आरबीआई/2015-16/9
शबैंवि.पीसीबी.एमसी.सं.10/09.18.201/2015-16
01 जुलाई 2015
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
महोदय / महोदया,
मास्टर परिपत्र
पूंजी पर्याप्तता संबंधी विवेकपूर्ण मानदंड - शहरी सहकारी बैंक
कृपया उपर्युक्त विषय पर 01 जुलाई 2014 का हमारा मास्टर परिपत्र शबैवि.बीपीडी.पीसीबी. एमसी.सं.6/09.18.201/2014-15 (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेब साइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2015 तक जारी सभी अनुदेशों/ दिशानिर्देशों को समेकित एवं अद्यतन किया गया है तथा परिशिष्ट में उल्लिखित है।
भवदीया
(सुमा वर्मा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक
संलग्नक : यथोक्त
मास्टर परिपत्र
पूँजी पर्याप्तता संबंधी विवेकपूर्ण मानदंड
विषय सूची
मास्टर परिपत्र
पूँजी पर्याप्तता पर विवेकपूर्ण मानदंड - शहरी सहकारी बैंक
परिचय
पूँजी किसी बैंक के संकट अथवा खराब कार्य-निष्पादन के समय सुरक्षित पूंजी (बफर) के रूप में कार्य करती है। पूंजी की पर्याप्तता जमाकर्ताओं में आत्मविश्वास पैदा करती है। इसलिए पूँजी की पर्याप्तता किसी नए बैंक के लाइसेंसीकरण तथा व्यवसाय में उसके बने रहने की एक पूर्वशर्त है ।
सांविधिक अपेक्षाएँ
2. बैंककारी विनियमन अधिनियम (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 11 में निहित उपबंधों के अनुसार कोई भी सहकारी बैंक तब तक बैंकिंग व्यवसाय प्रारंभ अथवा जारी नहीं रख सकता जब तक उसकी चुकता पूँजी तथा आरक्षित निधि का कुल मूल्य एक लाख रुपये से कम है। इसके अतिरिक्त, उपर्युक्त अधिनियम की धारा 22(3)(घ) के अंतर्गत रिज़र्व बैंक किसी नए शहरी सहकारी बैंक की स्थापना के लिए समय-समय पर न्यूनतम प्रवेश बिंदु पूँजी (प्रवेश बिंदु संबंधी मानदंड) निर्धारित करता है।
उधार से शेयर धारिता का संबंध
3. परंपरागत रूप से शहरी सहकारी बैंक अपनी शेयर पूँजी में वृद्धि उसे सदस्यों के उधार के साथ जोड़कर कर रहे हैं। रिज़र्व बैंक ने शेयर लिंकेज संबंधी निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए हैं;
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उधार का 5%, यदि उधार गैर-जमानती आधार पर हों
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उधार का 2.5%, यदि उधार जमानती हों
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लघु औद्योगिक इकाइयों द्वारा जमानती उधार के मामले में उधार का 2.5% जिसके 1% की वसूली प्रारंभ में तथा शेष 1.5% की वसूली अगले दो वर्ष के दौरान की जाएगी।
उपर्युक्त शेयर लिकिंग मानदंड बैंक की कुल चुकता शेयर पूँजी के 5% की सीमा तक सदस्यों की शेयर धारिता पर लागू होंगे। जहाँ कोई सदस्य किसी शहरी सहकारी बैंक की कुल चुकता पूँजी का 5% पहले से ही धारण किया हो वहाँ मौज़ूदा शेयर लिकिंग मानदंडों के लागू होने के कारण उसके लिए ज़रूरी नहीं होगा कि वह अतिरिक्त शेयर पूँजी धारित करे। दूसरे शब्दों में, किसी उधारकर्ता सदस्य के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह उतनी राशि के शेयर धारित करे जिनकी संगणना मौज़ूदा शेयर लिकिंग मानदंडों के अनुसार की जाए अथवा बैंक की कुल चुकता शेयर पूँजी के 5%, इनमें से जो कम हो, के लिए की जाए। सभी राज्य सरकारों को संबंधित राज्य सहकारी सोसाईटी अधिनियम में आवश्यक संशोधन करने और जहां भी लागू है, वैयक्तिक शेयरधारिता की उच्चतम मौद्रिक सीमा को बंद करने तथा किसी सदस्य की वैयक्तिक शेयरधारिता को शहरी सहकारी बैंक की कुल चुकता शेयर पूंजी के 5 प्रतिशत तक सीमित करने के लिए सूचित किया है। चूंकि राज्य सहकारी सोसाईटी अधिनियम में उक्त संशोधन होना शेष है, इसलिए सभी शहरी सहकारी बैंकों को उपर्युक्त पैरा 1 में बताए गए अनुसार उधार के लिए शेयर लिंकिंग मानदंड़ और वैयक्तिक शेयरधारिता की उच्चतम सीमा पर विद्यमान मानदंड़ों का संख्ती से पालन करने के लिए सूचित किया गया है।
