विवि.एसआईजी.एफआईएन.आरईसी.xx/20.16.003/2023-24
21 सितंबर, 2023
भारतीय रिजर्व बैंक
(इरादतन चूककर्ताओं और बड़े चूककर्ताओं का निरूपण)
निदेश, 2023
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय III-ए, बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21, धारा 56 के साथ पठित धारा 35-ए और क्रेडिट सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 की धारा 11 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक इस बात से संतुष्ट है कि ऐसा करना सार्वजनिक हित में आवश्यक और समीचीन है, इसके बाद निर्दिष्ट निदेश जारी करता है:
उद्देश्य
इन निदेशों का प्राथमिक उद्देश्य ऋणदाताओं द्वारा किसी उधारकर्ता को इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत करने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए एक गैर-भेदभावपूर्ण और पारदर्शी प्रक्रिया प्रदान करना है। निदेशों का उद्देश्य इरादतन चूककर्ताओं के बारे में ऋण संबंधी जानकारी प्रसारित करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करना है ताकि ऋणदाताओं को सावधान किया जा सके एवं यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें आगे संस्थागत वित्त उपलब्ध नहीं कराया जाए।
अध्याय ।
प्रारंभिक
1. संक्षिप्त शीर्षक और प्रारंभ
(1) इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक (इरादतन चूककर्ताओं और बड़े चूककर्ताओं का निरूपण) निदेश, 2023 कहा जाएगा।
(2) ये निदेश रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डालने के 90 दिनों के बाद लागू होंगे।
2. प्रयोज्यता
(1) इन निदेशों में शामिल इरादतन चूककर्ताओं से संबंधित प्रावधान इन निदेशों में परिभाषित ' ‘ऋणदाताओं' पर लागू होंगे।
(2) आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियां (एआरसी)और क्रेडिट सूचना कंपनियां (सीआईसी) केवल अध्याय III में निहित रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के संबंध में इन निदेशों से बाध्य होंगी।
(3) इरादतन चूककर्ताओं के लिए आगे की वित्तीय सुविधा पर प्रतिबंध रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित सभी संस्थाओं पर लागू होगा, भले ही वे इन निदेशों में दिए गए 'ऋणदाता' की परिभाषा के अंतर्गत आते हों या नहीं।
(4) इन निदेशों में शामिल बड़े चूककर्ताओं से संबंधित प्रावधान रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित सभी संस्थाओं पर लागू होंगे, भले ही वे इन निदेशों में प्रदान की गई 'ऋणदाता' की परिभाषा के अंतर्गत आते हों या नहीं।
3. परिभाषाएँ
(1) इन निदेशों में, जब तक कि संदर्भ या विषय से अन्यथा अपेक्षित न हो, -
(ए) "अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान (एआईएफआई)"1 का अर्थ है -
(i) भारतीय निर्यात आयात बैंक (एक्ज़िम बैंक);
(ii) राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड);
(iii) राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी);
(iv) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी); और
(v) राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण और विकास बैंक (नैबफिड)
(बी) "बैंक" का अर्थ है -
(i) सभी वाणिज्यिक बैंक2
(ii) सभी अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक,
(iii) सभी गैर-अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक जो संशोधित विनियामकीय ढांचा – विनियामकीय उद्देश्यों3 के लिए शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) का वर्गीकरण के अनुसार टियर 3 और 4 के अंतर्गत आते हैं,
(iv) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, और
(v) स्थानीय क्षेत्र बैंक
(सी) "उधारकर्ता" का अर्थ वह व्यक्ति है जिसने ऋणदाता से ऋण सुविधा प्राप्त की है।
(डी) "क्रेडिट सुविधा" का अर्थ कोई भी फंड आधारित या गैर-फंड-आधारित सुविधा है, जो एक ऋणदाता ने उधारकर्ता को दी है।
(ई) "क्रेडिट सूचना कंपनी" (सीआईसी) का अर्थ ऐसी कंपनी है जिसे क्रेडिट सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 की धारा 5 के तहत पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान किया गया है।
(एफ) "निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन)" का वही अर्थ होगा जो कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत दिया गया है।
(जी) "डिफॉल्ट के समय जूड़े निदेशक" का अर्थ उस कंपनी का निदेशक है जिसे बड़े चूककर्ता/इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत किया गया था और वह उस समय जब कंपनी/उसके निदेशकों द्वारा किसी भूल चूक के कारण डिफ़ाल्ट हुई थी तब वह कंपनी से जुड़ा था।
(एच) "धनराशि का विपथन" का अर्थ और इसमें निम्नलिखित घटनाएँ शामिल हैं:
(i) ऋण सुविधा की मंजूरी की शर्तों के अनुरूप नहीं होने वाले दीर्घकालिक उद्देश्यों के लिए अल्पकालिक कार्यशील पूंजी निधि का उपयोग;
(ii) क्रेडिट सुविधा का उपयोग करके प्राप्त धनराशि को उन आस्तियों के निर्माण में लगाना, जिनके लिए क्रेडिट स्वीकृत नहीं किया गया था;
(iii) क्रेडिट सुविधा का उपयोग करके प्राप्त धनराशि को सहायक कंपनियों/समूह कंपनियों या अन्य संस्थाओं को, किसी भी तरीके से हस्तांतरित करना;
(iv) ऋणदाता या कंसोर्टियम के सदस्यों की पूर्व लिखित अनुमति के बिना ऋणदाता या कंसोर्टियम के सदस्यों के अलावा किसी अन्य ऋणदाता के माध्यम से धन को मार्गस्थ कराना;
(v) ऋणदाता या कंसोर्टियम के सदस्यों की मंजूरी के बिना इक्विटी/ऋण लिखतों को प्राप्त करने के माध्यम से अन्य कंपनियों/इकाइयों में क्रेडिट सुविधा का उपयोग करके प्राप्त धनराशि का निवेश करना; और
(vi) क्रेडिट सुविधा के तहत वितरित/आहरित राशि की तुलना में धन को लगाने में कमी और अंतर का हिसाब नहीं दिया जाना।
(आई) "गारंटर" वह व्यक्ति/संस्था है जिसने क्रेडिट सुविधा की गारंटी दी है।
(जे) "पहचान समिति" का अर्थ एक ऋणदाता द्वारा इरादतन चूककर्ता की पहचान करने के लिए गठित समिति है और इसमें निम्न शामिल होंगे:
(i) एक पूर्णकालिक निदेशक, मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) के अलावा, अध्यक्ष के रूप में और दो वरिष्ठ अधिकारी सदस्य के रूप में होंगे, जो समिति के अध्यक्ष के दो रैंक से नीचे के नहीं होंगे।
(ii) जहां पूर्णकालिक निदेशक का कोई पद नहीं है, जैसे कि विदेशी बैंकों के मामले में जिनकी भारत में केवल शाखाओं के माध्यम से उपस्थिति है, इसमें अध्यक्ष के रूप में देश के प्रमुख/सीईओ के ठीक नीचे रैंक का एक अधिकारी शामिल होगा और दो वरिष्ठ अधिकारी सदस्य के रूप में वे अधिकारी शामिल होंगे जो समिति के अध्यक्ष के दो पद से नीचे नहीं हो।
