भारिबैं/2015-16/2
डीसीबीआर.बीपीडी (पीसीबी/ आरसीबी).एमसी.सं.2/14.01.062/2015-16
01 जुलाई 2015
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
महोदया / महोदय
निदेशक मंडल पर मास्टर परिपत्र - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
कृपया उपर्युक्त विषय पर 01 जुलाई 2014 का हमारा मास्टर परिपत्र शबैंवि.बीपीडी (पीसीबी)एमसी.सं.8/12.05.001/2014-15 (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेब साइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2015 तक जारी सभी अनुदेशों/ दिशानिर्देशों को समेकित और अद्यतन किया गया है।
भवदीया
(सुमा वर्मा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक
संलग्नक: यथोक्त
विषय-वस्तु
मास्टर परिपत्र
निदेशक मंडल
1. निदेशक मंडल का गठन
1.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक में निहित शक्तियों के अनुसार बैंकिंग से संबंधित कार्यों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण में कार्य कर रहे हैं।
1.2 तथापि, इन बैंकों के प्रशासनिक तथा प्रबंधकीय कार्य, निदेशकों के चुनाव तथा उनकी नियुक्ति आदि संबंधित राज्य सहकारी सोसायटियां अधिनियम और बहुराज्य सहकारी सोसायटियां अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर संबंधित राज्य/ केंद्र सरकार की परिधि में आती हैं। विभिन्न सहकारी सोसायटियां अधिनियम, उनके अंतर्गत बनाई गई उप-विधियां और मॉडल उप-विधियां इन बैंकों के निदेशकों की ड्यूटियों, कार्यों तथा दायित्वों को स्पष्ट करती हैं।
1.3 चूँकि निदेशकों को सदस्यों (सहयोजित तथा नामित निदेशकों को छोड़कर) में से चुना जाता है, इसलिए जो व्यक्ति एक सदस्य के रूप में प्रवेश के लिए पात्र नहीं है वह बैंक के प्रवर्तक के रूप में कार्य नहीं कर सकता या बैंक का निदेशक नही बन सकता। विशेष रूप से व्यक्तिगत हैसियत से या किसी संस्था के स्वत्वधारी/ साझीदार/ कर्मचारी/निदेशक की हैसियत से उधार देने, वित्त पोषण तथा निवेश गतिविधियों में शामिल व्यक्ति और नैतिक पतन सहित किसी प्रकार के दंडनीय अपराध में अभियोजित व्यक्ति भी मॉडल उप-विधि सं. 9 के खंड ख (ii) तथा/ या सहकारी सोसायटी अधिनियम (संबंधित) में निहित उपबंधों के अनुसार पात्र नहीं हैं। निदेशक मंडल प्रमुख रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक तथा राज्य/ केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनाने से संबंधित है। निदेशक मंडल को दिन-प्रतिदिन का प्रशासन कार्य मुख्य कार्यपालक अधिकारी के जिम्मे छोड़कर बैंक की कार्यप्रणाली पर संपूर्ण पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण भी रखना चाहिए।
1.4 निदेशक मंडलों के संबंध में श्री माधव दास की अध्यक्षता में बनी "शहरी सहकारी बैंकों पर समिति" द्वारा की गई और बैंकों द्वारा उन्हें अपनाए जाने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा संस्तुत की गई सिफ़ारिशें अनुबंध 1 में दर्शाई गई हैं ।
1.5 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकें के निदेशकों को जानकार और ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए। उन्हें अपनी जिम्मेदारी सुसंगत रूप से निभानी चाहिए और बैंक के मामलों का सहजता एवं दक्षतापूर्वक प्रबंधन करने के लिए उचित नेतृत्व प्रदान करना चाहिए। इसके लिए निदेशक मंडलों में एक निश्चित स्तर की व्यावसायिकता की आवश्यकता होती है ।
1.6 निदेशक मंडल में व्यावसायिकता सुनिश्चित करने के लिए बैंकों में कम से कम दो निदेशक समुचित बैंकिंग अनुभव (मध्य/वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर) या विधि, बैंक लेखाकरण या वित्त जैसे क्षेत्र से संबंधित व्यावसायिक योग्यताओं वाले होने चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए बैंकों की उप-विधियों में यथोचित उपबंध होना चाहिए। तथापि, वेतनभोगी बैंकों की सदस्यता की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उनके मामले में इन अनुदेशों का आग्रह नहीं किया जाएगा।
2. निदेशकों की भूमिका - क्या करें और क्या न करें
2.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक के निदेशक मंडलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उचित ऋण नीतियों को अपनाया गया है और उनका अनुपालन किया जाता है।
2.2 यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भारतीय रिज़र्व बैंक/ सरकार द्वारा जारी नीतियों से संबंधित सभी परिपत्र तथा अन्य सामग्री का अवलोकन निदेशक मंडल के प्रत्येक सदस्य द्वारा किया जाता है और उन्हें उचित कार्रवाई के लिए निदेशक मंडल के समक्ष रखा जाता है।
