भा.रि.बैं/विवि/2022-23/95
विवि.धारिता.सं.95/16.13.100/2022-23
16 जनवरी, 2023
मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकिंग कंपनियों में शेयरों अथवा मताधिकारों का
अधिग्रहण तथा धारिता) निदेश, 2023
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 12, 12बी तथा 35ए के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक, इस बात से आश्वस्त होने पर कि ऐसा करना लोकहित में आवश्यक और लाभकारक है, एतद्वारा इसके बाद विनिर्दिष्ट निदेश जारी करता है।
इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी 'बैंकिंग कंपनियों में शेयरों अथवा मताधिकारों का अधिग्रहण तथा धारिता पर दिशानिर्देश' के साथ पढ़ा जा सकता है (दिशानिर्देश)।
उद्देश्य: ये निदेश यह सुनिश्चित करने के प्रयोजन से जारी किए गए हैं कि बैंकिंग कंपनियों का अंतिम स्वामित्व और नियंत्रण अच्छी तरह से विविधीकृत है और बैंकिंग कंपनियों के प्रमुख शेयरधारक निरंतर आधार पर 'उचित और उपयुक्त' हैं।
अध्याय – I
प्रारंभिक
1. लघु शीर्षक और प्रारंभ
1.1 इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकिंग कंपनियों में शेयरों अथवा मताधिकारों का अधिग्रहण तथा धारिता) निदेश, 2023 कहा जाएगा।
1.2 ये निदेश जारी करने की दिनांक से लागू होंगे।
2. प्रयोज्यता
2.1 इन निदेशों के प्रावधान सभी बैंकिंग कंपनियों पर लागू होंगे (जैसा कि बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5 के खंड (सी) में परिभाषित है), जिसमें भारत में कार्यरत स्थानीय क्षेत्र बैंक (एलएबी), लघु वित्त बैंक (एसएफबी) और भुगतान बैंक (पीबी) शामिल हैं1।
3. परिभाषाएँ
3.1 इन निदेशों में, जब तक कि संदर्भ की अन्यथा जरूरत न हो, प्रयोग किए गए शब्द नीचे दिए गए अर्थों को व्यक्त करेंगे, और उनके सजातीय भावों और भिन्नताओं को तदनुसार माना जाएगा:-
(ए) “अधिग्रहण” का अर्थ है, किसी बैंकिंग कंपनी में शेयर2 या मताधिकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष3 रूप से प्राप्त करना/ या प्राप्त करने पर सहमत होना;
(बी) “समग्र धारिता” का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा अपने रिश्तेदारों, सहयोगी उद्यमों और उसके साथ मिलकर काम करनेवाले व्यक्तियों के साथ, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, लाभदायक या अन्यथा, बैंकिंग कंपनी में शेयरों या मताधिकारों का समग्र धारण। [अप्रत्यक्ष धारण पर पहुंचने के उद्देश्य से, अनुबंध I में उल्लिखित शेयरों या मतधिकारों के अधिग्रहण को भी माना जाएगा और यह अप्रत्यक्ष अधिग्रहण उसमें उल्लिखित अधिग्रहण(णों) तक सीमित नहीं है];
(सी) "आवेदक" का अर्थ बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) की धारा 12बी के तहत आवेदन करने वाला व्यक्ति है;
(डी) “ऋण-भार” का वही अर्थ है जो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (शेयरों का पर्याप्त अर्जन और अधिग्रहण) विनियम, 2011 में निर्धारित किया गया है;