बशर्ते कि उपयुक्त सीमा से नीचे की ऋण सुविधाओं के संबंध में, ऋणदाता अपनी बोर्ड-अनुमोदित नीति के अनुसार, पहचान समिति का गठन कर सकते हैं, जिसमें पूर्णकालिक निदेशक के पद से ठीक नीचे का एक अधिकारी अध्यक्ष और दो वरिष्ठ अधिकारी जो समिति के अध्यक्ष के दो पद से नीचे नहीं हो, वे सदस्य होंगे।
नोट: (i) समिति की अध्यक्षता वह व्यक्ति नहीं करेगा जिसने ऋण सुविधा स्वीकृत की थी और इसमें कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं होगा जो ऋण स्वीकृति समिति का सदस्य था।
(ii) ऋणदाता इरादतन चूककर्ताओं की पहचान के लिए समान संविधान वाली कई पहचान समितियां गठित कर सकते हैं।
(के) "स्वतंत्र निदेशक" का वही अर्थ होगा जो कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत दिया गया है।
(एल) "बड़े चूककर्ता" का अर्थ है ₹1 करोड़ और उससे अधिक की बकाया राशि वाला चूककर्ता, तथा जिसके खाते को रिज़र्व बैंक द्वारा 1 अक्टूबर, 2021 के मास्टर परिपत्र - अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड (समय-समय पर संशोधित) में जारी निदेशों के अनुसार संदिग्ध या हानि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
(एम) "ऋणदाता" का अर्थ एआईएफआई, बैंक या एनबीएफसी है जिसने उधारकर्ता को ऋण सुविधा प्रदान की है।
(एन) "नामिति निदेशक" का अर्थ ऋणदाता, नियामक प्राधिकरण, या केंद्र या राज्य सरकार द्वारा नामित निदेशक है।
स्पष्टीकरण: "नामिति निदेशक" के मामले में:
(i) संबंधित नए बैंक का अर्थ बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970/1980 की धारा 9 की उप-धारा (3) के खंड (जी) या खंड (एच) के तहत केंद्र सरकार द्वारा नामित कोई भी निदेशक होगा।
(ii) भारतीय स्टेट बैंक का अर्थ भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 की धारा 19 के खंड (डी) के तहत केंद्र सरकार द्वारा नामित कोई भी निदेशक होगा।
(ओ) "गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी)" का अर्थ ऐसे एनबीएफसी पर लागू सीमा तक मान आधारित विनियामक ढांचे4 के अनुसार एनबीएफसी-मिडिल लेयर (एनबीएफसी-एमएल) और उससे ऊपर की लेयर के अंतर्गत आने वाली सभी एनबीएफसी है।
(पी) "पेशेवर निदेशक" का अर्थ उस निदेशक से है जिसके संबंध में निदेशक मंडल- यूसीबी पर दिनांक 1 जुलाई 2013 के मास्टर परिपत्र यूबीडी.सीओ.बीपीडी.एमसी सं.8/12.05.001/2013-14 - (समय-समय पर संशोधित) के पैरा 1.6 में उल्लेख है।
(क्यू) "प्रवर्तक" का अर्थ एक ऐसा व्यक्ति है जिसका नाम प्रॉस्पेक्टस में रखा गया है या कंपनी द्वारा वार्षिक रिटर्न में पहचाना गया है, और (i) कंपनी के मामलों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण रखता है, चाहे वह एक शेयरधारक के रूप में हो, निदेशक या अन्यथा; और/या (ii) जिसकी सलाह, निर्देशों या अनुदेशों के अनुसार, कंपनी का निदेशक मंडल कार्य करने में अभ्यस्त है।
(आर) "समीक्षा समिति" का अर्थ पहचान समिति के प्रस्ताव की समीक्षा के उद्देश्य से ऋणदाता द्वारा गठित समिति है और इसमें शामिल होंगे:
(i) पूर्णकालिक निदेशक, जो ऋणदाता का मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) है, अध्यक्ष के रूप में और दो स्वतंत्र निदेशक [प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के मामले में पेशेवर निदेशक] सदस्य के रूप में शामिल होंगे। यदि क्रेडिट सुविधा सीईओ द्वारा स्वीकृत की गई है तो अध्यक्ष एक स्वतंत्र निदेशक होगा।
(ii) जहां पूर्णकालिक निदेशक का कोई पद नहीं है, जैसे कि विदेशी बैंकों के मामले में जिनकी भारत में केवल शाखाओं के माध्यम से उपस्थिति है, इसमें अध्यक्ष के रूप में देश के प्रमुख/सीईओ रैंक का एक अधिकारी शामिल होगा और दो वरिष्ठ अधिकारी सदस्य के रूप में, वे अधिकारी शामिल होंगे जो समिति के अध्यक्ष के एक पद से नीचे नहीं हो।
बशर्ते कि उपयुक्त सीमा से नीचे की ऋण सुविधाओं के संबंध में, ऋणदाता अपनी बोर्ड-अनुमोदित नीति के अनुसार, समीक्षा समिति का गठन कर सकते हैं, जिसमें पूर्णकालिक निदेशक के पद से ठीक नीचे का एक अधिकारी अध्यक्ष और दो वरिष्ठ अधिकारी जो समिति के अध्यक्ष के दो पद से नीचे नहीं हो, वे सदस्य होंगे।
टिप्पणियाँ:
(ए) अध्यक्ष वह व्यक्ति नहीं होगा जिसने क्रेडिट सुविधा को मंजूरी दी थी या मंजूरी समिति के सदस्य के रूप में कार्य किया है।
(बी) अध्यक्ष पहचान समिति के अध्यक्ष से कम से कम एक रैंक ऊपर होगा।
(सी) समिति में वे सदस्य शामिल नहीं होंगे जो पहचान समिति का हिस्सा हैं।
(एस) "धन की हेराफेरी यदि ऋणदाताओं से क्रेडिट सुविधा का उपयोग करके प्राप्त किसी भी धनराशि का उपयोग उधारकर्ता के संचालन से असंबंधित उद्देश्यों के लिए किया जाता है, तो "धन की हेराफेरी" हुई मानी जाएगी।
(टी) "इरादतन चूक"
(i) किसी उधारकर्ता द्वारा ऐसा तब माना जाएगा जब उधारकर्ता, ऋणदाता को भुगतान/पुनर्भुगतान दायित्वों को पूरा करने में चूक करता है और निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक विशेषताएं देखी जाती हैं:
(ए) उधारकर्ता के पास उक्त दायित्वों को निभाने की क्षमता है;
(बी) उधारकर्ता ने ऋणदाता से ऋण सुविधा के तहत प्राप्त धनराशि को विपथित किया है;
(सी) उधारकर्ता ने ऋणदाता से ऋण सुविधा के तहत प्राप्त धनराशि की हेराफेरी की है;
(डी) उधारकर्ता ने ऋणदाता की जानकारी के बिना ऋण सुविधा हासिल करने के उद्देश्य से दी गई अचल या चल संपत्तियों का निपटान कर दिया है;
(ई) इक्विटी लगाने की क्षमता होने के बावजूद उधारकर्ता ऋणदाता के प्रति इक्विटी लगाने की अपनी प्रतिबद्धता में विफल रहा है, हालांकि ऋणदाता ने इस प्रतिबद्धता और अन्य अनुबंधों और शर्तों के आधार पर उधारकर्ता को ऋण या कुछ रियायतें प्रदान की हैं।
(ii) किसी गारंटर द्वारा घटित माना जाएगा यदि गारंटर बकाया राशि का भुगतान करने के लिए पर्याप्त साधन होने के बावजूद ऋणदाता द्वारा इनवोक किए जाने पर गारंटी को नहीं निभाता है।
(यू) "इरादतन चूककर्ता" का अर्थ है
(i) एक उधारकर्ता या गारंटर जिसने इरादतन चूक की है और बकाया राशि ₹25 लाख और उससे अधिक है, या जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किया जाता है, और
(ii) जहां इरादतन चूककर्ता उधारकर्ता एक कंपनी है, वहां उसके प्रवर्तक और चूक के समय जुड़े निदेशक, तथा इकाई (कंपनियों के अलावा) के मामले में, जो इकाई के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार व्यक्ति हैं।
(2) यहां प्रयुक्त शब्द और अभिव्यक्तियां जो इन निदेशों में परिभाषित नहीं हैं, लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 या बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 या क्रेडिट सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005, या कंपनी अधिनियम, 2013 में परिभाषित हैं, का वही अर्थ होगा जो उन अधिनियमों में दिया गया है।
