कमी आने की संभावना है। उसके बाद हेडलाइन मुद्रास्फीति को काबू में रखने वाले अनुकूल आधार प्रभाव की तीव्रता कम होने की संभावना है तथा दिसंबर माह की मुद्रास्फीति (जनवरी माह में जारी होने वाला आंकड़ा) में मौजूदा स्तर से कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हो सकती है।
15. इस बढ़ोतरी के स्तर को लेकर काफी अनिश्चितता छाई हुई है। पूर्वोत्तर मानसून की मात्रा के अनुरूप अनाज, तिलहन और दलहन की कीमतों का दबाव पैदा होगा। किंतु अब तक हुई मानसून की मात्रा और खरीफ फसल की मात्रा में आने वाली अनुमानित कमी के मद्देनज़र इनकी कीमतों में कमी की आशा करना जायज है। पण्य वस्तुओं, खास तौर पर कच्चे तल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आई कमी तथा विदेशी विनिमय बाज़ार में वाजिब स्तर पर स्थिरता आने की वजह से निर्यात संबंधी जोखिम की तीव्रता में कमी दिखाई दे रही है। इसको ध्यान में रखते हुए मार्च 2015 से संबंधित सीपीआई मुद्रास्फीति के केंद्रीय पूर्वानुमान को घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया गया है (चार्ट 1)।
16. जहां तक मध्यावधि की दृष्टि से मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण का प्रश्न है इस स्तर पर किया जाने वाला पूर्वानुमान 2015 में दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य स्तर, कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के लगभग मौजूदा स्तर के आसपास रहने तथा बिजली को छोड़कर ईंधन समूह की अन्य वस्तुओं की नियंत्रित कीमतों में कोई बदलाव न आने जैसी बातों पर निर्भर करेगा। आगे के 12 माह के दौरान मुद्रास्फीति में तेजी आ सकती है और यह सामयिक गतिविधियों, जब अवस्फीति भी गति पकड़ सकती है, को छोड़कर अन्य मामलों में 6 प्रतिशत के आसपास रहने की संभावना है। तदनुसार, जनवरी 2016 के 6 प्रतिशत से संबद्ध जोखिम मौजूदा नीति रुझान के अंतर्गत समान रूप से संतुलित दिखाई दे रहा है।
17. अगस्त माह के अंत से मौद्रिक स्थिति में कुछ हद तक सुधार हो चुका है। भारित औसत मांग दरों के साथ-साथ सरकारी और उच्च-गुणवत्ता वाले कॉरपोरेट निर्गमों के दीर्घकालिक प्रतिफलों में काफी कमी आई है। किंतु इन ब्याज दरों में आई गिरावट के परिणामस्वरूप बैंकों की दरों में अभी तक कटौती नहीं की गई है। वस्तुत: बैंक क्रेडिट में मंद गति से हुई वृद्धि बड़ी कंपनियों की वाणिज्यिक पत्रों और विदेशी सार्वजनिक निर्गमों पर बढ़ती निर्भरता को दर्शाती है।
18. अभी भी, कमजोर मांग और हाल की अवस्फीति की त्वरित गति ऐसे कारक हैं जो मौद्रिक-निभाव का समर्थन कर रहे हैं। तथापि, मौद्रिक बाजार में हाल में आई गिरावट के अनुरूप बैंकों द्वारा अपनी उधार दरों में कटौती न करने से यह पता चलता है कि मौद्रिक नीति का रुख कुछ समय के लिए मात्र एक संकेत प्रभाव छोड़ेगा। हालांकि, ये संकेत-प्रभाव और भी व्यापक हो सकते हैं क्योंकि रिज़र्व बैंक ने लगातार संकेत दिया है कि एक बार मौद्रिक नीति का रुख बदलने पर आगामी नीतिगत कार्रवाइयां परिवर्तित रुख के अनुसार होंगी। मुद्रास्फीति में मूलभूत प्रभावों के विस्तार, पड़ रहे अवस्फीतिकारी प्रभावों की तीव्रता, लोगों की मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं में बदलाव की गति और घाटा संबंधी लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की सफलता के बारे में अभी भी अनिश्चिता बनी हुई है। मौजूदा स्थिति में मौद्रिक नीति रुख में बदलाव असामयिक है। तथापि, यदि मौजूदा मुद्रास्फीति की गति और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं में बदलाव होना जारी रहता है और राजकोषीय गतिविधियां प्रोत्साहनकारी रहती हैं तो अगले वर्ष के प्रारंभ में मौद्रिक नीति के रुख में बदलाव आ सकता है, जिसके लिए नीति समीक्षा के चक्र को भी तोड़ना क्यों न पड़े।
19. जहां दूसरी तिमाही में गतिविधियों में सुस्ती आई है और यही स्थिति तीसरी तिमाही में भी बने रहने की संभावना है, वहीं मुद्रास्फीति के स्तर में गिरावट, पण्यवस्तुओं वस्तुओं के मूल्यों और निविष्टि लागतों में कमी, चलनिधि की सुखद स्थिति तथा कारोबार के प्रति विश्वास बढ़ने के साथ-साथ क्रय संबंधी गतिविधियों में तेजी जैसे कारणों से कायापलट के लिए अनुकूल स्थिति तैयार हो रही है। यदि अर्थव्यवस्था को संरचनागत अवरोधों से दूर रखने से संबंधित समन्वित नीतिगत प्रयास किए गए तो इन स्थितियों के चलते चौथी तिमाही में वृद्धि हो सकती है। निवेश मांग में स्थायी सुधार होने में बुनियादी ढांचागत अड़चनें और मूल निवेश विशेष रूप से कोयला, बिजली, भूमि और खनिज की सुनिश्चित आपूर्ति का अभाव होने के कारण अड़चनें बनी रहेंगी। वृद्धि के स्तर को बहाल करने और रबि की बुआई अपेक्षाकृत कम रहने के कारण कृषि में पैदा होने वाले डाउनसाइड जोखिमों को दूर करने तथा विदेशी मांग घटने के कारण निर्यात में आई सुस्ती से निपटने की दृष्टि से इन क्षेत्रों के संबंध में सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों की सफलता काफी महत्व रखती है। इस प्रकार की सफलता की आशा करते हुए 2014-15 के लिए किए गए केंद्रीय अनुमान को 5.5 प्रतिशत जारी रखा गया है तथा सामान्य मानसून और प्रतिकूल आपूर्ति/ वित्तीय आघात न रहने का अनुमान लगाते हुए 2015-16 में गति और बढ़ने की संभावना है (चार्ट 2)।
छठा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य मंगलवार 3 फरवरी 2015 को प्रस्तुत किया जाएगा।
अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/1124 |