2.3 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशकों के मार्गदर्शन के लिए क्या करें और क्या न करें की एक सूची नीचे दी गई हैं। यह सूची उदाहरणात्मक हैं, परिपूर्ण नहीं और इसे संबंधित बैंकों की सहकारी विधि तथा/ या उप-विधियों में वर्णित निदेशक मंडल की निर्धारित ड्युटियों, उत्तरदायित्वों या अधिकारों के विकल्प के रूप में नहीं लिया जाना है ।
क्या करें
(ए) अनुशासन तथा संबद्धता: निदेशकों को
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निदेशक मंडल की बैठकों में नियमित एवं सक्रिय रूप से उपस्थित रहना चाहिए। उन्हें सहयोग की भावना से काम करना चाहिए।
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निदेशक मंडल के पत्रों का विस्तार से अध्ययन करना चाहिए और उन्हें निदेशक मंडल की बैठकों के दौरान सूचना प्राप्त करने के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी से मार्गदर्शन प्राप्त करें।
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अध्यक्ष से निदेशक मंडल के पत्र और अनुवर्ती कार्रवाई संबंधी रिपोर्ट एक निश्चित समय सीमा में प्रस्तुत करने के लिए कहना चाहिए।
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बैंक के व्यापक उद्देश्यों तथा सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित नीति से परिचित होना चाहिए।
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सामान्य नीति निर्धारण के मामले में उन्हें स्वयं को पूरी तरह संबद्ध करना चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंक के कार्य-निष्पादन की निदेशक मंडल स्तर पर पर्याप्त रूप से निगरानी की जाती है।
(बी) रचनात्मक और विकासात्मक भूमिका : निदेशकों को :
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बैंक के बेहतर प्रबंधन तथा मूल्यवान योगदानों के लिए सभी रचनात्मक विचारों का स्वागत करना चाहिए।
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जितना संभव हो, प्रबंधन को अपनी बुद्धिमानी मार्गदर्शन तथा ज्ञान देने की कोशिश करनी चाहिए।
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अर्थव्यवस्था की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना चाहिए, जनता के प्रति प्रबंधन की जिम्मेदारी का निर्वहन करने तथा ग्राहक सेवा में सुधार करने के उपाय निर्धारित करने में सहायता करनी चाहिए और सामान्य रूप से बैंक प्रबंधन में रचनात्मक रूप से सहायक होना चाहिए।
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समूह के रूप में न कि प्रायोजक के रूप में कार्य करना चाहिए और व्यक्तिगत प्रस्तावों के प्रति पूर्वाग्रहग्रस्त नहीं होना चाहिए। प्रबंधन से यह अपेक्षित है कि वे अपनी तरफ़ से संपूर्ण तथ्य तथा पूरे कागजात अग्रिम रूप से प्रस्तुत किया जाए।
(सी) व्यवसाय विशेष योगदान
निदेशकों को बैंक की निम्नलिखित कार्यप्रणाली पर ध्यान देना चाहिए :
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भारतीय रिज़र्व बैंक/ सरकार की मौद्रिक तथा ऋण नीतियों का अनुपालन
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नकदी आरक्षित निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात का अनुपालन
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निधियों का प्रभावी प्रबंधन और लाभप्रदता में सुधार करना
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आय-निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण, अनर्जक आस्तियों के प्रावधानीकरण पर दिशा-निर्देश का अनुपालन
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प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र/ कमजोर वर्गों को निधियों का अभिनियोजन
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अतिदेय तथा वसूली - सुनिश्चित किया जाए कि वसूलियां तेजी से की जा रही हैं और अतिदेय राशियों को न्यूनतम कर दिया गया है।
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भारतीय रिज़र्व बैंक के निरीक्षण/ सांविधिक लेखा परीक्षा रिपोर्टों पर की गई कार्रवाई की समीक्षा
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सतर्कता, धोखाधड़ियां और दुर्विनियोजन
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आंतरिक नियंत्रण प्रणाली तथा आंतरिक रख रखाव को सुदृढ़ करना जैसे लेखा बहियों का उचित ढंग से रखा जाना और आवधिक समाधान करना
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भारतीय रिज़र्व बैंक/ सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न मदों की समीक्षा