(ई) "प्रमुख शेयरधारिता" का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा बैंकिंग कंपनी में चुकता शेयर पूंजी या मताधिकार का पांच प्रतिशत या उससे अधिक की "समग्र धारण";
(एफ) "व्यक्ति" का अर्थ है एक सामान्य व्यक्ति या एक वैध व्यक्ति;
(जी) "रिश्तेदार" का वही अर्थ है जो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (77) और उसके तहत बनाए गए नियमों में परिभाषित किया गया है; और
(एच) "महत्वपूर्ण हिताधिकारी स्वामी" का वही अर्थ है जो कंपनी (महत्वपूर्ण हिताधिकारी स्वामी) नियम, 2018 में कहा गया है।
3.2 अन्य सभी अभिव्यक्तियों, जब तक कि यहां परिभाषित नहीं किया गया है, का वही अर्थ होगा जो उन्हें बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत निर्धारित किया गया है।
अध्याय – II
अधिग्रहण हेतु पूर्व अनुमोदन
4. पूर्व अनुमोदन की प्रक्रिया
4.1 कोई भी व्यक्ति जो अधिग्रहण करने का इरादा रखता है जिसके परिणामस्वरूप किसी बैंकिंग कंपनी4 में प्रमुख शेयरधारिता होने की संभावना है, उसे रिज़र्व बैंक को एक आवेदन प्रस्तुत करके रिज़र्व बैंक की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता है।
4.2 आवेदक से आवेदन और घोषणा प्राप्त होने पर, भारतीय रिज़र्व बैंक प्रस्तावित अधिग्रहण के संबंध में बैंकिंग कंपनी से टिप्पणियां मांग सकता है।
4.3 रिज़र्व बैंक से संदर्भ प्राप्त होने पर, विचार किए जानेवाले पहलुओं की व्यापकता के प्रति पूर्वाग्रह किए बिना, बैंकिंग कंपनी का निदेशक मंडल (बोर्ड), प्रदान की गई जानकारी के साथ-साथ बैंकिंग कंपनी द्वारा किए गए उचित सावधानी के आधार पर, प्रस्तावित अधिग्रहण पर विचार-विमर्श करेगा और व्यक्ति की ‘उचित और उपयुक्त’ स्थिति का आकलन करेगा। संबन्धित बैंकिंग कंपनी सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार करने के बाद इन निदेशों में निर्दिष्ट प्रपत्र ए1 में संबन्धित बोर्ड संकल्प की एक प्रति और सूचना के साथ अपनी टिप्पणी 30 दिनों के भीतर रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करेगी। इस उद्देश्य के लिए, बैंकिंग कंपनियां प्रमुख शेयरधारकों के लिए बोर्ड द्वारा अनुमोदित ‘उचित और उपयुक्त’ मानदंड स्थापित करेंगी, जो, कम से कम, अनुबंध II में उल्लिखित उदाहरणात्मक ‘उचित और उपयुक्त’ मानदंडों पर विचार करेगी।
4.4 रिज़र्व बैंक आवेदक की 'उचित और उपयुक्त' स्थिति का आकलन करने के लिए उचित जांच-पड़ताल करेगा। (क) अनुमति देने या अस्वीकार करने या (ख) आवेदन की तुलना में कम मात्रा में समग्र धारिता के अधिग्रहण के लिए अनुमति प्रदान करने संबंधी रिज़र्व बैंक का निर्णय आवेदक या संबंधित बैंकिंग कंपनी के लिए बाध्यकारी होगा। रिज़र्व बैंक अनुमति प्रदान करते समय आवेदक और संबंधित बैंकिंग कंपनी पर ऐसी शर्तें लगा सकता है जो उचित समझी जाएं।
4.5 इस तरह के अधिग्रहण के फलस्वरूप, यदि किसी भी समय समग्र धारण पाँच प्रतिशत से कम हो जाता है, तो उस व्यक्ति को रिज़र्व बैंक से नए सिरे से अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता होगी यदि वह व्यक्ति बैंकिंग कंपनी की चुकता शेयर पूंजी या कुल मताधिकारों के पाँच प्रतिशत या उससे अधिक तक समग्र धारिता को फिर से बढ़ाने का इरादा रखता है (बैं.वि. अधिनियम 1949 की धारा 12बी की उप-धारा (1) के अनुसार)।