निरंतर आधार पर न्यूनतम 12 प्रतिशत या उससे अधिक सीआरएआर बनाए रखनेवाले शहरी सहकारी बैंकों को 15 नवंबर 2010 से विद्यमान अनिवार्य शेयर लिंकिंग मानदंड से छूट दी गयी है।
पूँजी पर्याप्तता संबंधी मानदंड:
4. पूँजी पर्याप्तता के परंपरागत दृष्टिकोण से तुलन पत्र में तुलन पत्रेतर व्यवसाय से जुड़ी विभिन्न प्रकार की आस्तियों के जोखिम तत्व पकड़ में नहीं आते और यह दृष्टिकोण पूँजी की तुलना आस्तियों के स्तर से करता है।
बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति† ने जुलाई 1988 में पहला बासल पूँजी समझौता (जिसे लोग बासल I ढाँचा कहते हैं) प्रकाशित किया था जिसमें अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली की सुदृढ़ता तथा स्थिरता बनाए रखने के लिए बैंकों में तथा अंतर्राष्ट्रीय बैंकों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक असमानता के मौजूदा स्त्रोत को कम करने के लिए पूंजी पर्याप्तता संबंधी न्यूनतम अपेक्षाएँ निर्धारित की गई थीं। वर्ष 1988 के पूँजी समझौते की मूलभूत विशेषताएँ नीचे दी गई हैं
(i) वर्ष 1992 के अंत तक 8% तक न्यूनतम पूँजीगत अपेक्षा
(ii) पूँजी के प्रति टियर दृष्टिकोण :
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केंद्रीय पूँजी : इक्विटी, प्रकटीकृत आरक्षित पूँजी
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पूरक पूँजी : सामान्य ऋण हानि आरक्षित पूँजी, अन्य प्रच्छन्न आरक्षित पूँजी, पुनर्मूल्यांकन आरक्षित पूँजी, संकरित पूँजीगत लिखत तथा गौण ऋण
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केंद्रीय पूँजी के रूप में परिगणित किया जाने वाला पूँजी का 50%
(iii) जैसा कि अनुबंध 1 में दर्शाया है, बैंको के विभिन्न प्रकार के ऋणों के लिए जोखिम भार 0% से 127.5% के बीच आस्तियों की जोखिम प्रवणता पर आधारित होगा। जहां वाणिज्यिक ऋण आस्तियों पर 100% का जोखिम भार था वहीं अंतर-बैंक आस्तियों पर 20% निर्धारित किया गया था और सरकारी पत्र पर 0% का जोखिम भार था। वर्ष 2002 में शहरी सहकारी बैंकों को कहा गया कि वे जोखिम भार के प्रतिशत के रूप में पूंजी निधि रखे। वर्ष 2005 से 9% न्यूनतम सीआरएआर रखना अपेक्षित है। इसके अतिरिक्त, मूल बासल समझौते में संशोधन के द्वारा बाजार से जुड़े ऋण जोखिमों के लिए पूँजी प्रभार निर्धारित किए गए थे ।
पूंजीगत निधि
पूंजी पर्याप्तता मानको के लिए "पूंजीगत निधि" में नीचे दिए गए पैरा में स्पष्ट किए गए अनुसार टियर I तथा टियर II पूंजी शामिल है।
टियर I पूँजी :
4.1 टियर I पूँजी में निम्नलिखित मदें शामिल है :
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मताधिकारधारक नियमित सदस्यों से प्राप्त चुकता शेयर पूँजी।
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सहायक/ नाममात्र के सदस्यों से प्राप्त अंशदान जहाँ उप-विधियों के अनुसार उन्हें शेयरों के आबंटन की अनुमति है और बशर्ते ऐसे शेयरों के आहरण पर प्रतिबंध हो, जैसा कि नियमित सदस्यों पर लागू होता है।
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सहायक/ नाममात्र के सदस्यों से वसूल किए गए अंशदान/ अप्रतिदेय प्रवेश शुल्क जिसे अलग से उपयुक्त शीर्ष के अंतर्गत "आरक्षित निधियाँ" के रूप में धारित किया जाता है क्योंकि वे अप्रतिदेय हैं।