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ग्राहक सेवा
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अच्छी प्रबंधन सूचना प्रणाली का विकास
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कंप्यूटरीकरण
क्या न करें
(ए) हस्तक्षेप नहीं करना : निदेशकों को :
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बैंक के दैनिक कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
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नेमी और दैनिक कामकाज तथा प्रबंधन के कार्यों में स्वयं को शामिल नहीं करना चाहिए ।
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बैंक के किसी अधिकारी/ कर्मचारी को किसी मामले में अनुदेश/ निदेश नहीं भेजना चाहिए ।
(बी) अप्रायोजन: निदेशकों को
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ऋण प्रस्ताव, बैंक के परिसर के लिए भवन तथा स्थल, ठेकेदारों, वास्तुकारों, डाक्टरों वकीलों आदि की सूची या पैनेल प्रायोजित नहीं करना चाहिए ।
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किसी प्रकार की सुविधा मंजूर कराने के लिए संपर्क नहीं करना चाहिए या प्रभाव नहीं डालना चाहिए।
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निदेशक मंडल के उस विचार-विमर्श में भाग नहीं लेना चाहिए जिसमें कोई ऐसा प्रस्ताव विचारार्थ आता हो जिसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके हित निहित हों। उन्हें काफी पहले मुख्य कार्यपालक अधिकारी तथा निदेशक मंडल के समक्ष अपना हित प्रकट कर देना चाहिए ।
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भर्ती या पदोन्नति के लिए किसी उम्मीदवार को प्रायोजित नहीं करना चाहिए या चयन/ नियुक्ति की प्रक्रिया में या स्टाफ के स्थानांतरण में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
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कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जो स्टाफ द्वारा अनुशासन बनाए रखने, उनके सदाचारण तथा इमानदारी में हस्तक्षेप करता हो तथा/ या उसे खंडित करता हो।
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कार्मिक प्रशासन से संबंधित किसी मामले से स्वयं को संबद्ध नहीं करना चाहिए - चाहे वह किसी कर्मचारी की नियुक्ति, स्थानांतरण तैनाती या पदोन्नति या उसकी व्यक्तिगत व्यथा के समाधान से संबंधित हो।
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किसी मामले में अपने पास आने वाले व्यक्तिगत अधिकारी/ कर्मचारी या यूनियनों को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।
(सी) गोपनीयता
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निदेशकों को बैंक के किसी ग्राहक से संबंधित किसी सूचना को किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए क्योंकि वह गोपनीयता तथा विश्वस्तता को शपथ से वचनबध्द हैं ।
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निदेशकों से अपेक्षा की जाती है कि वे बैंक की कार्यसूची पत्र/ नोट की गोपनीयता सुनिश्चित करेंगे। बैंठक के बाद निदेशक मंडल के पत्र साधारणतया बैंक को लौटा दिए जाएं।
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निदेशकों को बैठकों में विचार - विमर्श की जाने वाली कार्यसूची की मदों के संबंध में विभिन्न विभागों द्वारा रिकार्ड किए गए पत्रों/ फाइलों/ नोटस्/ संवीक्षा आदि सीधे नहीं मांगना चाहिए। कोई निर्णय लेने के लिए उन्हें जिन सूचनाओं/ स्पष्टीकरणों की आवश्यकता हो वे सब उन्हें कार्यपालक द्वारा उपलब्ध कराए जाएं।
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कोई निदेशक विजिटिंग कार्ड या पत्र शीर्ष पर निदेशक के अपने पद का उल्लेख कर सकता है लेकिन बैंक के विशिष्ट डिजाइन के लोगो को अपने विजिटिंग कार्ड/ पत्र शीर्ष पर प्रदर्शित नहीं करना चाहिए ।
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निदेशकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सामान्य सदस्यों के लाभ के लिए बैंक की निधियों का उचित एवं न्यायसंगत ढंग से उपयोग किया जाता है ।
3. निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति:
3.1 प्रबंधन के एक साधन के रूप में आंतरिक/ निरीक्षण की प्रभावकारिता सुनिश्चित करने एवं उसमें वृद्धि करने के लिए आंतरिक लेखा परीक्षा/ निरीक्षण तंत्र तथा बैंकों के अन्य कार्यपालकों की निगरानी करने और निदेश देने के लिए निदेशक मंडल स्तर पर एक शीर्ष लेखा परीक्षा समिति का गठन करना चाहिए। समिति में एक अध्यक्ष तथा तीन/ चार निदेशक हों जिनमें से ऐसे एक या उससे अधिक निदेशक सनदी लेखापाल हों या जिनके पास प्रबंधन, वित्त, लेखांकन तथा लेखा परीक्षा प्रणालियों आदि का अनुभव हो।