4.6 वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफ़एटीएफ़) के गैर-अनुपालन क्षेत्राधिकारों5 के व्यक्तियों6 को किसी बैंकिंग कंपनी में प्रमुख शेयरधारिता हासिल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हालांकि, ऐसे एफएटीएफ गैर-अनुपालन क्षेत्राधिकारों के मौजूदा प्रमुख शेयरधारकों को अपने निवेश को जारी रखने की अनुमति दी जाएगी, बशर्ते कि रिज़र्व बैंक की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई और अधिग्रहण न हो। तथापि, रिज़र्व बैंक किसी भी समय शेयर धारण किए हुए ऐसे व्यक्तियों की उपयुक्तता पर विचार कर सकता है और कानून और लागू नियमों के अनुसार उनके अनुमेय मतदान अधिकारों पर उपयुक्त आदेश पारित कर सकता है।
अध्याय – III
निरंतर निगरानी की व्यवस्था
5. समुचित सावधानी
5.1 बैंकिंग कंपनी लगातार निगरानी करेगी कि निम्नलिखित व्यक्ति निरंतर आधार पर 'उचित और उपयुक्त' हैं:
(ए) इसके प्रमुख शेयरधारक7 जिन्होंने अनुमोदित अधिग्रहण पूरा कर लिया है;
(बी) वे आवेदक जिनके लिए संबंधित बैंकिंग कंपनी द्वारा प्रमुख शेयरधारिता के अनुमोदन के लिए रिज़र्व बैंक को टिप्पणियां दी गई हैं; और
(सी) वे आवेदक जिन्हें रिज़र्व बैंक द्वारा शेयरधारिता के लिए अनुमोदित किया गया हैं, लेकिन अभी तक अनुमोदित अधिग्रहण8 को पूरा नहीं किया हैं।
5.2 इसके अलावा, एक बैंकिंग कंपनी:
(ए) दिशानिर्देशों से सम्बद्ध प्रपत्र ए में दी गई जानकारी में किसी भी परिवर्तन या अन्य गतिविधि जो प्रमुख शेयरधारक/आवेदक की ‘उचित और उपयुक्त’ स्थिति पर प्रभाव डाल सकते हैं, इस बारे में निरंतर आधार पर जानकारी प्राप्त करने का तंत्र स्थापित करेगी;
(बी) प्रमुख शेयरधारकों/आवेदकों के संबंध में किसी मामले/सूचना की जांच करना, जो ऐसे व्यक्तियों को प्रमुख शेयरधारक के रूप में बने रहने/भविष्य में बनने के लिए 'उचित और उपयुक्त' स्थिति को प्रभावित करती हो, उस पर रिपोर्ट तुरंत रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करना;
(सी) वित्तीय वर्ष की समाप्ति के एक महीने के भीतर, प्रमुख शेयरधारक/आवेदक से दिशा-निर्देशों के साथ संलग्न प्रपत्र ए में प्रदान की गई जानकारी में किसी भी बदलाव पर एक रिपोर्ट प्राप्त करना; और
(डी) प्रदान की गई जानकारी और स्वयं की जांच के आलोक में ऐसे व्यक्ति (व्यक्तियों) की 'उचित और उपयुक्त' स्थिति के बारे में आकलन करना और अपने प्रमुख शेयरधारकों/आवेदकों की 'उचित और उपयुक्त' स्थिति के संबंध में अपने बोर्ड की टिप्पणियों को विनियमन विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, को प्रति वर्ष 30 सितंबर तक अग्रेषित करना।