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सतत असंचयी अधिमानी शेयर (पीएनसीपीसी)। विस्तृत दिशा निर्देशों के लिए कृपया अनुबंध 3 देखें।
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लेखापरीक्षित खातों के अनुसार मुक्त आरक्षित निधि। सावधि आस्तियों के पुनर्मूल्यांकन से सृजित अथवा बाह्य देयताओं को पूरा करने के लिए सृजित आरक्षित निधियों को टियर I पूँजी के अंतर्गत शामिल न किया जाए। मुक्त आरक्षित निधियों में उन सभी आरक्षित निधियों/ प्रावधानों को शामिल नहीं किया जाएगा जिन्हें प्रत्याशित ऋण हानियों, धोखाधड़ी आदि के कारण होने वाली हानियों, निवेशों तथा अन्य आस्तियों के मूल्यह्रास तथा अन्य बाह्य देयताओं को पूरा करने के लिए सृजित किया गया हो। जैसे कि `भवन निधि' शीर्ष के अंतर्गत धारित राशियां मुक्त आरक्षित निधि के हिस्से के रूप में मानी जाने के लिए पात्र होंगी जबकि "अशोध्य और संदिग्ध आरक्षित निधियों'' को उसमें शामिल नही किया जाएगा।
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आस्तियों की बिक्री से होने वाली आय के कारण होने वाले अधिशेष को दर्शानेवाली मुक्त आरक्षित निधियाँ ।
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नवोन्मेषी सतत ऋण लिखत*
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लाभ एवं हानि खाते में किसी भी प्रकार का अधिशेष (निवल) अर्थात देय लाभांशों, शिक्षा निधि, अन्य निधियाँ जिनका उपयोग परिभाषित किया गया हो, आस्ति हानि, यदि कोई, आदि के विनियोग के बाद शेष ।
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आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 36(1)(viii) के अधीन सृजित विशेष रिज़र्व में बकाया राशि, यदि बैंक ने इस रिज़र्व पर आस्थगित कर देयता (डीटीएल) का सृजन किया है।
* नवोन्मेषी सतत ऋण लिखत जारी करने से संबंधित दिशानिर्देश 23 जनवरी 2009 के परिपत्र शसबैं.पीसीबी.परि.सं.39/09.16.900/2008-09 के अनुबंध में प्रस्तुत किए गए हैं।
टिप्पणी :
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अमूर्त आस्तियों की राशि, चालू वर्ष के दौरान तथा पिछली अवधियों से आगे लाई गई हानियों, एनपीए प्रावधानों में घाटे, अनर्जक आस्तियों पर गलती से दर्ज की गई आय, बैंक पर अंतरित देयता के लिए अपेक्षित प्रावधान आदि को टियर I पूँजी से घटा दिया जाए ।
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किसी निधि को टियर I पूँजी में शामिल करने के लिए निधि/ आरक्षित निधि को दो मानदंडों पर खरा उतरना चाहिए जैसे आरक्षित निधि/ निधि लाभ के विनियोग से सृजित की जानी चाहिए और उसे मुक्त आरक्षित निधि होना चाहिए न कि विशेष आरक्षित निधि । तथापि, यदि उसे लाभ के विनियोग से न सृजित करके लाभ पर प्रभार के द्वारा सृजित किया गया हो तो वस्तुत: यह निधि एक प्रवधान होगी और इस प्रकार वह नीचे दिए गए अनुसार केवल टियर II पूँजी के रूप में परिगणित की जाने के लिए पात्र होगी और वह जोखिम भारित आस्तियों के 1.25% की सीमा के अधीन होगी बशर्ते वह किसी समान संभावित हानि या किसी आस्ति के मूल्य में गिरावट या किसी ज्ञात देयता के कारण न हुई हो।
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24 मई 2011 के परिपत्र शबैंवि. बीपीडी (पीसीबी). परि. सं. 49/09.14. 000/2010-11 के अनुसार उपदान सीमा में बढोतरी होने तथा उपदान राशि का भुगतान अधिनियम 1972 में संशोधन के फलस्वरूप आस्थागित व्यय शहरी सहकारी बैंकों की टियर- I पूंजी से घटाया नहीं जाएगा।