अध्याय II
इरादतन चूककर्ताओं का निरूपण
4. सामान्य अपेक्षाएँ
(1) इरादतन चूककर्ताओं की पहचान और वर्गीकरण के लिए प्रणाली
एक ऋणदाता इन निदेशों में उल्लिखित प्रक्रिया का पालन करके किसी व्यक्ति को 'इरादतन चूककर्ता' के रूप में पहचान और वर्गीकृत करेगा।
(ए) (i) इरादतन चूककर्ता के साक्ष्य की जांच एक पहचान समिति द्वारा की जाएगी।
(ii) यदि पहचान समिति संतुष्ट है कि इरादतन चूक की घटना हुई है, तो वह उधारकर्ता/गारंटर/प्रवर्तक/निदेशक/व्यक्ति जो इकाई के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार हैं को कारण बताओ नोटिस जारी करेगी तथा प्रस्तुति के लिए बुलाएगी।
(iii) प्रस्तुतियों पर विचार करने के बाद और जहां संतुष्ट हो, पहचान समिति लिखित में कारण बताकर इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकरण हेतु समीक्षा समिति को प्रस्ताव देगी।
(iv) उधारकर्ता/गारंटर/प्रवर्तक/निदेशक/व्यक्ति जो इकाई के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार हैं, उन्हें इसके कारण बताते हुए इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत करने के प्रस्ताव के बारे में उचित रूप से सूचित करेगी।
(v) उधारकर्ता/गारंटर/प्रवर्तक/निदेशक/व्यक्ति जो इकाई के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार हैं, उचित समय (उदा. 15 दिन) के भीतर ऐसे प्रस्ताव के विरुद्ध समीक्षा समिति को लिखित प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान किया जाएगा।
(vi) प्राप्त लिखित अभ्यावेदन के साथ पहचान समिति के प्रस्ताव पर समीक्षा समिति द्वारा विचार किया जाएगा।
(vii) समीक्षा समिति उधारकर्ता/गारंटर/प्रवर्तक/निदेशक/व्यक्ति जो इकाई के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार हैं उन्हें भी व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर प्रदान करेगी । हालाँकि, यदि अवसर का लाभ नहीं उठाया गया है या यदि उधारकर्ता/गारंटर/प्रवर्तक/निदेशक/व्यक्ति जो इकाई के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार हैं, वे व्यक्तिगत सुनवाई में भाग नहीं लेते हैं, तो समीक्षा समिति लिखित अभ्यावेदन सहित रिकॉर्ड पर तथ्य या सामग्री, यदि कोई हो, का आकलन करने के बाद पहचान समिति के प्रस्ताव पर विचार करें और निर्णय लें।
(viii) समीक्षा समिति एक तर्कसंगत आदेश पारित करेगी तथा वह उस आदेश के बारे में इरादतन चूककर्ता को सूचित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण: यदि पहचान समिति यह निष्कर्ष निकालती है कि उधारकर्ता/गारंटर/प्रवर्तक/निदेशक/व्यक्ति जो इकाई के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार हैं लेकिन इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकरण के लिए योग्य नहीं हैं, तो समीक्षा समिति स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है।
(बी) (i) ऋणदाता प्राधिकृत अधिकारियों को नामांकित करने के लिए अपनी बोर्ड-अनुमोदित नीति के आधार पर दिशानिर्देश तैयार करेंगे, जो क्रमशः पहचान समिति और समीक्षा समिति की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी करेंगे और लिखित आदेश देंगे।
(ii) कारण बताओ नोटिस और प्राधिकृत अधिकारियों द्वारा दिए गए आदेश में स्पष्ट रूप से कहा जाएगा कि इसे सक्षम प्राधिकारी अर्थात पहचान/समीक्षा समिति की मंजूरी प्राप्त है।
(सी) एक गैर-पूर्णकालिक निदेशक, जिसमें एक स्वतंत्र निदेशक/नामांकित निदेशक भी शामिल है, को तब तक इरादतन चूककर्ता नहीं माना जाएगा जब तक कि यह निर्णायक रूप से स्थापित न हो जाए कि:
(i) उधारकर्ता या गारंटर द्वारा इरादतन की गई चूक उनकी सहमति या मिलीभगत से हुई है या
(ii) उसे उधारकर्ता या गारंटर द्वारा इरादतन चूक के तथ्य के बारे में पता था, जैसा कि बोर्ड या बोर्ड की समिति की बैठक के कार्यवृत्त में दर्ज की गई कार्यवाही से पता चलता है, लेकिन उसने इस बात पर आपत्ति दर्ज़ नहीं की है।
(डी) एक गैर-पूर्णकालिक निदेशक/स्वतंत्र निदेशक/नामांकित निदेशक का नाम, जिसे इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत किया गया है, अनुबंध II में सूचित किया जाएगा जो दर्शाता है कि वह एक गैर-पूर्णकालिक निदेशक/स्वतंत्र निदेशक/नामांकित निदेशक है।
(2) इरादतन चूक की पहचान के लिए खातों की समीक्षा
(ए) ऋणदाता ₹25 लाख और उससे अधिक या भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर अधिसूचित बकाया राशि वाले सभी खातों में 'इरादतन चूक' पहलू की जांच करेगा, और खाते को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किए जाने के छह (6) महीनों के भीतर इरादतन चूककर्ता के रूप में उधारकर्ता के वर्गीकरण/घोषणा की प्रक्रिया को पूरा करेगा (जैसा कि अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड पर दिनांक 1 अक्टूबर, 2021 के मास्टर परिपत्र DOR.No.STR.REC.55/21.04.048/2021-22, समय-समय पर संशोधित, में परिभाषित किया गया है)।
(बी) उन खातों के संबंध में जहां उपरोक्त पैरा 4(2)(ए) में उल्लिखित प्रारंभिक जांच के दौरान 'इरादतन चूक' देखी नहीं गई थी, ऋणदाता की बोर्ड अनुमोदित नीति के अनुसार, 'इरादतन चूक' से संबंधित पहलुओं की बाद में फिर से जांच बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट आवधिकता पर फिर की जाएगी।
5. इरादतन चूककर्ताओं के विरुद्ध विशिष्ट उपाय
(1) ऋणदाताओं द्वारा आपराधिक कार्रवाई
प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर, ऋणदाता यह जांच कर सकते हैं कि क्या लागू कानून के प्रावधानों के तहत इरादतन चूककर्ताओं के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई जरूरी है।
(2) इरादतन चूककर्ताओं की तस्वीरें प्रकाशित करना
जैसा कि 'इरादतन चूककर्ताओं की तस्वीरों के प्रकाशन' पर 29 सितंबर, 2016 के परिपत्र DBR.CID.BC.No.17/20.16.003/2016-17 में निर्दिष्ट है, ऋणदाताओं को एक गैर-भेदभावपूर्ण बोर्ड-अनुमोदित नीति तैयार करनी होगी जिसमें स्पष्ट रूप से मानदंड निर्धारित होंगे जिसके आधार पर वर्गीकृत और इरादतन चूककर्ता घोषित किए गए व्यक्तियों की तस्वीरें प्रकाशित की जाएंगी।
(3) इरादतन चूककर्ताओं के विरुद्ध दंड और अन्य उपाय
नीचे उल्लिखित दंडात्मक प्रावधान ऋणदाताओं द्वारा लागू किए जाएंगे।
(ए) संस्थागत वित्त से प्रतिबंध
(i) किसी भी ऋणदाता द्वारा इरादतन चूककर्ता को या किसी इकाई जिसके साथ इरादतन चूककर्ता संबधित है, को अतिरिक्त ऋण सुविधा प्रदान नहीं की जाएगी।
स्पष्टीकरण:
(ए) यदि इरादतन चूककर्ता एक कंपनी है, तो किसी अन्य कंपनी का उसके साथ संबधित माना जाएगा, अगर वह कंपनी -