5.3 बैंकिंग कंपनियों द्वारा महत्वपूर्ण हिताधिकारी स्वामी में किसी भी परिवर्तन अथवा किसी व्यक्ति द्वारा प्रमुख शेयरधारक की प्रदत्त इक्विटी शेयर पूंजी के 10 प्रतिशत अथवा उससे अधिक की सीमा तक अधिग्रहण के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए एक तंत्र स्थापित किया जाएगा। सूचना प्राप्त करने में, बैंकिंग कंपनियों को दिशा-निर्देशों के साथ संलग्न प्रपत्र ए में मांगी गई सूचना द्वारा भी निर्देशित किया जाएगा। इस प्रकार प्राप्त सूचना के आधार पर, संबंधित बैंकिंग कंपनी द्वारा क्या प्रमुख शेयरधारक 'उचित और उपयुक्त' है अथवा नहीं यह सुनिश्चित करने के लिए समुचित सावधानी बरती जाएगी । ऐसे परिवर्तनों की सूचना प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर, बैंकिंग कंपनी द्वारा बोर्ड नोट और संकल्प के साथ एक संक्षिप्त रिपोर्ट विनियमन विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत किया जाएगा।
6. बैंककारी अधिनियम, 1949 की धारा 12बी (1) के उल्लंघन का पता लगाना
6.1 प्रत्येक बैंकिंग कंपनी द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए एक निरंतर निगरानी तंत्र स्थापित किया जाएगा कि प्रत्येक प्रमुख शेयरधारक ने शेयरधारिता/ मताधिकारों के लिए रिज़र्व बैंक की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली है। बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 12बी की उप-धारा (1) के किसी भी उल्लंघन की सूचना तुरंत रिज़र्व बैंक को दी जाएगी। कोई भी प्रमुख शेयरधारक9, जो बैं. वि. अधिनियम, 1949 की धारा 12बी की उप-धारा (3) के अंतर्गत आता है, और यदि उसने रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन प्राप्त नहीं किया है, तो वह प्रमुख शेयरधारिता के लिए रिज़र्व बैंक का अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही मतदान के अधिकार का प्रयोग कर सकता है।
6.2 अधिग्रहण / समग्र धारिता चुकता शेयर पूंजी या बैंकिंग कंपनी के मताधिकारों के पांच प्रतिशत से कम होने के बाद भी, यदि बैंक के पास यह विश्वास करने का उचित कारण हो कि शेयरधारक द्वारा अपनाई गई पद्धतियां सांविधिक आवश्यकताओं को दरकिनार करने के लिए हैं, तो बैंकिंग कंपनी द्वारा बोर्ड संकल्प और आवश्यक दस्तावेजों की एक प्रति के साथ एक संदर्भ रिपोर्ट रिज़र्व बैंक के समक्ष प्रस्तुत की जानी आवश्यक है।
6.3 बैंकिंग कंपनी द्वारा अपने बोर्ड को निरंतर निगरानी व्यवस्था पर आवधिक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ बैं.वि. अधिनियम, 1949 की धारा 12बी की उप-धारा (5) के अनुपालन का मूल्यांकन शामिल होगा।
7. बैंकिंग कंपनी में विविधीकृत शेयरधारिता
7.1 बैंकिंग कंपनियां (पेमेंट्स बैंकों को छोड़कर) जो इन निदेशों के जारी होने की तारीख में परिचालन में हैं और जहां किसी व्यक्ति की समग्र धारिता दिशा-निर्देशों के अनुरूप नहीं है, ऐसे मामले में बैंकिंग कंपनियों द्वारा इन निदेशों के जारी होने की तारीख से छह महीने के भीतर शेयरधारिता विलयन योजना प्रस्तुत की जाएगी।
8. रिपोर्टिंग आवश्यकताएं
8.1 शेयरों को जारी10 करने और आवंटित करने के पश्चात, बैंकिंग कंपनी द्वारा आवंटन प्रक्रिया के पूर्ण होने के 14 दिनों के भीतर प्रपत्र ए2 में विवरण की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी। बैंकिंग कंपनी द्वारा यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि रिज़र्व बैंक द्वारा किसी व्यक्ति के लिए स्वीकृत सीमा का उल्लंघन नहीं किया जाए।