3.2 निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिति को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की समीक्षा करनी चाहिए और तिमाही अंतरालों पर निदेशक मंडल के समक्ष उससे संबंधित नोट प्रस्तुत करना चाहिए। निदेशक मंडल के प्रमुख कार्य/ जिम्मेदारियां नीचे दी गई है :
(i) उसे बैंक में संपूर्ण लेखा परीक्षा कार्य के परिचालनों को दिशा देनी और उनकी निगरानी करनी चाहिए। संपूर्ण लेखा परीक्षा कार्य का तात्पर्य बैंक के भीतर आंतरिक लेखा परीक्षा और निरीक्षण का संगठन, परिचालनात्मकता और गुणवत्ता नियंत्रण तथा बैंक की सांविधिक लेखा परीक्षा और रिज़र्व बैंक के निरीक्षण पर अनुवर्ती कार्रवाई होगा।
(ii) उसे आंतरिक अनुवर्ती कार्रवाई के संबंध में बैंक के आंतरिक निरीक्षण/ लेखापरीक्षा - प्रणाली, उसकी गुणता तथा प्रभावकारिता-निरीक्षण/ लेखा परीक्षा की समीक्षा करनी चाहिए। उसे आंतरिक निरीक्षण रिपोर्टों पर अनुवर्ती कार्रवाई की समीक्षा करनी चाहिए। उसे विशेष रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए :
(ए) अंतर - शाखा समायोजन लेखा
(बी) अंतर - शाखा खातों में तथा अंतर बैंक खातों में लंबे समय से असमायोजित बकाया प्रविष्टियां
(सी) विभिन्न शाखाओं पर बहियों के मिलान का बकाया कार्य
(डी) धोखाधड़ियां तथा
(इ) आंतरिक रखरखाव के सभी प्रमुख क्षेत्र
(iii) सांविधिक लेखा परीक्षा/ संगामी लेखा परीक्षा/ भारतीय रिज़र्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्टों का अनुपालन;
(iv) गंभीर अनियमितताओं का पता लगाने में आंतरिक निरीक्षण अधिकारियों की तरफ से हुई किसी चूक; तथा
(v) बैंक के लेखाओं में ज्यादा पारदर्शिता तथा लेखांकन नियंत्रणों की पर्याप्तता सुनिश्चित करने की दृष्टि से बैंक की लेखांकन नीतियों/ प्रणालियों की आवधिक समीक्षा
4. उच्च मूल्य के धोखाधड़ी की निगरानी के लिए निदेशक मंडल की विशेष समिति
धोखाधड़ी का पता लगाना, विनियामक प्राधिकारियों और प्रवर्तन एजेंसियों को उसे रिपोर्ट करना आदि विभिन्न पहलुओं में देरी होना चिंता का विषय है, इसलिए उच्चतम स्तर पर धोखाधड़ी की निगरानी पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक प्रतीत हुआ है और यह सुझाव दिया गया है कि बोर्ड की एक उपसमिति का गठन किया जाए जो अनन्य रूप से धोखाधड़ी के मामलों की निगरानी करेगी। धोखाधड़ी के मामलों की निगरानी में बैंकों के बोर्ड के लिए एक अच्छी तरह से परिभाषित भूमिका नियत करने की भी आवश्यकता है। इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि एक करोड या उससे अधिक राशि के धोखाधड़ी की निगरानी करने तथा अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए बैंक के बोर्ड द्वारा एक विशेष समिति का गठन किया जाए, जबकि सभी सामान्य मामलों की पुनरीक्षा आगे भी एसीबी द्वारा किया जाएगा।
(i) बोर्ड के विशेष समिति की गठन एवं कार्यों के संदर्भ में व्यापक दिशानिर्देश निम्न अनुच्छेदों में दिए हैं।
ए) विशेष समिति का गठन
विशेष समिति में बोर्ड के पांच निदेशक होंगे जिनमें शहरी सहकारी बैंकों के अध्यक्ष एसीबी के दो सदस्य, बोर्ड के दो अन्य सदस्य शामिल होंगे।
बी) विशेष समिति के कार्य
विशेष समिति का प्रमुख कार्य एक करोड या उससे अधिक राशि के सभी धोखाधड़ी की निगरानी होगी ताकि;
*यदि किसी प्रकार की प्रणालीगत कमी है जिससे धोखाधड़ी रूपी अपराध सुसाध्य हुआ है तो उसे पहचानकर रोकने का उपाय
*यदि है तो धोखाधड़ी को पहचानने, उसे बैंक के उच्च प्रबंधन और भारतीय रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट करने में हुई देरी का कारण जानना
*केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो/ पुलिस जांच की निगरानी और वसूली की स्थिति और;
*सभी प्रकार के धोखाधड़ी के मामलों में सभी स्तरों पर स्टाफ की जवाबदेही सुनिश्चित किया जाए और यदि आवश्यक है तो स्टाफ की ओर से कार्रवाई बिना समय गवाए पूरी की जाए।
*आंतरिक नियंत्रण को मज़बूत करते हुए धोखाधड़ी का न होना सुनिश्चित करने के लिए उपचारात्मक कार्रवाई की प्रभाविता की पुनरीक्षा की जाए।
*धोखाधड़ी को रोकने के लिए आवश्यक उचित उपाय रखे जाए।
सी) बैठक
उभरे हुए मामलों की संख्या के आधार पर विशेष समिति की बैठक की आवधिकता के संदर्भ में निर्णय लिया जाए। फिर भी, 1 करोड़ या उससे अधिक राशि के धोखाधड़ी सामने आने पर समिति की बैठक आयोजित करते हुए पुनरीक्षा की जाए।
डी) विशेष समिति के कार्यकलाप की समीक्षा