4.2 टियर II पूँजी
टियर II पूँजी के अंतर्गत निम्नलिखित मदें शामिल होंगी :
4.2.1 अप्रकटित आरक्षित निधि:
इनमे प्राय: इक्विटी तथा प्रकटित आरक्षित निधियों के गुण होते हैं। उनमें अप्रत्याशित हानियें को अवशोषित करने की क्षमता हाती है और उन्हें पूँजी के अंतर्गत शामिल किया जा सकता है यदि वे संचित लाभ दर्शाती हों तथा वे किसी ज्ञात देयता के भार से ग्रस्त न हों और सामान्य हानियें एवं परिचालनगत हानियों को अवशोषित करने के लिए उनका नैमित्तिक रूप से इस्तेमाल न किया जाए ।
पुनर्मूल्यांकन आरक्षित निधि
4.2.2 ये आरक्षित निधियाँ प्राय: अप्रत्यक्षित हानियों के जवाब में कुशन का काम करती है लेकिन अपनी प्रकृति से वे स्थायी नहीं होती हैं और उन्हे "केंद्रीय पूँजी" के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। पुनर्मूल्यांकन आरक्षित निधि आस्तियों के पुनर्मूल्यांकन से सृजित होती हैं जिनका बैंक की बहियों में कम मूल्यांकन किया जाता है। इसका आदर्श उदाहरण बैंक के परिसर तथा विपणनीय प्रतिभूतियाँ हैं। अप्रत्याशित हानियों के जवाब़ में कुशन के रूप में पुनर्मूल्यांकन आरक्षित निधियों पर जिस सीमा तक भरोसा किया जा सकता है वह मुख्यत: निश्चितता के स्तर पर निर्भर करता है जो संबंधित आस्तियों के बाजार मूल्य, बाजार की कठिन परिस्थितियों या बाध्य होकर की गई बिक्री के कारण मूल्यों में गिरावट, उन मूल्यों के वास्तविक परिसमापन की संभावना, पुनर्मूल्यांकन के संबंधी परिणामों, आदि के आकलन के संबंध में निर्धारित किया जा सकता है। इसलिए, आरक्षित निधियों को टियर II पूँजी में शामिल करने के लिए उनके मूल्य का निर्धारण करते समय पुनर्मूल्यांकन आरक्षित निधि को 55% के बट्टे पर विचार करना विवेकपूर्ण होगा अर्थात पुनर्मूल्यांकन आरक्षित निधि की केवल 45% निधि को टियर II पूँजी के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिए। ऐसी आरक्षित निधियों को तुलन पत्र के मुखपृष्ठ पर पुनर्मूल्यांकन आरक्षित निधि के रूप में प्रदर्शित किया जाना चाहिए ।
सामान्य प्रावधान तथा हानि आरक्षित निधि
4.2.3 इनके अंतर्गत बैंक की बहियों में प्रकट होने वाले सामान्य प्रकृति के ऐसे प्रावधान शामिल होते हैं जो किसी स्पष्ट संभावित हानि, किसी आस्ति या ज्ञात देयता के मूल्य में ह्रास के कारण नहीं किए गए हों। यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए कि ऊपर दिए गए अनुसार टियर II पूँजी के एक भाग के रूप में सामान्य प्रावधान की किसी राशि पर विचार करने से पहले सभी ज्ञात हानियों तथा पूर्वाभासी एवं संभावित हानियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं। उदाहरणार्थ: अशोध्य एवं संदिग्ध ऋणों के संबंध में अतिरिक्त प्रावधान तथा मानक आस्तियों आदि के लिए सामान्य प्रावधान को इस श्रेणी के अंतर्गत शामिल किए जाने पर विचार किया जा सकता है । ऐसे प्रावधानों को कुल जोखिम भारित आस्तियों के 1.25% की सीमा तक स्वीकार किया जा सकता है जिन्हें टियर II पूँजी के अंतर्गत शामिल किए जाने पर विचार किया गया है।
विद्यमान अनुदेशों के अनुसार निवल एनपीए की राशि परिकलित करने के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार एनपीए के लिए किया गया प्रावधान सकल एनपीए की राशि से घटाकर किया जाता है। विभिन्न प्रकार के प्रावधान तथा पूंजी पर्याप्तता हेतु विवेकपूर्ण प्रयोग नीचे दिए गए है:
(क) अतिरिक्त सामान्य प्रावधान (अस्थिर प्रावधान)