(i) कंपनी अधिनियम, 2013 के खंड 2(87) के तहत परिभाषित एक अनुषंगी कंपनी है।
(ii) कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 के खंड (6) के तहत ‘संयुक्त उद्यम’ या ‘सहयोगी कंपनी’ की परिभाषा के भीतर आती है।
(बी) यदि इरादतन चूककर्ता स्वाभाविक व्यक्ति है, सभी संस्थाएं जिनमें वह प्रमोटर, या निदेशक, या एक प्रभारी के रूप में जुड़ा हुआ है या संस्था के मामलों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है, इरादतन चूककर्ता से संबन्धित मानी जाएगी।
(ii) ऋणदाता द्वारा इरादतन चूककर्ता की सूची (एलडब्ल्यूडी) से इरादतन चूककर्ता का नाम हटाए जाने के बाद अतिरिक्त ऋण सुविधा पर रोक एक (1) वर्ष की अवधि तक प्रभावी होगी।
(iii) इसके अलावा, ऋणदाता द्वारा एलडबल्यूडी से इरादतन चूककर्ता का नाम हटाए जाने के बाद किसी भी ऋणदाता द्वारा किसी इरादतन चूककर्ता को या किसी भी इकाई को जिसके साथ एक इरादतन चूककर्ता जुड़ा हुआ है, नए उद्यम शुरू करने के लिए कोई क्रेडिट सुविधा पाँच (5) साल की अवधि के लिए नहीं दी जाएगी।
(बी) पुनर्गठन के लिए अयोग्य
(i) इरादतन चूककर्ता ऋण सुविधा के पुनर्गठन के लिए पात्र नहीं होंगे।
(ii) ऐसे मामलों में जहां मौजूदा प्रवर्तकों को 7 जून, 2019 के परिपत्र ‘दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए विवेकपूर्ण ढांचा’ (समय-समय पर संशोधित) में निहित निर्देशों के अनुसार नए प्रवर्तकों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है और उधारकर्ता कंपनी का ऐसे पूर्ववर्ती प्रवर्तकों / प्रबंधन से कोई संबंध नहीं है, तो ऋणदाता पूर्ववर्ती प्रवर्तकों/प्रबंधन के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई जारी रखने के प्रति पूर्वाग्रह के बिना, उनकी व्यवहार्यता के आधार पर ऐसे खातों के पुनर्गठन पर विचार कर सकते हैं।
(सी) प्रसंविदा का समावेश
(i) ऋणदाता द्वारा उधारकर्ता को ऋण सुविधा प्रदान करते समय करार में एक प्रसंविदा को शामिल करना होगा कि वे अपने बोर्ड में किसी ऐसे व्यक्ति को शामिल नहीं करेंगे जिसका नाम एलडब्ल्यूडी में दिखाई देता है।
(ii) यदि ऐसा कोई व्यक्ति उनके बोर्ड में पाया जाता है, तो ऋणदाता से ऐसे नोटिस की प्राप्ति की तारीख से 90 दिनों के भीतर ऐसे व्यक्ति को बोर्ड से हटाने के लिए शीघ्र और प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।
(iii) किसी भी परिस्थिति में किसी भी ऋणदाता द्वारा ऐसे उधारकर्ता को नवीनीकृत/ बढ़ाया हुआ ऋण /नई ऋण सुविधाएं प्रदान नहीं की जाएगी, जब तक कि ऐसा निदेशक जिसका नाम एलडब्ल्यूडी में दिखाई देता है, उसके बोर्ड में बना रहता है।
(डी) कानूनी कार्रवाई प्रारम्भ करना
ऋणदाता द्वारा, जहां भी आवश्यक हो, बकाया राशि के पुरोबंध/वसूली के लिए उधारकर्ताओं/गारंटरों के विरुद्ध शीघ्रता से कानूनी कार्रवाई प्रारम्भ की जाएगी।
6. पारदर्शी तंत्र का प्रावधान
ऋणदाता द्वारा इरादतन चूक करने वाले उधारकर्ताओं के पहचान की पूरी प्रक्रिया के लिए एक पारदर्शी तंत्र स्थापित किया जाएगा ताकि दंडात्मक प्रावधानों को निष्पक्ष तरीके से लागू किया जा सके और विवेकाधिकार की संभावना खत्म हो सके।
7. आंतरिक लेखा-परीक्षा की भूमिका
(1) ऋणदाता को अपने आंतरिक लेखा-परीक्षकों से किसी उधारकर्ता को इरादतन चूक करने वाले के रूप में वर्गीकृत करने के निर्देशों के अनुपालन पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
(2) ऋणदाता की लेखा-परीक्षा समिति द्वारा इरादतन चूक के मामलों की समय-समय पर समीक्षा की जाएगी और ऐसी घटनाओं को रोकने और उनका शीघ्र पता लगाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की अनुशंसा की जाएगी।
8. गारंटर का दायित्व (देनदारी)
(1) भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 128 के अनुसार, गारंटर का दायित्व मूल देनदार के दायित्व के साथ व्यापक होता है जब तक कि यह अनुबंध द्वारा अन्यथा प्रदान नहीं किया जाता है।
(2) जब मूल देनदार द्वारा भुगतान/पुनर्भुगतान करने में कोई चूक होती है, ऋणदाता मूल देनदार के विरुद्ध उपचारात्मक उपायों को समाप्त किए बिना भी गारंटर के विरुद्ध कार्रवाई करने में सक्षम होगा।
(3) जहां किसी ऋणदाता ने मूल देनदार द्वारा की गई चूक के कारण गारंटर पर दावा किया है, तो गारंटर की देनदारी तत्काल होती है।
(4) यदि उक्त गारंटर ऋणदाता द्वारा की गई मांग का पालन करने से इनकार करता है, तो ऐसे गारंटर को इन निर्देशों के पैरा 4 में निर्धारित तंत्र का पालन करके इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत करने पर भी विचार किया जाएगा।
(5) ऐसे मामलों में जहां इरादतन चूक करने वाली इकाइयों की ओर से समूह के भीतर कंपनियों द्वारा दी गई गारंटी का ऋणदाताओं द्वारा उपयोग किए जाने पर स्वीकार नहीं किया जाता है, ऐसी समूह कंपनियों को इन निर्देशों के पैरा 4 में निर्धारित तंत्र का पालन करके इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत करने पर भी विचार किया जाना चाहिए।
(6) किसी समूह में एकल उधार लेने वाली कंपनी के इरादतन की गई चूक से निपटान के दौरान, ऋणदाताओं द्वारा अलग-अलग कंपनी के ट्रैक रिकॉर्ड पर विचार अपने ऋणदाता को उसके पुनर्भुगतान प्रदर्शन के संदर्भ में किया जाना चाहिए।
(7) गारंटर पर उपर्युक्त निर्देश 09 सितंबर 2014 से प्रभावी होंगे और उन मामलों में नहीं जहां इस तिथि से पहले गारंटी ली गई थी। ऋणदाताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि गारंटी स्वीकार करते समय सभी संभावित गारंटरों को इस स्थिति से अवगत कराया गया है।
अध्याय III
इरादतन चूककर्ताओं और बड़े चूककर्ताओं की रिपोर्टिंग
9. बड़े चूककर्ताओं से संबन्धित ऋण सूचना की रिपोर्टिंग और प्रसार
(1) बड़े चूककर्ताओं से संबंधित प्रावधान रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित सभी संस्थाओं पर लागू होंगे, भले ही वे इन निर्देशों में दी गई 'ऋणदाता' की परिभाषा के अंतर्गत आते हों या नहीं।
(2) रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित सभी संस्थाएँ, जिनमें 'ऋणदाता' भी शामिल हैं, मासिक अंतराल पर बड़े चूककर्ताओं के संबंध में सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों (सीआईसी) को अनुबंध-I में जानकारी प्रस्तुत करेंगी -
(ए) बड़े चूककर्ताओं के वाद दायर खातों की सूची; और
(बी) बड़े चूककर्ताओं के गैर वाद दायर खातों की सूची
(3) ₹1 करोड़ के कट-ऑफ पॉइंट की गणना के लिए, अप्रयुक्त ब्याज, यदि कोई हो, को भी शामिल किया जाएगा। वाद दायर खातों के मामले में, कट-ऑफ पॉइंट उस राशि से संबंधित होगा, जिसके लिए वाद दायर किया गया है।