बोर्ड के विशेष समिति के कार्यों को छमाही आधार पर पुनरीक्षित किया जाए और पुनरीक्षा के संदर्भ में सूचना निदेशक मंडल को प्रस्तुत किया जाए।
5. समीक्षाओं का कैलेंडर - निदेशक मंडल के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले विषय
निदेशक मंडल के लिए क्या करें तथा क्या न करें की सूची (पैरा 2) में इस बात पर बल दिया गया है कि निदेशकों को बैंक की कार्यप्रणाली के महत्वपूर्ण पहलुओं की आवधिक समीक्षाओं पर अपना ध्यान देना चाहिए। समीक्षाओं की एक विस्तृत सूची जिसकी ओर निदेशकों का ध्यान आकृष्ट किया जाना चाहिए तथा कितने आविधक अंतराल पर ये समीक्षाएं निदेशक मंडल के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए उसे अनुबंध 2 में दर्शाया गया है।
6. ऋण और अग्रिमों पर प्रतिबंध
6.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को उनके निदेशकों या अनके रिश्तेदारों और फर्मों/ संस्थाओं/ कंपनियों जिनमें उनके हित निहित हैं, को 1 अक्तूबर 2003 से जमानती या गैर-जमानती ऋण तथा अग्रिम देने, प्रदान करने या नवीकरण अथवा उन्हें अन्य कोई वित्तीय सुविधा प्रदान करने से प्रतिबंधित किया गया है। मौजुदा अग्रिमों को उनकी देय तारीख तक जारी रखने के लिए अनुमति दी जाए।
6.2 निदेशकों से संबंधित निम्नलिखित श्रेणियों के ऋणों को उपर्युक्त अनुदेशों के दायरे से छूट दी गई है।
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शहरी सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल के स्टाफ निदेशकों को नियमित कर्मचारी संबंधित ऋण।
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सैलरी अर्नरस सहकारी बैंकों के निदेशक मंडलों के निदेशकों को सदस्यों पर लागू सामान्य ऋण तथा
-
बहु-राज्य सहकारी बैंकों के प्रबंध निदेशकों को कर्मचारी संबंधित सामान्य ऋण। मौजूदा अग्रिमों को देय तारीख तक जारी रहने दिया जाए।
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निदेशकों या उनके रिश्तेदारों को उनके नाम पर आवधिक जमा तथा जीवन बीमा पॉलिसी के बदले में ऋण
6.3 'अन्य कोई वित्तीय सुविधा' शब्द में निधिकृत तथा गैर-निधिकृत ऋण सीमाएं तथा हामीदारियां तथा समान प्रतिबद्धताएं शामिल होंगी जैसाकि नीचे दिया गया है :
(ए) निधिकृत सीमाओं में खरीदे/ भुनाए गए बिल, पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर ऋण सुविधाएं और उधारकर्ताओं को स्वीकृत मूल संसाधन की खरीद एवं किसी अन्य उद्देश्य के लिए स्वीकृत सीमाओं सहित आस्थगित भुगतान गारंटी सीमा और ऐसी गारंटियां शामिल हैं जिनके जारी करने पर कोई बैंक अपने ग्राहकों को पूंजी आस्तियां प्राप्त करने के लिए वित्तीय दायित्व स्वीकार करता है।
(बी) गैर-निधिकृत सीमाओं में साख-पत्र, उपर्युक्त पैराग्राफ (ए) में उल्लिखित गारंटियों से इतर गारंटियां तथा हामीदारियां तथा वैसा ही प्रतिद्धताएं शामिल होंगी।
6.4 कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति का रिश्तेदार तभी माना जाएगा यदि:
(ए) वे किसी अविभक्त हिंदू परिवार के सदस्य हैं,या
(बी) वे पति-पत्नी हों, या
(सी) एक का दूसरे के साथ वैसा ही संबंध हो जैसा नीचे दर्शाया गया हैं :
रिश्तेदारों की सूची
- पिता
- माता तथा सौतेली माता
- पुत्र तथा सौतेला पुत्र
- पुत्रवधू
- पुत्री तथा सौतेली पुत्री
- दामाद
- भाई (सौतेला भाई सहित)
- भाई की पत्नी
- बहन (सौतेली बहन सहित)
- बहनोई
7. निदेशक, उनके रिश्तेदार जिस न्यास (ट्रस्ट) और संस्थान में पदधारी या हितबद्ध है उनके लिए दान
30 अगस्त 2013 से लागू रूप में शहरी सहकारी बैंकों द्वारा जिन न्यासों और संस्थाओं में निदेशक और या उनके रिश्तेदार पदधारी या हितबद्ध हैं उनको पिछले वर्ष के प्रकाशित लाभ के 1 प्रतिशत की स्वीकार्य सीमा तक होने पर भी दान देने से रोक लगा दी गई है । उक्त प्रयुक्त 'रिश्तेदार', 'हित' आदि शब्द से तात्पर्य अनुच्छेद सं 5.4 में बताए अनुसार है। न्यास जिसमें निदेशक/ निदेशकों के रिश्तेदार न्यासी के रूप में पदधारी हैं या हितधारी हैं या न्यास के कामकाज में किसी भी हैसियत से शामिल है, जिससे निदेशक(कों) की स्वाधीनता पर प्रभाव डालने की संभावना हो।
8. निदेशकों को फीस तथा भत्तों का भुगतान
निदेशक मंडल की बैंठकों के संचालन आदि पर सभी खर्चों को लाभ-हानि खाते की मद 3 में दर्शाया जाए। इस प्रकार के खर्चों में निदेशक तथा स्थानीय समिति के सदस्यों को वास्तव में भुगतान की गई और इस प्रकार की बैंठकों में भाग लेने के लिए उनकी तरफ़ से खर्च की गई राशियां शामिल होंगी।
अनुबंध 1
मास्टर परिपत्र
निदेशक मंडल
निदेशक मंडल के संबंध में शहरी सहकारी बैंकों
पर माधव दास समिति की सिफारिशें
