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अनुसंधान और आंकड़े

रिज़र्व बैंक में बेहतर, नीति उन्मुखी आर्थिक शोध करने, आंकड़ों का संकलन करने और ज्ञान साझा करने की समृद्ध परंपरा है।

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आरबीआई बुलेटिन – जून 2024

19 जून 2024

आरबीआई बुलेटिन – जून 2024

रिज़र्व बैंक ने आज जून 2024 के लिए मासिक बुलेटिन जारी किया। बुलेटिन में तीन भाषण, तीन आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

तीन आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारतीय अर्थव्यवस्था के वित्तीय स्टॉक और निधियों का प्रवाह 2021-22; और III. भारत का जमा बीमा @60: पुनरावलोकन और संभावना।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

2024 की पहली तिमाही में वैश्विक संवृद्धि आघात-सह बनी रही। कई केंद्रीय बैंकों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति में गिरावट के जवाब में कम प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति रुख की ओर रुख किया है। भारत में, उच्च आवृत्ति संकेतक बताते हैं कि 2024-25 की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी संवृद्धि मोटे तौर पर पिछली तिमाही में प्राप्त की गई गति को बनाए रखेगी। दक्षिण-पश्चिम मानसून के समय से पहले आने से कृषि की संभावनाएं और बढ़ गई हैं। मूल घटक में निरंतर नरमी के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति धीरे-धीरे कम हो रही है, हालांकि अस्थिर और उच्च खाद्य कीमतों के कारण अपस्फीति का मार्ग बाधित हो रहा है।

II. भारतीय अर्थव्यवस्था के वित्तीय स्टॉक और निधियों का प्रवाह 2021-22

सूरज एस, इशू ठाकुर और मौसमी प्रियदर्शिनी द्वारा

यह आलेख भारतीय अर्थव्यवस्था के संस्थागत क्षेत्रों में 2021-22 के दौरान वित्तीय स्टॉक और प्रवाह (एफएसएफ) में अंतर्निहित रुझान प्रस्तुत करता है। वित्तीय प्रवाह का विश्लेषण, निधियों के स्रोतों और उपयोगों को मैप करके विभिन्न क्षेत्रों में अंतर्संबंधों की जानकारी प्रदान करता है। वार्षिक संकलन चक्र पर आधारित गैर-समेकित विस्तृत विवरण भी आलेख के साथ जारी किए जा रहे हैं।

मुख्य बातें:

  • 2021-22 के दौरान वित्तीय स्टॉक और प्रवाह (एफएसएफ) के क्षेत्रीय विश्लेषण से संकेत मिलता है कि घरेलू और वित्तीय निगम, सामान्य सरकार और निजी गैर-वित्तीय निगमों के घाटे को समायोजित करते हुए अधिशेष क्षेत्र बने रहे।

  • घरेलू मांग में सुधार के साथ, अर्थव्यवस्था 2021-22 में निवल उधारकर्ता की स्थिति (चालू खाता घाटे को प्रतिबिंबित करते हुए) पर लौट आई, जिसका मुख्य कारण अन्य डिपॉजिटरी निगमों (ओडीसी) और अन्य वित्तीय निगमों (ओएफसी) से निवल संसाधन प्रवाह में कमी तथा परिवारों एवं निजी गैर-वित्तीय निगमों से कम निधीयन (फंडिंग) है।

  • चूंकि विभिन्न क्षेत्रों में स्रोतों की तुलना में निधियों का उपयोग अधिक था, अतः घरेलू क्षेत्र की निवल वित्तीय संपत्ति पिछले वर्ष की तुलना में मार्च 2022 के अंत में जीडीपी के 29.8 प्रतिशत तक कम हो गई; तथापि, यह महामारी-पूर्व स्थिति (2019-20 में 23.8 प्रतिशत) से काफी ऊपर थी।

  • मार्च 2022 के अंत तक परिवारों की निवल वित्तीय संपत्ति (एनएफडब्ल्यू) जीडीपी की 93.5 प्रतिशत थी, यद्यपि यह पिछले वर्ष की तुलना में कम थी, लेकिन 2019-20 में यह महामारी-पूर्व एनएफडब्ल्यू के 82.8 प्रतिशत से अधिक थी।

III. भारत का जमा बीमा @60: पुनरावलोकन और संभावना

आशुतोष यशवंत रारविकर, अविजित जोर्डर, अनूप कुमार द्वारा

यह आलेख भारत की जमा बीमा प्रणाली द्वारा अपनाए गए मार्ग का वर्णन करता है, इसकी उपलब्धियों का उल्लेख करता है तथा इसके आगे की यात्रा के लिए एजेंडा सुझाता है।

मुख्य बातें:

  • जमा बीमा का प्रसार और दायरा विश्व भर में धीरे-धीरे विस्तारित हुआ है, विशेषकर वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से।

  • वित्तीय स्थिरता और छोटे जमाकर्ताओं की सुरक्षा के उद्देश्य से स्थापित भारत की जमा बीमा प्रणाली, अपने अस्तित्व के साठ वर्ष पूरे करने के साथ एक माइलस्टोन तक पहुँच गई है। इसकी प्रमुख उपलब्धियों में, बढ़ी हुई कवरेज सीमा, दावों का त्वरित निपटान, प्रीमियम में संशोधन, मजबूत जमा बीमा निधि, विवेकपूर्ण खजाना प्रबंधन और जमाकर्ता जागरूकता के लिए पहल शामिल हैं।

  • अनुभवजन्य अनुमानों से संकेत मिलता है कि निकट भविष्य में आरक्षित निधि अनुपात1 में निरंतर वृद्धि होने की आशा है।

  • भविष्य के एजेंडे में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

    o जमा बीमाकर्ताओं का अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईएडीआई) द्वारा जारी मूल सिद्धांतों के साथ पूर्ण संरेखण प्राप्त करना।

    o जमाकर्ताओं को सीधे भुगतान जैसी पद्धतियों के माध्यम से त्वरित दावा निपटान।

    o लिखतों के उचित मिश्रण और ब्याज दर संवेदनशीलता में कमी के माध्यम से सक्रिय राजकोष प्रबंधन।

    o सुरक्षा और दक्षता के लिए भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण।

    o मानव संसाधन विकास के साथ क्षमता संवर्धन।

    o फिनटेक में उभरते नवाचारों के अनुरूप जमा बीमा कवरेज तैयार करना।

    o आकस्मिकताओं के दौरान अतिरिक्त (बैक अप) निधीयन की व्यवस्था विकसित करना।

    o जमा बीमा कवरेज की समय-समय पर समीक्षा।

    o वित्तीय शिक्षा के माध्यम से जमा बीमा पर जन जागरूकता बढ़ाना और उपयुक्त संचार कार्यनीतियों के माध्यम से कमियों को दूर करना।

बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(पुनीत पंचोली)  
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/524


1 आरक्षित निधि अनुपात को बीमाकृत जमा राशि (आईडी) से जमा बीमा निधि (डीआईएफ) के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है।

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