अशोध्य ऋणों के लिए अतिरिक्त सामान्य प्रावधान (अस्थिर प्रावधान) अर्थात् किसी विशेष ऋण अशोध्यता (एनपीए) के लिए निर्धारित नहीं किए गए प्रवधानों का प्रयोग सकल एनपीए के समंजन के लिए अथवा टियर II पूँजी में शामिल करने के लिए किया जा सकता है लेकिन उनका प्रयोग दोनों रूपों में नहीं किया जा सकता।
(ख) एनपीए के लिए निर्धारित राशि से अधिक विशेष प्रावधान
निर्धारित राशि से अधिक विशेष प्रावधान करने की स्थिति में कुल विशेष प्रावधान की राशि को सकल एनपीए की राशि से घटाकर निवल एनपीए की राशि परिकलित करें। बैंक द्वारा एनपीए के लिए किया गया अतिरिक्त प्रावधान टियर II पूंजी में शामिल नहीं किया जाएगा ।
(ग) एनपीए की बिक्री पर अधिक प्रावधान
एनपीए की बिक्री की स्थिति में यदि आस्ति के बही मूल्य से बिक्री की राशि, धारित निवल प्रावधान से अधिक होने पर प्रावधान की अतिरिक्त राशि लाभ हानि-लेखों में वापस शामिल नहीं की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए ₹ 1,00,000 एनपीए के लिए बैंक ₹ 50,000 (अर्थात 50% ) प्रावधान रखता है और यदि आस्ति ₹ 70,000 में बेची जाती है तो ₹ 30,000 का नुकसान ₹ 50,000 प्रावधान से समायोजित किया जाएगा जिससे एनपीए की बिक्री के परिणामस्वरूप ₹ 20,000 अतिरिक्त प्रावधान राशि बचेगी। इस प्रकार की अतिरिक्त प्रावधान राशि "प्रावधान" के अंतर्गत जारी रखे तथा यह राशि जोखिम भारित आस्तियों की 1.25% समग्र सीमा के अधीन टियर II पूंजी शामिल की जाएगी ।
(घ) उचित मूल्य में ह्रास के लिए प्रावधान
6 मार्च 2009 के परिपत्र शबैंवि.पीसीबी.बीपीडी.सं.53 के पैरा 5.1 के अंतर्गत बैंकों को सूचित किया गया है कि विद्यमान प्रावधान मानदंडों के अनुसार पुनर्निर्धारित अग्रिमों के लिए बैंकों को प्रावधान करना चाहिए। इस प्रकार के प्रावधानों के अतिरिक्त ब्याज दर में कमी के कारण हुई हानि या पुननिर्धारित ऋण की मूलपूंजी की चुकौती के नियत समय में हुए परिवर्तन के कारण होनेवाली आर्थिक हानि के लिए बैंकों को प्रावधान करने के लिए सूचित किया गया है। मानक आस्ति तथा एनपीए दोनों मामलों में पुनर्निर्धारित अग्रिमों से समंजित करने की अनुमति दी गई है ।
निवेश उतार-चढ़ाव आरक्षित निधि
4.2.4 बैंक की निवेश उतार-चढ़ाव आरक्षित निधि के अंतर्गत शेष, यदि कोई ।
संकर ऋण पूँजी लिखत
4.2.5 इस श्रेणी के अंतर्गत ऐसे अनेक पूँजी लिखत आते हैं जिनमें कुछ गुण इक्विटी के तो कुछ गुण ऋण के होते हैं । प्रत्येक लिखत की एक प्रमुख विशेषता होती है जिस पर पूँजी के रूप में उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करने के लिए विचार किया जा सकता है । जहाँ ये लिखत विशेष रूप से इक्विटी के काफी समान होते हैं और जब से परिसमापन शुरू किए बगैर सतत आधार पर हानियों की भरपाई करने में समर्थ हों तो उन्हें टियर II पूँजी के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिए । लिखत नीचे दिए गए हैं:
(i) टियर II अधिमानी शेयर
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को अनुबंध III में दिए गए मौज़ूदा अनुदेशों के अनुसार सतत संचयी अधिमानी शेयर (पीसीपीएस), प्रतिदेय असंचयी अधिमानी शेयर (आरएनसीपीएस) तथा प्रतिदेय संचयी अधिमानी शेयर (आरसीपीएस) जारी करने की अनुमति है।
(ii) दिर्घकालिक (सबोर्डिनेटेड) जमाराशि: शहरी सहकारी बैंकों को कम से कम पांच साल की अवधि के लिए मीयादी जमाराशि जुटाने की अनुमति है जो निम्न टियर II पूंजी समझी जाएगी। विस्तृत दिशानिर्देश अनुबंध 4 में दिए गए हैं।