8.2 बैंकिंग कंपनी द्वारा एक कार्य दिवस के भीतर पर्यवेक्षण विभाग को दिशा-निर्देशों के साथ संलग्न प्रपत्र बी में प्रवर्तक (प्रवर्तकों)11 और प्रवर्तक समूह द्वारा रिपोर्ट किए गए शेयरों के ऋण-भार पर विवरण भेजना आवश्यक होगा। इसके अलावा, बैंकिंग कंपनी द्वारा अपने बोर्ड के समक्ष रिपोर्ट रखी जाएगी और घटना की तारीख से 30 दिनों के भीतर विनियमन विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।
अध्याय IV
निरस्तीकरण और अन्य प्रावधान
9. निम्नलिखित तीन मास्टर निदेशों को उपयुक्त संशोधनों के साथ इन निदेशों में समेकित किया गया है, और इस प्रकार वे इन निदेशों के जारी होने की तिथि से निरस्त किए जाते हैं:
10. रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निम्नलिखित परिपत्रों में निहित निर्देश/दिशानिर्देश पहले ही मास्टर निदेशों के माध्यम से निरस्त कर दिए गए थे (जैसा कि नीचे उल्लेख किया गया है), और इस प्रकार वे निरस्त बने हुए हैं:
(ए) मास्टर निदेश सं.डीबीआर.पीएसबीडी.सं.56/16.13.100/2015-16 दिनांक 19 नवंबर 2015 - भारतीय रिज़र्व बैंक (निजी क्षेत्र के बैंकों में शेयरों के अधिग्रहण अथवा मताधिकार के लिए पूर्व अनुमोदन) - निदेश, 2015
क्र. सं. |
परिपत्र की तिथि |
परिपत्र संख्या |
विषय |
(i) |
23 मई, 1991 |
बैंपविवि.सं.एफओएल.बीसी.129/सी.249-91 |
सभी भारतीय निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों को संबोधित बैंकों के शेयरों का हस्तांतरण |
(ii) |
16 अप्रैल, 1994 |
बैंपविवि.सं.44/16.13.100/94 |
सभी भारतीय निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों को नियंत्रणाधीन हित प्राप्त करने के लिए बैंकों के शेयरों का अधिग्रहण |
(iii) |
21 सितम्बर, 1999 |
बैंपविवि.सं.पीएसबीएस.बीसी.349/16.13.100/99-2000 |
सभी भारतीय निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों को संबोधित शेयरों का अंतरण |
(iv) |
31 मई, 2000 |
बैंपविवि.सं.पीएसबीएस.बीसी.182/16.13.100/99-2000 |
सभी भारतीय निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों को संबोधित शेयरों का अंतरण |
(v) |
18 जुलाई, 2000 |
बैंपविवि.सं.पीएसबीएस.बीसी.05/16.13.100/2000-2001 |
सभी भारतीय निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों को संबोधित शेयरों का अंतरण |
(vi) |
7 नवंबर, 2002 |
डीबीओडी.सं.पीएसबीएस.बीसी.41/16.13.100/2002-2003 |
शेयरों का अंतरण - निजी क्षेत्र के सभी भारतीय बैंकों को संबोधित रिज़र्व बैंक की पूर्व स्वीकृति |
(vii) |
3 फरवरी, 2004 |
डीबीओडी.सं.पीएसबीएस.बीसी.64/16.13.100/2003-04 |
सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को संबोधित निजी क्षेत्र के बैंकों में शेयरों के अंतरण/आवंटन की स्वीकृति के लिए दिशानिर्देश |
(viii) |
13 अगस्त, 2015 |
डीबीओडी.सं.पीएसबीडी.155/16.13.100/2004-05 |