(4) सीआईसी द्वारा क्रेडिट सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 में परिभाषित सभी क्रेडिट संस्थानों को बड़े चूककर्ताओं के गैर वाद दायर खातों की सूची तक पहुंच प्रदान की जाएगी।
(5) सीआईसी द्वारा अपनी वेबसाइट पर बड़े चूककर्ताओं के मुकदमा-दायर खातों की सूची प्रदर्शित की जाएगी।
स्पष्टीकरण: (ए) इन निर्देशों के प्रयोजनों के लिए, 'वाद दायर खाते' शब्द का अर्थ उन खातों से होगा जिनके संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित ऋणदाताओं ने अपनी शेष राशि की वसूली के लिए अदालतों या न्यायाधिकरणों (दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 सहित) से संपर्क किया है, और कार्यवाही लंबित है।
(बी) यदि मूल वसूली कार्यवाही की निरंतरता में कोई आवेदन, अपील या निष्पादन लंबित है तो खातों को दायर मुकदमे के रूप में माना जाएगा।
(सी) वाद दायर खातों को उन खातों में शामिल माना जाएगा जिनमें सरफेसी (SARFAESI) कार्यवाही अथवा राजस्व वसूली कार्यवाही या सहकारी समितियों को नियंत्रित करने वाले अधिनियमों के अंतर्गत वसूली के लिए कार्यवाही शुरू की गई है और लंबित है एवं इसमें देनदार का खाता शामिल होगा जिसके विरुद्ध समाधान या परिसमापन कार्यवाही प्रारम्भ की गई है और जारी है।
10. इरादतन चूककर्ताओं से संबन्धित ऋण सूचना की रिपोर्टिंग और प्रसार
(1) सभी ऋणदाताओं द्वारा मासिक अंतराल पर, इन निर्देशों के पैरा 3.1. (यू) में परिभाषित इरादतन चूककर्ताओं के संबंध में जानकारी सभी सीआईसी को अनुबंध II में प्रस्तुत की जाएगी।:
(ए) वाद दायर खातों का एलडब्ल्यूडी
(बी) गैर वाद दायर खातों का एलडब्ल्यूडी
(2) नीचे दिये पैरा 11 (2) में प्रावधान के अधीन, ऋणदाता या एआरसी जिसको खाता हस्तांतरित किया गया है, वह सभी सीआईसी को एलडब्ल्यूडी से इरादतन चूककर्ता का नाम हटाने के बारे में तुरंत और 30 दिनों के भीतर सूचित करेंगे, जब बकाया राशि ₹25 लाख की सीमा या जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किया जाता है, से नीचे आती है।
(3) प्रत्येक सीआईसी द्वारा अपनी वेबसाइट पर एलडब्ल्यूडी के मुकदमा-दायर और गैर वाद दायर खातों को प्रदर्शित किया जाएगा।
(4) भारत में निगमित बैंकों की विदेशी शाखाओं में इरादतन चूक के मामले सूचित किए जाएंगे, यदि ऐसा प्रकाशन मेजबान देश के कानूनों के तहत निषिद्ध नहीं है।
(11) समझौता निपटान का निरूपण
(1) एलडब्ल्यूडी में शामिल कोई भी खाता, जहां ऋणदाता ने उधारकर्ता के साथ समझौता करार किया है, उसे एलडब्ल्यूडी से केवल तभी हटाया जाएगा जब उधारकर्ता ने समझौता राशि का पूरा भुगतान कर दिया हो5।
(2) जब तक केवल आंशिक भुगतान किया गया हो, तब तक उधारकर्ता का नाम एलडब्ल्यूडी से नहीं हटाया जाएगा, भले ही बकाया राशि ₹25 लाख, या भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर अधिसूचित, सीमा से कम हो।
(3) इरादतन चूककर्ताओं के साथ समझौता ऋणदाता की बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के अनुसार होगा। ऐसी नीति में कर्मचारियों की जवाबदेही जांच, बोर्ड को समझौते/निपटान की रिपोर्ट करना, अधिक अग्रिम भुगतान, यदि कोई हो तो, आदि, पर दिशानिर्देश शामिल होंगे।
(4) समझौता निपटान इरादतन चूक करने वाले के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही सहित कानूनी कार्यवाही की निरंतरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगा।
12. अन्य ऋणदाताओं और एआरसी को बेचे गए चूक किए गए ऋणों का निरूपण
(1) ऋणदाता को अन्य हस्तांतरितियों को ऋण सुविधा हस्तांतरित करने से पहले प्रत्येक मामले में इरादतन चूक के पहलू की जांच पूरी करनी होगी।
(2) ऐसे मामले में जहां इरादतन चूक स्थापित की गई है, ऋणदाताओं को अन्य ऋणदाताओं/एआरसी को संपत्ति बेचने से पहले सीआईसी को एलडब्ल्यूडी में इसकी रिपोर्ट करनी होगी।
(3) की गई रिपोर्टिंग का विवरण अन्य ऋणदाताओं/एआरसी को अवश्य बताया जाना चाहिए और वे इसके बाद सीआईसी को इसकी रिपोर्ट करने के लिए जिम्मेदार होंगे।
(4) अन्य ऋणदाताओं/एआरसी को बिक्री को वसूली के रूप में नहीं माना जाएगा, क्योंकि ऋण राशि अभी तक वसूल नहीं हुई है।
(5) "हस्तांतरिती" ऋणदाता/एआरसी खाते को इरादतन चूककर्ता के रूप में रिपोर्ट करना जारी रखेंगे, जब तक कि उनके खाते में पुनर्प्राप्त की जाने वाली शेष राशि और "हस्तांतरणकर्ता" ऋणदाता द्वारा बट्टे खाते में डाली गई राशि ₹25 लाख की सीमा से कम न हो जाए या जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किया गया हो।
13. ऐसे खातों के निरूपण जहां समाधान दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी)/रिज़र्व बैंक द्वारा जारी समाधान रूपरेखा दिशानिर्देशों के अंतर्गत किए जाते हैं
(1) यदि कोई खाता एलडब्ल्यूडी में शामिल है और बाद में उसका समाधान [या तो आईबीसी के तहत या रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दबावग्रस्त संपत्तियों के समाधान के लिए 7 जून, 2019 (समय-समय पर संशोधित) के विवेकपूर्ण ढांचे के तहत] हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप इकाई/व्यावसायिक उद्यम के प्रबंधन और नियंत्रण में बदलाव आया है, तो समाधान योजना के कार्यान्वयन के बाद आईबीसी या उपर्युक्त विवेकपूर्ण ढांचे के तहत ऐसे इरादतन चूककर्ता का नाम एलडब्ल्यूडी से हटा दिया जाएगा।
(2) पैरा 5 (3) (ए) में बताए गए दंडात्मक उपाय आईबीसी अथवा उपर्युक्त विवेकपूर्ण ढांचे के तहत समाधान योजना के कार्यान्वयन के बाद संस्थाओं/व्यावसायिक उद्यमों पर लागू नहीं होंगे।
(3) पैरा 5 (3) (ए) में वर्णित दंडात्मक उपाय ऐसे पूर्ववर्ती प्रवर्तक/निदेशक/गारंटर/व्यक्तियों पर लागू रहेंगे, जो इकाई/व्यावसायिक उद्यम के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार थे।
14. अचूक रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी
(1) सही जानकारी देने और तथ्यों और आंकड़ों की सटीकता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी संबंधित ऋणदाता की है।
(2) सीआईसी को जानकारी प्रस्तुत करते समय ऋणदाताओं को निदेशकों के विवरण की सटीकता सुनिश्चित करनी होगी, और जहां भी संभव हो, कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा बनाए गए डेटाबेस के साथ क्रॉस-चेकिंग करनी होगी।
15. गारंटीकर्ताओं की रिपोर्टिंग
ऋणदाता उन गारंटरों की जानकारी जो लागू होने पर प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहे हैं, बड़े चूककर्ता/ इरादतन चूककर्ता, जैसा भी मामला हो, के रूप में रिपोर्ट करेंगे। जानकारी अनुबंध I और II के अनुसार रिपोर्ट किया जाएगा।
16. निदेशकों की रिपोर्टिंग