(पैरा 1.4 के अनुसार)
सिफारिश
1.शाखा सदस्यों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए निदेशक मंडल
शाखाओं के सदस्यों को शहरी बैंकों की गतिविधियों के प्रबंधन में शामिल करने की दृष्टि से निदेशक मंडल में उनका प्रतिनिधित्व आवश्यक है। निदेशक मंडल में निदेशकों के चयन के प्रयोजन से शाखाओं को निम्नलिखित श्रेणियों के अनुसार समूहबद्ध किया जा सकता है।
-
प्रधान कार्यालय की सीमाओं के भीतर शाखाएं जिसमें प्रधान कार्यालय के नगर से लगभग 25 किमी के भीतर आने वाली शाखाएं शामिल हैं।
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उपर्युक्त सीमाओं के बाहर परंतु जिले के भीतर की शाखाएं।
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जिले के बाहर की शाखाएं जिसमें राज्य के बाहर शाखाएं शामिल हैं।
प्रतिनिधित्व शाखाओं की सदस्यता पर आधारित हो न कि उनकी जमाराशियों या ऋण कारोबार पर। निदेशक मंडल में कुछ निश्चित स्थान विशेष रूप से केवल प्रधान कार्यालय के नगर को प्रदान किए जाने चाहिए और किसी समूह की प्रत्येक शाखा को क्रमिक रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाए।
2. निदेशक के पद की अर्हता
(i) किसी शहरी बैंक में निदेशक के रूप में पद ग्रहण करने की अर्हता के संबंध में शेयर धारिता को निर्धारक तत्व नहीं बनाया जाना चाहिए। किसी निदेशक का चुनाव सदस्यों में उसके प्रति विश्वास के आधार पर किया जाना चाहिए। निदेशक मंडल की सदस्यता के लिए न्यूनतम शेयर पात्रता संबंधी मौजूदा निर्धारण का आग्रह नहीं किया जाना चाहिए जो हितकारी है ।
(ii) शहरी बैंकों में निदेशक के पद के लिए चुनाव लड़ रहे व्यक्तियों को कम से कम दो वर्षों की अवधि के लिए बैंक का सदस्य होना चाहिए। इसी प्रकार, निदेशक मंडल में चुनाव लड़ने वाले सदस्यों की संबंधित शहरी बैंक में कम से कम लगातार दो वर्षों की अवधि तक किसी प्रकार की ₹ 500/- की न्यूनतम जमाराशि होनी चाहिए ।
3. मतदान के लिए सदस्य की योग्यता
मुख्य रूप से निदेशक मंडलों के स्थानों पर कब्जा जमाने की दृष्टि से तथा इसके जरिए दक्षतापूर्ण प्रबंधन वाले शहरी बैंकों के निदेशक मंडलों को अस्थिर तथा अपदस्थ करने के उद्देश्य से साधारण सभा की बैंठक के तुरंत पहले कुछ निहित स्वार्थों की पहल पर सामूहिक नामांकन रोकने के लिए प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक के सदस्यों को बैंक के प्रबंधन मंडल के चुनाव में भाग लेने की अनुमति उनके सदस्यता प्राप्त करने की तारीख से 12 महीनों की न्यूनतम अवधि पूरी होने के बाद ही मिलनी चाहिए ।
4. निदेशक मंडल में महिला प्रतिनिधि
जहां किसी भी क्षेत्र में केवल महिलाओं के लिए किसी शहरी बैंक के गठन के अवसर बहुत सीमित हैं, मौजूदा शहरी बैंक अपने प्रबंधक मंडलों में महिला सदस्यों को प्रतिनिधित्व दे सकते हैं और जहां आवश्यक हो महिला सदस्यों की जरुरतों को पूरा करने के लिए एक पृथक अनुभाग बना सकते हैं । निदेशक मंडलों में महिलाओं के लिए कम से कम एक स्थान आरक्षित रखा जाए।
5. निदेशक मंडल के सदस्यों के लिए विकास कार्यक्रम
एक दक्ष नीति निर्माता एवं निर्णयन निकाय में स्वयं को विकसित करने के लिए निदेशक मंडल के सदस्यों के लिए नियमित कार्यक्रमों की आवश्यकता है। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत निदेशक मंडल के सदस्यों को अल्पकालिक अभिमुख पाठ्यक्रमों, कार्यशालाओं, सेमिनारों से परिचित करवाना और अन्य बैंकों का दौरा शामिल है। बैंक ने स्वयं या शहरी बैंकों के संघों या संगठनों द्वारा तैयार किए गए उचित मैनुअल निदेशकों को उप-विधियों के तहत उनके कार्यों से परिचित कराने की एक प्रकार हो सकते हैं। राष्ट्रीय शहरी सहकारी बैंक तथा क्रेडिट सोसायटी संघ तथा शहरी बैंकों के राज्य स्तरीय संघों या संगठनों के सहयोग से राष्ट्रीय सहकारी संघ को शहरी बैंकों के प्रबंधन के निदेशक मंडलों को शिक्षित एवं प्राशिक्षित करने के इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य के प्रति स्वयं को समर्पित करना चाहिए तथा इस प्रयोजन के लिए समन्वित कार्यक्रम की रूप-रेखा बनानी चाहिए।
6. निदेशक मंडल में मुख्य कार्यपालक की उपस्थिति
किसी शहरी बैंक के मुख्य कार्यपालक को अधिमानत: निदेशक मंडल का एक सदस्य होना चाहिए अर्थात् उसे प्रबंध निदेशक होना चाहिए।
7. निदेशक मंडल में राज्य सरकार के नामित सदस्य की उपस्थिति
जिस शहरी बैंक के शेयर पूंजी में राज्य की भागीदारी है ऐसे बैंकों के निदेशक मंडल में राज्य सरकार अपना प्रतिनिधि नामित कर सकता है। इस प्रकार के प्रतिनिधियों की संख्या निदेशकों की कुल संख्या के एक-तिहाई या तीन, इनमें से जो भी कम हो, से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा नामित निदेशकों को सहकारिता विभाग का अधिकारी होने के बजाय अधिमानत: सक्षम गैर-अधिकारी होना चाहिए ।