निजी क्षेत्र के सभी बैंकों को संबोधित बैंकों के शेयरों का अंतरण। |
(ix) |
26 अक्तूबर, 2005 |
दिनांक 26 अक्तूबर 2005 का डीबीओडी.सं.पीएसबीडी435/16.13. 100/2005-06 |
निजी क्षेत्र के सभी बैंकों को संबोधित बैंकों के शेयरों का अंतरण। |
(बी) दिनांक 21 अप्रैल 2016 के मास्टर निदेश डीबीआर.पीएसबीडी.सं.95/16.13.100/2015-16 - भारतीय रिज़र्व बैंक (निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा शेयरों का निर्गम और मूल्य निर्धारण) निदेश, 2016
सं. क्र. |
परिपत्र की तिथि |
परिपत्र संख्या |
विषय |
(i) |
17 जून, 1994 |
डीबीओडी.सं.बीसी.76/16.13.100/94 |
निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा शेयर जारी करना |
(ii) |
10 जुलाई, 1998 |
डीबीओडी.सं.पीएसबीएस.बीसी.72/16.13.100/98-99 |
निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा शेयर जारी करना |
(iii) |
25 जून, 2005 |
डीबीओडी.सं.पीएसबीडी. बीसी.99/16.13.100/2004-05 |
निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा राइट्स इश्यू – शेयरों के हस्तांतरण/आवंटन की स्वीकृति |
(iv) |
20 अप्रैल, 2010 |
डीबीओडी.सं.पीएसबीडी. बीसी.92/16.13.100/2009-2010 |
निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा शेयरों का निर्गम और मूल्य निर्धारण |
(सी) दिनांक 12 मई 2016 के मास्टर निदेश डीबीआर.पीएसबीडी.सं. 97/16.13.100/2015-16 - भारतीय रिज़र्व बैंक (निजी क्षेत्र के बैंकों में स्वामित्व) निदेश, 2016
सं. क्र. |
परिपत्र की तिथि |
परिपत्र संख्या |
विषय |
(i) |
28 फरवरी, 2005 |
डीबीओडी.सं.पीएसबीडी.बीसी.99/16.13.100/2004-05 |
निजी क्षेत्र के बैंकों में स्वामित्व और शासन - निम्नलिखित पैरा को निरस्त किया जाता है: 1(iii), (iv), 2, 3 (i), (ii), (iv) & (v), 4, 5, 7, 7.1, 7.2, 7.3, 9 (i) to (iv), 10 (i), 11 |
(ii) |
5 फरवरी, 2007 |
डीबीओडी.सं.पीएसबीडी.बीसी.7269/16.13.100/2006-07 |
अमेरिकी निक्षेपागार रसीदें (एडीआर) / वैश्विक निक्षेपागार रसीदें (जीडीआर) जारी करना - निक्षेपागार करार. |
11. उक्त परिपत्रों/निदेशों के तहत दिए गए सभी अनुमोदन/स्वीकृतियां इन निदेशों के तहत दिए गए मानी जाएगी।
अनुबंध I
शेयरों या मताधिकारों का अप्रत्यक्ष अधिग्रहण
किसी व्यक्ति (प्राकृतिक या कानूनी) द्वारा शेयरों या मतदान अधिकारों के अप्रत्यक्ष अधिग्रहण में, अन्य के बीच, इस तरह का अधिग्रहण शामिल हो सकता है:
(i) कोई कॉर्पोरेट निकाय उसी प्रबंधन या नियंत्रण या स्वामी13 के अधीन है जिससे वह व्यक्ति और उसके निदेशक संबंधित हैं;
(ii) व्यक्ति के निदेशक और व्यक्ति के प्रबंधन के साथ जुड़ा कोई अन्य व्यक्ति;
(iii) व्यक्ति का प्रवर्तक और प्रवर्तक समूह14;
(iv) म्युचुअल फंड, इसके प्रायोजक, न्यास, न्यासी कंपनी और आस्ति प्रबंधन कंपनी;
(v) सामूहिक निवेश योजना और उसकी सामूहिक निवेश प्रबंधन कंपनी, न्यासी और व्यक्ति की न्यासी कंपनी;
(vi) उद्यम पूंजी निधि, इसके प्रायोजक, न्यास, न्यासी कंपनी और आस्ति प्रबंधन कंपनी;