शहरी सहकारी बैंक अपने उपनियम के अधीन/ जिस को-आपरेटिव सोसाईटी के अंतर्गत पंजीकृत है उसके प्रावधान के अनुपालन तथा संबंधित निबंधक, सहकारि समितियां/ केंद्रीय निबंधक, सहकारी समितियां के अनुमोदन से अधिमानी शेयर तथा लंबावधि (सर्बोडिनेट) जमाराशि जारी कर सकते है ।
सबोर्डिनेटेड ऋण
4.2.6 टियर II पूंजी के अंतर्गत शामिल होने की पात्रता के लिए लिखत को पूर्णत: चुकता, गैर-जमानती, अन्य ऋणदाताओं के दावों के अधीन, प्रतिबंधात्मक उपबंधों से मुक्त होना चाहिए तथा धारक की पहल पर या बैंक के पर्यवेक्षी प्राधिकारियों की सहमति के बिना प्रतिदेय नहीं होना चाहिए। ऐसे लिखतों की प्राय: एक निर्धारित परिपक्वता अवधि होती है और जैसे-जैसे उनकी परिपक्वता अवधि पूरी होती है वैसे-वैसे उन्हें टियर II पूँजी के अंतर्गत शामिल करने के लिए उन पर क्रमिक रूप से बट्टा लगाया जाता है। ऐसे लिखतों को टियर II पूँजी के एक हिस्से के रुप में शामिल नहीं किया जाना चाहिए जिनकी प्रारंभिक परिपक्वता अवधि 5 वर्ष से कम हो या जिसकी परिपक्वता में एक वर्ष शेष हो । अधीनस्थ ऋण लिखत टियर II पूँजी के 50 प्रतिशत तक सीमित होंगे ।
अन्य शर्ते
4.3 यह नोट किया जाए कि टियर II के कुल घटकों को मानदंडों के अनुपालन के प्रयोजन से टियर II के कुल घटकों के अधिकतम 100 प्रतिशत तक सीमित होना चाहिए।
5. बाजार जोखिम के लिए पूँजी:
5.1 बाजार जोखिम को बाजार कीमतों में परिवर्तनों के कारण उत्पन्न तुलन पत्र तथा तुलनपत्रेतर स्थितियों में हानि के जोखिम के रूप में परिभाषित किया गया है। बाजार जोखिम स्थितियाँ, जो पूँजी प्रभारों के अधीन हैं, नीचे दी गई है :
-
ट्रेडिंग बुक के अंतर्गत ब्याज दर से संबंधित लिखतों तथा इक्विटियों से संबंधित जोखिम; तथा
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बैंक(बैंकिंग एवं ट्रेडिंग बुक दोनों) के संपूर्ण दायरे में विदेशी मुद्रा जोखिम (मूल्यवान धातुओं में खुली स्थिति सहित)
5.2 बाजार जोखिमों के लिए पूँजीगत अपेक्षा निर्धारित करने की दिशा में एक प्रारंभिक कदम के बतौर शहरी सहकारी बैंकों को सूचित किया गया था कि वे अपने लगभग संपूर्ण निवेश संविभाग पर 2.5 प्रतिशत का अतिरिक्त जोखिम भार निर्धारित करें। यह अतिरिक्त जोखिम भार को शहरी सहकारी बैकों के निवेश पोर्टफोलीओ के ऋण जोखिम के लिए निर्धारित जोखिम भार के साथ जोड़ा गया है। इसके अलावा शहरी सहकारी बैकों को यह सूचित किया गया है कि विदेशी मुद्रा की खुली स्थिति तथा स्वर्ण के लिए 100 प्रतिशत जोखिम भार तय करे तथा निवेश पोर्टफोलीओ में एचटीएम और एएफएस संवर्ग के निवेश के लिए 5 प्रतिशत निवेश उतार चढाव आरक्षित रखे।
5.3 जिन शहरी सहकारी बैंकों के पास एडी संवर्ग लाईसेंस है को 1 अप्रैल 2010 से बाजार जोखिम के लिए पूंजी रखना आवश्यक हैं। बाजार जोखिम के लिए पूंजी राशि रखने पर विस्तृत दिशानिर्देश 8 फरवरी 2010 के हमारे परिपत्र शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी) परि. सं. 42/09.11.600/2009-10 के माध्यम से दिए गए है।
विवरणियाँ
6. बैंकों द्वारा संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों को वार्षिक विवरणी प्रस्तुत करनी चाहिए जिसमें (i) पूंजीगत निधि, (II) तुलनपत्रेतर/ गैर-निधिकृत ऋणों का संपरिवर्तन,(III) जोखिम-भारित आस्तियें की गणना तथा (iv) पूंजीगत निधियों तथा जोखिम आस्तियां अनुपात दर्शाए गए हों। विवरणी का प्रारूप अनुबंध II में दिया गया है । विवरणियों पर रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जाने वाली सांविधिक विवरणियों पर हस्ताक्षर करने के लिए प्राधिकृत दो अधिकारियों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
