10 जनवरी 2020
वित्तीय समावेशन के लिए राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफ़आई): 2019-2024
पूरे विश्व में तेजी से वित्तीय समावेशन आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन के प्रमुख चालक के रूप में पहचाना जा रहा है। औपचारिक वित्त तक पहुंच से रोजगार सृजन को बढ़ावा मिल सकता है, आर्थिक झटके की संभावना कम हो सकती है और मानव पूंजी में निवेश बढ़ सकता है। 2030 के संयुक्त राष्ट्र के निरंतर विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में वित्तीय समावेशन सातवां लक्ष्य है जिसेकि दुनिया भर में महत्वपूर्ण विकास हासिल करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक के रूप में देखा जा रहा है। समन्वयपूर्ण और समयबद्ध तरीके से उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफ़आई) तैयार करने की आवश्यकता है।
वैश्विक स्तर पर, पिछले एक दशक में राष्ट्रीय वित्तीय समावेशन कार्यनीतियों (एनएफ़आईएस) को अपनाने में काफी तेजी आई है। वैश्विक प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए, वित्तीय समावेशन सलाहकार समिति (एफ़आईएसी) के तत्वावधान में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2019-2024 की अवधि के लिए वित्तीय समावेशन के लिए राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफ़आई) तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की है। सभी हितधारकों के साथ गहन विचार-विमर्श किया गया है। प्राप्त इनपुट्स / फीडबैक के आधार पर, एनएसएफ़आई को अंतिम रूप दिया गया है और उसे वित्तीय स्थिरता विकास परिषद (एफ़एसडीसी) द्वारा अनुमोदित किया गया है। यह दस्तावेज औपचारिक रूप से श्री एम के जैन, उप-गवर्नर, रिजर्व बैंक, जो 10 जनवरी 2020 को अगरतला में आयोजित उत्तर पूर्व क्षेत्र के लिए वित्तीय समावेशन पर उच्च स्तरीय बैठक में शामिल हुए थे, द्वारा जारी किया गया।
एनएसएफ़आई भारत में वित्तीय समावेशन नीतियों के दृष्टिकोण और प्रमुख उद्देश्यों को निर्धारित करता है ताकि वित्तीय क्षेत्र में सभी हितधारकों को शामिल करते हुए कार्रवाई के व्यापक अभिसरण के माध्यम से प्रयासों के विस्तार और निरंतरता को बनाए रखा जा सके।
(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2019-2020/1664 |