(1) कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कंपनियों के रूप में पंजीकृत व्यावसायिक उद्यमों के मामले में, इन निर्देशों के प्रावधानों के अधीन, ऋणदाताओं को संबंधित व्यक्तियों की बेहतर पहचान की सुविधा के लिए चूक के समय उधारकर्ता से जुड़े निदेशकों के पूरे नाम अनुबंध I और II के निदेशक कॉलम में भी रिपोर्ट करने होंगे।
(2) यह सुनिश्चित करने के लिए कि निदेशकों की सही पहचान की गई है और किसी भी स्थिति में, जिन व्यक्तियों के नाम एलडब्ल्यूडी में दिखाई देने वाले निदेशकों के नामों के समान प्रतीत होते हैं, उन्हें ऐसे आधारों पर गलत तरीके से क्रेडिट सुविधाओं से वंचित कर दिया जाता है, ऋणदाताओं को सीआईसी को उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए डेटा में निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन) को अनुबंध I और II में एक फ़ील्ड के रूप में शामिल करना होगा।
अध्याय IV
निवारक उपाय और लेखा परीक्षकों की भूमिका
17. निवारक उपाय
(1) क्रेडिट मूल्यांकन
(ए) क्रेडिट मूल्यांकन करते समय, ऋणदाता द्वारा यह सत्यापित किया जाएगा कि क्या किसी कंपनी के निदेशकों/गारंटरों/इकाई के मामलों के प्रबंधन के प्रभारी व्यक्तियों में से किसी का नाम, डीआईएन/पैन आदि के संदर्भ में, बड़े चूककर्ताओं/एलडब्ल्यूडी की सूची में है अथवा नहीं।
(बी) समान नामों के कारण उत्पन्न होने वाले किसी भी संदेह के मामले में, ऋणदाता द्वारा उधार लेने वाली कंपनी से घोषणा मांगने के बजाय निदेशकों की पहचान की पुष्टि के लिए स्वतंत्र स्रोतों का उपयोग किया जाएगा।
(2) निधियों के अंतिम उपयोग की निगरानी करना
(ए) परियोजना वित्तपोषण के मामलों में, ऋणदाताओं द्वारा अन्य बातों के साथ-साथ, इस उद्देश्य के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट से प्रमाणन प्राप्त करके, धन का अंतिम उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ऋणदाताओं को केवल चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा जारी किए गए प्रमाणपत्रों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि अपने ऋण पोर्टफोलियो की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अपने क्रेडिट जोखिम प्रबंधन प्रणाली और आंतरिक नियंत्रण को भी मजबूत करना चाहिए। इसके अलावा, सभी मामलों में, विशेषकर अल्पकालिक कॉर्पोरेट/बेजमानती ऋणों के मामले में, इस तरह के दृष्टिकोण को स्वयं ऋणदाताओं की ओर से 'समुचित सावधानी' द्वारा पूरक किया जाना चाहिए, और जहां तक संभव हो, ऐसे ऋण केवल उन उधारकर्ताओं तक ही सीमित होने चाहिए जिनकी ईमानदारी और विश्वसनीयता संदेह से परे है।
(बी) ऋणदाताओं द्वारा निधियों के अंतिम उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकताएं और संबंधित उचित उपाय उनके ऋण नीति दस्तावेज़ का एक हिस्सा होंगे। ऋणदाताओं द्वारा निधियों के अंतिम उपयोग की निगरानी और उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उपायों की एक उदाहरणात्मक सूची इस प्रकार है:
(i) उधारकर्ताओं की त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट/परिचालन विवरण/तुलन पत्र की सार्थक जांच;
(ii) ऋणदाता द्वारा सुरक्षा के रूप में उधारकर्ताओं से लिया जाने वाला की संपत्ति का नियमित निरीक्षण;
(iii) उधारकर्ताओं के लेखा पुस्तकों और अन्य ऋणदाताओं के साथ रखे गए 'नो-लियन' खातों की आवधिक जांच;
(iv) सहायता प्राप्त इकाइयों का आवधिक दौरा;
(v) कार्यशील पूंजी वित्त के मामले में, आवधिक स्टॉक लेखा परीक्षा की व्यवस्था;
(vi) ऋणदाता के 'क्रेडिट' कार्य का आवधिक व्यापक प्रबंधन ऑडिट, ताकि उनके क्रेडिट प्रशासन में प्रणालीगत कमजोरियों की पहचान की जा सके।
(सी) ऋणदाता द्वारा धन के अंतिम उपयोग की बारीकी से निगरानी की जाएगी और उधारकर्ताओं से प्रमाण पत्र प्राप्त किया जाएगा यह प्रमाणित करते हुए कि धन का उपयोग उसी उद्देश्य के लिए किया गया है जिसके लिए उन्हें प्राप्त किया गया था। उधारकर्ताओं द्वारा गलत प्रमाणन के मामले में, ऋणदाता उधारकर्ताओं के विरुद्ध जहां भी आवश्यक हो, आपराधिक कार्रवाई सहित उचित कानूनी कार्यवाही शुरू करने पर विचार किया जाएगा।
18. सांविधिक लेखा-परीक्षकों की भूमिका
(ए) यदि ऋणदाता द्वारा उधारकर्ताओं की ओर से खातों में किसी भी तरह की धोखाधड़ी पाई जाती है, और लेखा-परीक्षकों को लेखा-परीक्षा करने में लापरवाही या कमी पाई गई है, ऋणदाता राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (एनएफआरए)/इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के पास उधारकर्ताओं के वैधानिक लेखा परीक्षकों के विरुद्ध औपचारिक शिकायत दर्ज करने पर विचार किया जाएगा ताकि वे लेखा परीक्षक की जवाबदेही तय करने और जांच करने में सक्षम हो सकें।
(बी) एनएफआरए/आईसीएआई द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित होने तक, शिकायतें रिज़र्व बैंक (पर्यवेक्षण विभाग, केंद्रीय कार्यालय) और भारतीय बैंक संघ (आईबीए) को भेज दी जाएंगी। रिज़र्व बैंक और आईबीए को रिपोर्ट करने से पहले, ऋणदाताओं को संबंधित लेखा परीक्षकों की भागीदारी के बारे में संतुष्ट होना होगा और उन्हें सुनवाई का अवसर भी प्रदान करना होगा। इस संबंध में, ऋणदाताओं को सामान्य कार्यपद्धति और प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए, जिन्हें उपयुक्त रूप से दर्ज किया जाएगा।
(सी) ऋणदाताओं से प्राप्त ऐसी जानकारी के आधार पर, आईबीए द्वारा, ऋणदाताओं के बीच वितरण के लिए ऐसे लेखा परीक्षकों की एक सतर्कता सूची तैयार की जाएगी, जिनपर उन्हें कोई भी काम सौंपने से पहले इस पहलू पर विचार करना होगा।
(डी) निधियों के अंतिम उपयोग की निगरानी करने की दृष्टि से, यदि ऋणदाता उधारकर्ताओं द्वारा धन की हेराफेरी/बेइमानी के संबंध में उधारकर्ताओं के लेखा परीक्षकों से एक विशिष्ट प्रमाणीकरण चाहता है, तो ऋणदाता को इस उद्देश्य के लिए लेखा परीक्षकों को एक अलग अधिदेश देना चाहिए। लेखा परीक्षकों द्वारा इस तरह के प्रमाणीकरण की सुविधा के लिए, ऋणदाताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऋण समझौतों में उचित अनुबंधों को शामिल किया गया है ताकि ऋणदाताओं द्वारा लेखा परीक्षक को इस तरह का अधिदेश दिया जा सके।
(इ) उपर्युक्त के अलावा और उधारकर्ताओं द्वारा धन की हेराफेरी / धोखाधड़ी को रोकने की दृष्टि से, ऋणदाता उधारकर्ताओं के लेखा परीक्षक द्वारा दिए गए प्रमाणीकरण पर भरोसा किए बिना ऐसे विशिष्ट प्रमाणीकरण के लिए अपने स्वयं के लेखा परीक्षकों को नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं।
(एफ) इरादतन चूक के पीछे उधारकर्ताओं के कृत्यों की प्रकृति और सामान्य प्रक्रिया में ऋणदाताओं के पास उपलब्ध साक्ष्य की गुणवत्ता के आधार पर, ऋणदाता, अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक बकाया वाले खातों के संबंध में, उधारकर्ताओं के मामलों और उनके खातों की बहियों का फोरेंसिक ऑडिट शुरू करने पर विचार करेगा।