परिशिष्ट
मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
सं. |
परिपत्र |
दिनांक |
विषय |
1 |
शबैंवि.बीपीडी (पीसीबी) परि. सं.67/09.50.001/2013-14 |
30.05.2014 |
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 36(1)(viii) के अधीन सृजित विशेष रिज़र्व पर आस्थगित कर देयता – शसबैं |
2 |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).परि.सं. 53/13.05.000/2013-14 |
28.03.2014 |
बहुराज्य शहरी सहकारी बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकरण कंपनी (एससी)/ पुनर्निर्माण कंपनी (आरसी) को वित्तीय आस्तियों की बिक्री पर दिशानिर्देश |
3 |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).परि.सं.51/19.08.201/2013-14 |
25.03.2014 |
पूंजीगत निधि में वृद्धि करने वाले लिखत – शहरी सहकारी बैंक – संशोधन |
4 |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).परि. सं.45 /13.05.000/2013-14 |
28.01.2014 |
आवास क्षेत्र : सीआरई क्षेत्र के अंतर्गत सीआरई- आवासीय मकान (रेजिडेंशियल हाउसिंग) (सीआरई-आरएच) नामक नया उप क्षेत्र तथा प्रावधानीकरण एवं जोखिम भार का युक्तिसंगत किया जाना |
5 |
शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी)परि.सं.37/09.22.010/2013-14 |
14.11.2013 |
निम्न आय वर्ग के लिए प्रदान किए जाने वाले आवास ऋण क्रेडिट जोखिम निधि ट्रस्ट द्वारा गारंटीकृत अग्रिम (सीआरजीएफटीएलआईएच) पर – जोखिम भार और प्रावधानीकरण |
6 |
शबैंवि.केंका.बीपीडी(पीसीबी)परि.सं.25/09.18.200/2013-14 |
01.10.2013 |
शहरी सहकारी बैंकों में उधार के लिए शेयर लिंकिंग मानदंड़ |
7 |
शबैंवि.बीपीडी.(एससीबी)परिपत्र सं.4/16.20.000/2012-13 |
10.06.2013 |
कॉरपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में तैयार वायदा संविदा |
8 |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).सं.49/09.14.000/2010-11 |
24.05.2011 |
उपदान सीमा में बढ़ोतरी - विवेकपूर्ण विनियामकीय पद्धति |
9 |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).सं.22/09.18.201/2010-11 |
15.11.2010 |
शहरी सहकारी बैंकों में उधार से शेयर को जोडने वाले मानदंड |
10 |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).सं.42/09.11.600/2009-10 |
08.02.2010 |
बाजार जोखिम के लिए पूंजी रखने पर विवेकपूर्न दिशानिर्देश |
11 |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).सं.30/09.14.000/2008-09 |
16.12.2009 |
ऋण संविभाग से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रावधानों का विवेकपूर्ण प्रयोग |
12 |
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).सं.24/09.14.000/2009-10 |
27.11.2009 |
दीर्घ कालिक जमाराशि जारी करने के माध्यम से पूंजीगत निधि में वृद्धि |
13 |
शबैंवि.पीसीबी.सं.73/09.14.000/2008-09 |
29.06.2009 |
ऋण संविभागों के संबंध में विभिन्न प्रकार के प्रावधानों का विवेकपूर्ण निरूपण |
14 |
शबैंवि.पीसीबी.सं.61/09.18.201/2008-09 |
21.04.2009 |
पूंजीगत निधि में वृद्धि करने वाले लिखत |
15 |
शबैंवि.पीसीबी.सं.32/09.18.201/2008-09 |
13.01.2009 |
पूंजीगत निधि में वृद्धि करने वाले लिखत |
16 |
शबैंवि.पीसीबी.सं.29/09.11.600/2008-09 |
01.12.2008 |
विवेकपूर्ण मानदंडों की समीक्षा - मानक आस्तियों के लिए प्रावधान तथा वाणिज्यिक स्थावर संपदा तथा ग़ैर -बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को ऋण पर जोख़िम-भार |
17 |