अनुबंध 2
निदेशक मंडल पर
मास्टर परिपत्र
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक
मंडल को प्रस्तुत की जाने वाली समीक्षाएं
(पैरा 4 के अनुसार)
I. मासिक
1. (ए) निधियों का प्रबंधन
(बी) नकदी प्रारक्षित निधि/ सांविधिक तरलता अनुपात के अनुपालन से संबंधित स्थिति
2. परीक्षण शेष - आय/ व्यय विवरण
3. जमाराशियों/ अग्रिमों की तुलनात्मक स्थिति -
4. प्रत्यायोजित प्राधिकार के अंतर्गत अस्थाई ओवरड्राफ्ट सहित मंजूर ऋण प्रस्ताव -
5. महीने के दौरान प्रकाश में आई गंभीर अनियमितताएं / धोखाधड़ियां / र्विनियोजन, यदि कोई हों पर रिपोर्ट ।
6. अतिदेय की तुलनात्मक स्थिति
II. तिमाही
1. |
जमाराशि संग्रह/ लक्ष्य/ उपलब्धि की समीक्षा (संपूर्ण बैंक के स्तर पर) |
अप्रैल
(1-3) |
जुलाई
(4-6) |
अक्तूबर
(7-9) |
जनवरी
(10-12) |
2. |
जमाराशियों तथा अग्रिमों का शाखावार कार्य - निष्पादन - लक्ष्य/ उपलब्धियां |
-वही- |
3. |
बड़े उधार खातों (गैर- अनुसूचित बैंकों के मामले में ₹ 5 लाख और उससे अधिक तथा अनुसूचित बैंकों के मामले में ₹ 10 लाख तथा उससे अधिक एक वर्ष के भीतर समीक्षा किए जाने वाले इस प्रकार के सभी खाते) की कम से कम 25% की समीक्षा |
-वही- |
4. |
वसूली संबंधी कार्य निष्पादन की समीक्षा तथा चूककर्ताओं के विरूद्ध कार्रवाई |
-वही- |
5. |
अंतर-शाखा समायोजन/ शाखाओं के आंतरिक प्रशासन और लेखा बहियों की स्थिति |
-वही- |
6. |
बड़ी धोखाधड़ियों/ गंभीर अनियमितताओं पर की गई कार्रवाई |
अप्रैल
(1-3) |
जुलाई
(4-6) |
अक्तूबर
(7-9) |
जनवरी
(10-12) |
7. |
आंतरिक निरीक्षण रिपोर्टों पर की गई कार्रवाई तथा अनुपालन की समीक्षा |
-वही- |
8. |
निदेशकों/ उनके रिश्तेदारों को अग्रिम - भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों का अनुपालन |
मई
(1-3) |
अगस्त
(4-6) |
नवंबर
(7-9) |
फरवरी
(10-12) |
9. |
एकल पक्ष/ संबंधित समूह को अग्रिम - भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों का अनुपालन |
-वही- |
10. |
वार्षिक व्यवसाय योजना की समीक्षा |
अप्रैल
(1-3) |
जुलाई
(4-6) |
अक्तूबर
(7-9) |
जनवरी
(10-12) |
III. अर्द्धवार्षिक
1. |
पूँजी बजट की तुलना में पूँजी व्यय की समीक्षा |
जनवरी
(7-12) |
जुलाई
(1-6) |
2. |
जमाराशियों/ अग्रिमों के वितरण तथा ऋण-जमा अनुपात की समीक्षा |
फरवरी
(7-12) |
अगस्त
(1-6) |
3. |
संगामी लेखा परीक्षा रिपोर्ट पर की गई कार्रवाई की समीक्षा |
-वही- |
-वही- |
4. |
भारतीय रिज़र्व बैंक के निरीक्षण रिपोर्ट/ सांविधिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट के निष्कर्षों पर की गई कार्रवाई की समीक्षा |
अप्रैल
(10-3) |
अक्तूबर
(4-9) |
5. |
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र/ कमजोर तबकों को उधार की समीक्षा |
-वही- |
-वही- |
6. |
एनआरई/ एफसीएनआर योजना के अंतर्गत जमाराशियों के संग्रह में कार्य-निष्पादन की समीक्षा |
-वही- |
-वही- |
7. |
मर्चेंन्ट बैंकिंग व्यवसाय की समीक्षा |
-वही- |
-वही- |
8. |
निदेशकों की लेखा परीक्षा/ सतर्कता समिति पर की गई कार्रवाई की समीक्षा |
-वही- |
-वही- |
9. |
ग्राहक सेवा की समीक्षा |
मई
(10-3) |
नवंबर
(4-9) |
10. |
सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा |
-वही- |
-वही- |
11. |
शाखाओं के छ:माही कार्य-प्रणाली परिणाम/ उनके कार्य-निष्पादन की समीक्षा - आय तथा व्यय |
अगस्त
(10-3) |
फरवरी
(4-9) |
IV. वार्षिक
1. |
बट्टे-खाते डाले जाने वाले प्रस्तावित अशोध्य ऋणों की समीक्षा |
(अप्रैल) |
2. |
धोखाधड़ियों तथा की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट |
(अप्रैल) |
3. |
विदेशी मुद्रा व्यवसाय की समीक्षा |
(अप्रैल) |
4. |
वर्ष के दौरान किए गए दान की समीक्षा |
(अप्रैल) |
5. |
बैंक का तुलन पत्र, लाभ व हानि खाता, कार्यकारी परिणाम |
(मई) |
6. |
हानिवाली शाखाओं की समीक्षा |
(मई) |
7. |
व्यय शीर्षों में व्यापक अंतर का विश्लेषण |
(मई) |
8. |
अनर्जक आस्तियों के आय-निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण पर विस्तृत नोट |
(मई) |
9. |
मानव संसाधन विकास तथा स्टाफ के प्रशिक्षण की समीक्षा |
(जून) |
10. |
यांत्रीकरण तथा कंप्यूटरीकरण की समीक्षा |
(जून) |
11. |
शाखा विस्तार/ लंबित लाइसेंसों की समीक्षा |
(जुलाई) |
12. |
सांविधिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट की समीक्षा |