19. तृतीय पक्ष की भूमिका
(ए) जैसा कि 01 जुलाई 2016 को जारी “वाणिज्यिक बैंकों और चुनिन्दा वित्तीय संस्थानों द्वारा धोखाधड़ी – वर्गीकरण तथा रिपोर्टिंग पर मास्टर निदेश” (समय-समय पर अद्यतन किया गया) के पैरा 8.12.4 में निर्धारित है, इरादतन चूक के मामले मे ऋणदाता द्वारा नियुक्त तीसरे पक्ष के लिए भी कुछ जवाबदेही होनी चाहिए यदि उन्होंने ऋण मंजूरी/संवितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और अपने कार्य में लापरवाही की है या कमी पायी गयी हैं या उधारकर्ता द्वारा की गई इरादतन चूक में मदद की है।
(बी) ऋणदाता द्वारा इन तृतीय पक्षों का विवरण रिकॉर्ड के लिए भारतीय बैंक संघ (आईबीए) को अग्रेषित किया जाएगा। ऐसी जानकारी के आधार पर, आईबीए द्वारा ऋणदाताओं के बीच वितरण के लिए ऐसे तीसरे पक्षों की सावधानी सूची तैयार की जाएगी ताकि उन्हें कोई काम सौंपने से पहले इस पहलू पर विचार किया जाएगा।
(सी) आईबीए को रिपोर्ट करने से पहले, ऋणदाताओं को संबंधित तीसरे पक्षों की संलिप्तता के बारे में संतुष्ट होना होगा और उन्हें सुनवाई का अवसर भी प्रदान करना होगा। इस संबंध में, ऋणदाताओं को उचित प्रक्रिया का पालन करने की सलाह दी जाती है, जिसे उपयुक्त रूप से दर्ज किया जाएगा।
अध्याय V
निरसन प्रावधान
20. इन निर्देशों के लागू होने के साथ, रिज़र्व बैंक द्वारा जारी परिशिष्ट में उल्लिखित परिपत्रों में शामिल निर्देश/दिशानिर्देश निरस्त हो जाते हैं।
21. उपर्युक्त परिपत्रों के अंतर्गत दिये गए सभी अनुमोदन स्वीकृतियां/अभिस्वीकृतियां इन निर्देशों के तहत पूर्ण की गई शर्तों के अनुसार ही मान्य होंगी।
22. इन निर्देशों के लागू होने की तिथि तक निरस्त परिपत्रों के तहत किए गए सभी कार्य वैध होंगे।
परिशिष्ट
मास्टर निदेश जारी होने के साथ निरस्त किए गए परिपत्रों की सूची
क्रम सं |
परिपत्र सं |
तारीख |
विषय |
1 |
डीबीओडी.सं.बीसी.47/20.16.002/94 |
23.04.1994 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण |
2 |
डीबीओडी.सं.बीसी.40/20.16.002/94 |
09.07.1994 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण |
3 |
डीबीओडी.सं.बीसी.सीआईएस.225/20.16.002/95 |
03.02.1995 |
चूककर्ता उधारकर्ता के बारे में जानकारी का प्रकटीकरण। |
4 |
डीबीओडी.सं.सीआईएस.7/20.16.002/95 |
10.07.1995 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण |
5 |
डीबीओडी.सं.सीआईएस.32/20.16.002/95-96 |
26.07.1995 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण |
6 |
डीबीओडी.सं.सीआईएस.बीसी.92/20.10.001/95-96 |
31.08.1995 |
क्रेडिट जानकारी का संग्रहण और प्रस्तुतीकरण - आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 45सी(1) |
7 |
डीबीओडी.सं.बीसी.सीआईएस.(डी).135/20.16.002/95-96 |
24.11.1995 |
चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में सूचना का प्रकटीकरण |
8 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीईएफ़./52/20.16.002/95-96 |
11.04.1996 |
सूचना का प्रकटीकरण - फ्लॉपी डिस्केट पर 31.3.1996 को चूककर्ताओं की सूची और 31.3.1996 को वाद दायर खातों के विवरण |
9 |
यूबीडी.सं.बीआर.6/16.74.00/95-96 |
06.05.1996 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण |
10 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.71ए/20.16.022/96 |
11.06.1996 |
चूककर्ता उधारकर्ताओं पर सूचना का प्रकटीकरण |
11 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.156/20.16.002/96 |
06.12.1996 |
चूककर्ता उधारकर्ताओं पर सूचना का प्रकटीकरण |
12 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.155/20.16.002/97-98 |
22.12.1997 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण - सितंबर 1996 को समाप्त छमाही |
13 |
डीबीओडी.डीएल.बीसी.सं.23 /20.16.002/98 |
24.03.1998 |
सूचना का प्रकटीकरण – वाद दायर खातों की सूची प्रस्तुत करना |
14 |
यूबीडी.सं.बीआर.3/16.74.00/98-99 |
29.07.1998 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण |
15 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.106/20.16.002/98-99 |
11.11.1998 |
फ्लॉपी डिस्केट्स पर चूककर्ताओं की सूची प्रस्तुत करना और वाद दायर खातों को प्रस्तुत करना |
16 |
डीबीओडी.सं.डीएल(डबल्यू).बीसी.12/20.16.002 (1) /98-99 |
20.02.1999 |
₹25 लाख और उससे अधिक की इरदातन चूक के मामलों पर सूचना का संग्रहण और प्रसार |
17 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.46/20.16.002/98-99 |
10.05.1999 |
चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण - चूककर्ता/वाद दायर खातों की सूची और इरादतन चूक करने पर डेटा |
18 |
डीबीओडी.डीएल(डब्ल्यू)952/20.16.002/98-99 |
27.05.1999 |
₹25 लाख और उससे अधिक की इरदातन चूक के मामलों पर सूचना का संग्रहण और प्रसार |
19 |
यूबीडी.सं.बीआर.11/16.74.00/98-99 |
30.06.1999 |
₹25 लाख और उससे अधिक की इरादातन चूक के मामलों पर सूचना का संग्रहण और प्रसार |
20 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.4/20.16.002/99-2000 |
21.10.1999 |
चूककर्ताओं के नामों का प्रकटीकरण |
21 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.104/20.16.002/99-2000 |
23.10.1999 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के उधारकर्ताओं द्वारा लंबित अदालती मामलों के संबंध में जानकारी का प्रकटीकरण |
22 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.117/20.16.002/99-2000 |
30.10.1999 |
₹1 करोड़ और उससे अधिक के के चूककर्ताओं बारे में जानकारी का प्रकटीकरण - वाद दायर खातों की सूची - त्रैमासिक अद्यतनीकरण |
23 |
डीबीओडी.सं..डीएल/240/20.16-002/99-2000 |
01.12.1999 |
चूककर्ताओं के नामों का प्रकटीकरण |
24 |
डीबीओडी.सं.डीएल(डबल्यू).बीसी.161/20.16.002/99-2000 |
01.04.2000 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के बारे में जानकारी का संग्रह और प्रसार |
25 |
डीबीओडी.सं.बीसी.68/डीएल/20.16.002/2000-2001 |
12.01.2001 |
चूककर्ताओं के नामों का प्रकटीकरण - ऋण दस्तावेजों में सहमति खंड को शामिल करना |
26 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल/93/20.16.002/2000-01 |
23.03.2001 |
चूककर्ताओं के नामों का प्रकटीकरण |
27 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.112/20.16.002/2000-01 |
27.04.2001 |
चूककर्ताओं के नामों का प्रकटीकरण - ऋण दस्तावेजों में सहमति खंड |