शबैंवि.पीसीबी.सं.4/09.18.201/2008-09 |
15.07.2008 |
पूंजीगत निधि में वृद्धि करने वाले लिखत |
18 |
शबैंवि.पीसीबी.सं.53/13.05.000/2007-08 |
16.06.2008 |
आवासीय संपत्ति द्वारा सुरक्षित दावे - जोखिम भारों के लिए सीमाओं में परिवर्तन |
19 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.31/09.11. 600/2007-08 |
29.01.2008 |
पूंजी पर्याप्ता के लिए विवेकपूर्ण मानदंड - शैक्षणिक ऋणों के लिए जोखिम भार |
20 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.40/13.05.000/2006-07 |
04.05.2007 |
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य - रिहायशी आवासीय ऋण - जोखिम भार में कमी |
21 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.39/13.05.000/2006-07 |
30.04.2007 |
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य - स्वर्ण एवं चांदी के आभूषणों पर दिए गए ऋण - जोखिम भार में कमी |
22 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.30/09.11.600/2006-07 |
19.02.2007 |
वर्ष 2006-07 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा - मानक आस्तियों के लिए प्रावधानीकरण संबंधी अपेक्षा |
23 |
शबैंवि.बीपीडी.परि.सं.7/09.29.000/2006-07 |
18.08.2006 |
केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों में 'जब जारी' लेनदेन - लेखाकरण तथा संबंधित पहलू |
24 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.55/09.11.600/2005-06 |
01.06.2006 |
वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य - वाणिज्यिक स्थावर संपदा को ऋण पर जोखिम - भार |
25 |
शबैंवि.पीसीबी.बीपीडी.परि.सं.46/13.05.000/2005-06 |
19.04.2006 |
साख पत्र के अंतर्गत भुनाई गई हुंडियां - जोखिम -भार एवं ऋण सीमा संबंधी मानदंड |
26 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.9/13.05.00/2005-06 |
09.08.2005 |
पूंजी बाजार ऋण के लिए जोखिम भार |
27 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.8/09.116.00/2005-06 |
09.08.2005 |
पूंजी पर्याप्तता संबंधी विवेकपूर्ण मानदंड - आवासीय वित्त /वाणिज्यिक स्थावर संपदा ऋणों पर जोखिम भार |
28 |
शबैंवि.डीएस.परि.सं.44/12.05.00/2004-05 |
15.04.2005 |
अग्रिमों पर अधिकतम सीमा - व्यक्तियों / उधारकर्ताओं के समूह को ऋण पर सीमाएं |
29 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.33/09.116.00/2004-05 |
05.01.2005 |
आवासीय वित्त तथा उपभोक्ता ऋण पर जोखिम भार |
30 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.26/09.140.00/2004-05 |
01.11.2004 |
विवेकपूर्ण मानदंड - राज्य सरकार द्वारा गारंटीकृत ऋण |
31 |
शबैंवि.बीपीडी.पीसीबी.परि.सं.52/09.116.00/2003-04 |
15.06.2004 |
सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं को ऋण के लिए जोखिम भार |
32 |
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.37/13.05.000/2003-04 |
16.03.2004 |
बैंकों द्वारा हुंडियों की भुनाई /पुनर्भुनाई |
33 |
शबैंवि.सं.बीपीडी.पीसीबी.परि.34/13.05.00/2003-04 |
11.02.2004 |
अग्रिमों पर उच्चतम सीमा - व्यक्तियों/ उधारकर्ताओं के समूह को ऋण की सीमाएं |
34 |
शबैंवि.सं.पॉट.पीसीबी.परि.18/09.22.01/2002-03 |
30.09.2002 |
आवासीय वित्त पर जोखिम भार |
35 |
शबैंवि.सं.पॉट.पीसीबी.परि.45/09.116.00/2000-01 |
25.04.2001 |
शहरी (प्राथमिक ) सहकारी बैंकों के लिए पूंजी पर्याप्तता संबंधी मानदंड का प्रयोग |
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