(vii) वैकल्पिक निवेश कोष, इसके प्रायोजक, ट्रस्टी, ट्रस्टी कंपनी और प्रबंधक के माध्यम से अधिग्रहण;
(viii) पोर्टफोलियो प्रबंधक और उसका ग्राहक;
(ix) कोई भी व्यक्ति15 जो एक या अधिक निवेशकों के निधि का प्रबंधन करता है और उनकी ओर से मतदान के अधिकार का प्रयोग करता है या बैंकिंग कंपनी में मतदान के अधिकार के प्रयोग के तरीके को निर्देशित करता है;
(x) व्यक्ति पर नियंत्रण16 रखने वाला कोई अन्य व्यक्ति;
(xi) मतदान के तरीके पर किसी विशिष्ट आदेश के बिना प्रॉक्सी मतदाता17 (कॉर्पोरेट प्रतिनिधि और पंजीकृत सदस्यों के रिश्तेदारों के अलावा) ।
अनुबंध II
आवेदकों/प्रमुख शेयरधारकों की "उचित और उपयुक्त" स्थिति का निर्धारण करने के लिए उदाहरण स्वरूप मानदंड
(i) बैंकिंग कंपनी में पांच प्रतिशत या अधिक लेकिन 10 प्रतिशत से कम के अधिग्रहण के लिए:
(ए) वित्तीय / गैर-वित्तीय मामलों और कर कानूनों के अनुपालन में सत्यनिष्ठा, प्रतिष्ठा और ट्रैक रिकॉर्ड,
(बी) गंभीर प्रकृति की कोई कार्यवाही, या ऐसी किसी भी आसन्न कार्यवाही या किसी भी जांच के बारे में सूचित किया गया है जिससे ऐसी कार्यवाही हो सकती है,
(सी) बेईमानी, अक्षमता या कदाचार के कारण जनता के सदस्यों को वित्तीय नुकसान से बचाने के लिए डिज़ाइन किए गए किसी भी कानून के तहत अपराध के लिए सजा के परिणामस्वरूप पिछले व्यावसायिक आचरण और गतिविधियों का रिकॉर्ड या साक्ष्य,
(डी) प्रासंगिक विनियामक, राजस्व प्राधिकरणों, जांच एजेंसियों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों आदि के साथ किए गए उचित सावधानी के परिणाम, जैसा उचित माना जाए,
(ई) गंभीर वित्तीय कदाचार, वित्तीय दायित्वों पर चूक सहित या आवेदक को दिवालिया घोषित किया गया था या नहीं,
(एफ) अधिग्रहण के लिए धन के स्रोत की विश्वसनीयता,
(जी) जहां आवेदक निकाय कॉर्पोरेट है, ऐसे तरीके से संचालन के लिए ट्रैक रिकॉर्ड या प्रतिष्ठा जो अच्छे कॉर्पोरेट अभिशासन के मानकों के अनुरूप है, व्यक्तियों और निकाय कॉर्पोरेट से जुड़े अन्य संस्थाओं के मूल्यांकन के अलावा वित्तीय मजबूती और पारदर्शिता जैसा कि ऊपर वर्णित है।
(एच) बैंकिंग कंपनियों में शेयरों या मताधिकारों के अधिग्रहण और प्रतिधारण पर दिशानिर्देशों का पालन
(ii) बैंकिंग कंपनी में 10 प्रतिशत या अधिक के अधिग्रहण के लिए:
(ए) उपरोक्त (i) में निर्धारित सभी पहलू।
(बी) समूह संस्थाओं का विवरण, यदि आवेदक किसी समूह से संबंधित है।
(सी) बैंकिंग कंपनी के लिए निरंतर वित्तीय सहायता के स्रोत के रूप में अधिग्रहण के लिए निधि का स्रोत और स्थिरता और वित्तीय बाजारों तक पहुंचने की क्षमता।
(डी) कारोबार के अधिग्रहण में किसी भी अनुभव सहित आवेदक का कारोबार रिकॉर्ड और अनुभव।
(ई) जहाँ तक आवेदक का कॉर्पोरेट ढांचा बैंकिंग कंपनी के प्रभावी पर्यवेक्षण और विनियमन के अनुरूप होगा।
(एफ) बैंकिंग कंपनी के कारोबार के भविष्य के संचालन और विकास के लिए आवेदक की योजनाओं की सुदृढ़ता और व्यवहार्यता।
(जी) शेयरधारक समझौते और बैंकिंग कंपनी के नियंत्रण और प्रबंधन पर उनका प्रभाव।
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