28 |
डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.115/21.03.038/2000-01 |
02.05.2001 |
इरदातन चूक करने वालों से बकाया वसूलने के लिए वाद दायर करना |
29 |
यूबीडी.सं.डीबीआर.212/16.74.00/2001-02 |
31.07.2001 |
इरादतन चूक करने वालों से बकाया वसूलने के लिए वाद दायर करना |
30 |
डीबीओडी.सं.बीसी.44/डीएल/20.16.001/2001-02 |
15.11.2001 |
चूककर्ताओं के नामों का प्रकटीकरण |
31 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.54/20.16.001/2001-02 |
22.12.2001 |
चूककर्ताओं पर सूचना का संग्रहण एवं प्रसार |
32 |
डीबीओडी.सं.डीएल(डबल्यू).बीसी.110/20.16.003(1)/2001-02 |
30.05.2002 |
इरादतन चूककर्ता और उनके विरुद्ध कार्रवाई |
33 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.111/20.16.001/2001-02 |
04.06.2002 |
क्रेडिट सूचना ब्यूरो (सीआईबी) को क्रेडिट सूचना प्रस्तुत करना |
34 |
यूबीडी.बीआर.परि.11/16.74.00/2002-03 |
01.08.2002 |
इरादतन चूककर्ता और उनके विरुद्ध कार्रवाई |
35 |
डीबीओडी.सं.डीएल.bo.29/20.16.002/2002-03 |
01.10.2002 |
क्रेडिट सूचना ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड को क्रेडिट जानकारी प्रस्तुत करना - रिपोर्टिंग प्रणाली और सहमति खंड की शुरूआत |
36 |
डीबीओडी.सं.डीएल(डबल्यू).बीसी.58/20.16.003/2002-03 |
11.01.2003 |
इरादतन कर्ज नहीं चुकाने वालों और धन का अन्यत्र उपयोग - उनके खिलाफ कार्रवाई |
37 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.7/20.16.003/2003-04 |
29.07.2003 |
इरादतन चूककर्ता और उनके विरुद्ध कार्रवाई |
38 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.87/20.16.003/2003-04 |
26.05.2004 |
वार्षिक नीति वक्तव्य : 2004-05 - इरादतन ऋण नहीं चुकाने वाले - प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण |
39 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.88/20.16.002/2003-04 |
28.05.2004 |
वार्षिक नीति वक्तव्य : 2004-05 - ऋण सूचना का प्रसार - सिबिल की भूमिका |
40 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.95/20.16.002/2003-04 |
17.06.2004 |
वर्ष 2004-05 के लिए वार्षिक नीति विवरण - ऋण सूचना का प्रसार - सिबिल की भूमिका |
41 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.94/20.16.003/2003-04 |
17.06.2004 |
वार्षिक नीति वक्तव्य : 2004-05 – इरादतन चूककर्ता - प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण |
42 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.16/20.16.003/2004-05 |
23.07.2004 |
इरदातन कर्ज नहीं चुकाने वालों की जांच और इरादतन कर्ज नहीं चुकाने वालों के खिलाफ उपाय |
43 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.56/20.16.002/2004-05 |
06.11.2004 |
वर्ष 2004-05 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा - सिबिल द्वारा ऋण सूचना का प्रसार |
44 |
डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.75/20.16.002/2004-05 |
11.03.2005 |
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के चूककर्ता उधारकर्ताओं के बारे में सूचना का संग्रह और प्रसार |
45 |
डीबीओडी.सं.डीएल.11590/20.16.034/2007-08 |
27.02.2008 |
ऋण सूचना कंपनी (विनियमन) (कठिनाइयों का निवारण) आदेश, 2008 |
46 |
डीबीओडी.सं.डीएल(w)बीसी.87/20.16.003/2007-08 |
28.05.2008 |
इरादतन चूककर्ता और उनके विरुद्ध कार्रवाई |
47 |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
17.04.2008 |
समझौता निपटान के तहत खातों की रिपोर्टिंग |
48 |
यूबीडी.पीसीबी.परि.सं.57/16.74.00/2008-09 |
24.06.2008 |
इरादतन चूक करने वाले और उनके खिलाफ कार्रवाई - यूसीबी |
49 |
डीबीओडी.सं.डीएल.12738/20.16.001/2008-09 |
03.02.2009 |
कॉम्पैक्ट डिस्क पर चूककर्ताओं की सूची (गैर-वाद दायर खाते)/इरादतन चूककर्ताओं (गैर-वाद दायर खाते) के बारे में जानकारी प्रस्तुत करना। |
50 |
डीबीओडी.सं.डीएल.बीसी.110/20.16.046/2009-10 |
11.06.2010 |
क्रेडिट सूचना कंपनियों को डेटा प्रस्तुत करना - क्रेडिट संस्थानों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले डेटा का प्रारूप |
51 |
डीबीओडी.सं.सीआईडीबीसी.40/20.16.046/2010-11 |
21.09.2010 |
क्रेडिट सूचना कंपनियों को क्रेडिट डेटा प्रस्तुत करना – निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन) का समावेश |
52 |
डीबीओडी.सं.सीआईडीबीसी.30/20.16.042/2011-12 |
05.09.2011 |
क्रेडिट सूचना कंपनियों को क्रेडिट जानकारी प्रस्तुत करना - ₹1 करोड़ और उससे अधिक के चूककर्ता और ₹25 लाख और उससे अधिक के इरादतन चूककर्ता – वाद दायर खातों की क्रेडिट जानकारी का प्रसार। |
53 |
यूबीडी.सीओ.बीपीडी.परि.सं.19/09.11.200/2011-12 |
13.02.2012 |
क्रेडिट सूचना कंपनियों को क्रेडिट जानकारी प्रस्तुत करना - ₹1 करोड़ के चूककर्ता और ₹25 लाख के चूककर्ता और एक करोड़ रुपये के चूककर्ता और बैंक - वाद दायर खातों की क्रेडिट जानकारी का प्रसार |
54 |
डीबीओडी.सं.सीआईडीबीसी.27/20.16.042/2013-14 |
01.07.2013 |
क्रेडिट सूचना कंपनियों को क्रेडिट जानकारी प्रस्तुत करना - 'सहमति खंड' को वापस लेना |
55 |
डीबीओडी.सीआईडीबीसी.128/20.16.003/2013-14 |
27.6.2014 |
₹1 करोड़ और उससे अधिक के चूककर्ता (गैर-वाद दायर खाते) और ₹25 लाख और उससे अधिक के इरादतन चूककर्ता (गैर-वाद दायर खाते) – आरबीआई/सीआईसी को रिपोर्टिंग में परिवर्तन |
56 |
डीबीओडी.सं.सीआईडी41/20.16.003/2014-15 |
09.09.2014 |
इरादतन चूककर्ताओं पर दिशानिर्देश - गारंटर, उधार देने वाली संस्था और इकाई के बारे में स्पष्टीकरण |
57 |
डीबीआर.सं.सीआईडीबीसी.54/20.16.064/2014-15 |
22.12.2014 |
असहयोगी उधारकर्ता |
58 |
डीबीआर.सं.सीआईडीबीसी.89/20.16.003/2014-15 |
23.04.2015 |
चूककर्ताओं के बारे में सूचना का संग्रह और प्रसार |
59 |
डीबीआर.सं.सीआईडीबीसी.90/20.16.003/2014-15 |
23.04.2015 |
इरदातन चूककर्ताओं के बारे में सूचना का संग्रह और प्रसार |
60 |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
05.06.2015 |
इरादतन कर्ज नहीं चुकाने वालों की समीक्षा समिति का गठन |
61 |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
05.06.2015 |
इरादतन चूककर्ता - पहले से वर्गीकृत और रिपोर्ट किए गए खातों के लिए गैर-पूर्णकालिक निदेशकों के नामों को हटाना। |
62 |
डीबीआर.सीआईडी बीसी. No.17/20.16.003/2016-17 |
29.10.2016 |
इरादतन चूककर्ताओं की तस्वीरें प्रकाशित करना |
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