(सितंबर) |
13. |
वार्षिक व्यवसाय योजना की समीक्षा |
(फरवरी) |
(टिप्पणी: 1 ..... 12 कैलेंडर के महीनों को दर्शाते हैं)
अर्थात् : 1 जनवरी प्रदर्शित करता है । 12 दिसंबर प्रदर्शित करता है।
परिशिष्ट
मास्टर परिपत्र
निदेशक मंडल
क. मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
सं. |
परिपत्र सं. |
दिनांक |
विषय |
1. |
डीसीबीआर.बीपीडी.(पीसीबी) परि. सं.10/12.05.001/2014-15 |
07.01.2015 |
निदेशक मंडल द्वारा उच्च मूल्य के धोखाधड़ी की निगरानी |
2. |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी) परि. सं.7/09.72.000/2013-14 |
30.08.2013 |
निदेशक, उनके रिश्तेदार जिस न्यास (ट्रस्ट) और संस्थान में पदधारी या हितबद्ध है उनके लिए दान |
3. |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.41/09.103.01/2007-08 |
21.04.2008 |
शहरी सहकारी बैंकों के प्रबंधन का व्यावसायीकरण |
4. |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.16/09.103.01/2007-08 |
18.09.2007 |
शहरी सहकारी बैंकों के प्रबंधन का व्यावसायीकरण |
5. |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.32/13.05.000/06-07 |
12.03.2007 |
निदेशकों, उनके रिश्तेदारों तथा फर्मों/ संस्थाओं जिनमें उनके हित निहित हैं, को ऋण एवं अग्रिम - शहरी सहकारी बैंक |
6. |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.14/13.05.000/05-06 |
06.10.2005 |
निदेशकों, उनके रिश्तेदारों तथा फर्मों/ संस्थाओं जिनमें उनके हित निहित हैं, को ऋण एवं अग्रिम |
7. |
शबैवि.बीपीडी.परि.54./13.05.00/2002-03 |
24.06.2003 |
निदेशकों तथा उनके रिश्तेदारों को ऋण एवं अग्रिमों पर प्रतिबंध |
8. |
शबैवि.बीपीडी.परि.50/13.05.00/2002-03 |
29.04.2003 |
निदेशकों तथा उनके रिश्तेदारों को ऋण एवं अग्रिमां पर प्रतिबंध |
9. |
शबैवि.बीपीडी.परि.36/09.06.00/2002-03 |
20.02.2003 |
निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिति |
10. |
शबैवि.पीसीबी.परि.पॉट.39/09.10.3. 01/2001-02 |
05.04.2002 |
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल का व्यवसायीकरण |
11. |
शबैवि.पॉट.73/09.06.00/2000-01 |
12.07.2001 |
निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिति |
12. |
शबैंवि.सं.आयोजना.(पीसीबी) 12/ 09.08.00/00-01 |
15.11.2000 |
समीक्षाओं का कैलेंडर - सहकारी बैंकों के निदेशक मंडलों के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले मामले |
13. |
शबैवि.सं.आई एवं एल.(पीसीबी) 39/ 12.05.00/1996-97 |
07.02.1997 |
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949
(सहकारी सोसायटियों पर लागू) - धारा 29 - वार्षिक तुलन पत्र तथा लाभ एवं हानि लेखा की प्रस्तुति - निदेशकों को शुल्क तथा भत्तों का भुगतान |
14. |
शबैवि.सं.आई एवं एल./(पीसीबी) 41/ 12.05.00/1996-97 |
27.02.1997 |
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949
(सहकारी सोसायटियों पर लागू) - धारा 29 - वार्षिक तुलन पत्र तथा लाभ एवं हानि लेखा की प्रस्तुति निदेशकों को शुल्क तथा भत्तों का भुगतान |
15. |
शबैवि.सं.आयो.(पीसीबी).11/09.08.00/94-95 |
02.08.1994 |
समीक्षाओं का कैलेंडर - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले मामले |
16. |
शबैवि.सं.आयो.(पीसीबी).9/09.06.00/1994-95 |
25.07.1994 |
बैंकों में आंतरिक लेखा परीक्षा संबंधी कार्य की निगरानी - निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिति गठित करना |
17. |
शबैवि.सं.आयो.(पीसीबी)परि. 55/09.08.00/1993-94 |
11.02.1994 |
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल - व्यवसायीकरण तथा उनकी भूमिका - क्या करें तथा क्या न करें। |
ख. निबंधक, सहकारी सोसायटियों को संबोधित परिपत्रों की सूची
सं. |
परिपत्र सं. |
दिनांक |
विषय |
1. |
शबैवि.सं.आरईएच.2/15.05.04/1994-95 |
19.07.1994 |
प्राथमिक सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल की बर्खास्तगी |
2. |
शबैवि.सं.649/16.04.01/1993-94 |
22.02.1994 |
नए शहरी सहकारी बैंकों के लाइसेंसीकरण पर समिति की रिपोर्ट - राज्य सहकारी सोसायटियां अधिनियम में संशोधन |
3. |
शबैवि.सं.आयो.702/यूबी.8.(3)/89/90 |
17.01.1990 |
शहरी सहकारी बैंकों के लिए स्थाई सलाहकार समिति की VIII वीं बैठक -अनुवर्ती कार्रवाई |
4. |
शबैवि.आरईएच.30/एम.
(19)88 / 89 |
08.09.1988 |
निदेशक मंडल की बर्खास्तगी - प्रशासकों के पैनल की नियुक्ति |
5. |
एसीडी.आयो.348/यूबी.1/78/79 |
20.04.1979 |
शहरी सहकारी बैंकों पर समिति की रिपोर्ट |
|