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अधिसूचनाएं

स्वयंसहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र

भारिबैं/2016-17/3
विसविवि.एफआईडी.बीसी.सं.06/12.01.033/2016-17

01 जुलाई 2016

अध्‍यक्ष/ प्रबंध निदेशक/
मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक

महोदय/ महोदया,

स्वयंसहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र

भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय-समय पर बैंकों को स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम के संबंध में अनेक दिशा-निर्देश/ अनुदेश जारी किए हैं। बैंकों को सभी अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के प्रयोजन से विद्यमान दिशा-निर्देशों/ अनुदेशों को समाहित करते हुए एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है जो इसके साथ संलग्न है। इस मास्टर परिपत्र में, परिशिष्ट में दिए गए अनुसार, रिज़र्व बैंक द्वारा 30 जून 2016 तक उक्त विषय पर जारी सभी परिपत्र समेकित एवं अद्यतन किए गए हैं।

भवदीय

(ए. उद्गाता)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नक : यथोक्त


स्वयं सहायतासमूह (एसएचजी) - बैंक सहलग्नता कार्यक्रम परमास्टर परिपत्र

1. देश में औपचारिक ऋण प्रक्रिया का तेजी से विस्तार होने के बावजूद, बहुत से क्षेत्रों में, विशेष रूप से आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गरीब ग्रामीणों की निर्भरता अधिकांशत: साहूकारों पर ही थी। ऐसी निर्भरता सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग और जनजातियों के सीमान्त किसानों, भूमिहीन मजदूरों, छोटे व्यवसायियों और ग्रामीण कारीगरों में देखने को मिलती थी जिनकी बचत की क्षमता व राशि इतनी सीमित होती है कि बैंकों द्वारा उसे इक्टठा नहीं किया जा सकता। कई कारणों से इस वर्ग को दिए जाने वाले ऋण को संस्थागत नहीं किया जा सका है। गैर सरकारी संगठनों द्वारा बनाए गए अनौपचारिक समूहों पर नाबार्ड, एशियाई और प्रशांत क्षेत्रीय ऋण संघ (एप्राका) और अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा किए गए अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि स्वयं सहायता बचत और ऋण समूहों में औपचारिक बैंकिंग ढांचे और ग्रामीण गरीबों को आपसी लाभ के लिए एकसाथ लाने की संभाव्यता है एवं उनका कार्य उत्साहजनक रहा है।

2. तदनुसार, नाबार्ड ने गैर-सरकारी संगठनों, बैंकों और प्रायोगिक परियोजना के अंतर्गत अन्य एजेंसिंयों द्वारा प्रवर्तित स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को शामिल करने हेतु एक प्रायोगिक परियोजना आरंभ की तथा उसे पुनर्वित्त का समर्थन प्रदान किया गया। नाबार्ड द्वारा कुछ राज्यों में परियोजना सहलग्नता के प्रभाव के मूल्यांकन के संबंध में किए गए त्वरित अध्ययन से प्रोत्साहनपूर्ण तथा सकारात्मक विशेषताएं सामने आई हैं यथा स्वयं सहायता समूहों के ऋण की मात्रा में वृद्धि, सदस्यों के ऋण ढांचे में, आय न होने वाली गतिविधियों से उत्पादक गतिविधियों में परिवर्तन, लगभग 100 प्रतिशतवसूली कार्यनिष्पादन, बैंकों और उधारकर्ताओं दोनों के लिए लेन-देन लागत में भारी कटौती इत्यादि के साथ-साथ स्वयं सहायता समूह सदस्यों के आय स्तर में क्रमिक वृद्धि। सहलग्नता परियोजना की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि बैंकों से सहलग्न लगभग 85 प्रतिशत के समूह केवल महिलाओं द्वारा गठित थे।

3. एसएचजी और गैर संगठनों की कार्यप्रणाली के अध्ययन के विचार से ग्रामीण क्षेत्र में उनकी गतिविधियों और भूमिका के विस्तार के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने श्री एस. के. कालिया नाबार्ड के तत्कालीन प्रबंध निदेशक की अध्यक्षता में नवंबर 1994 में एक कार्यदल का गठन किया जिसमें प्रमुख गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता, शिक्षाविद्, परामर्शदाता और बैंकर थे। कार्यदल का विचार था कि औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से अब तक अछूते ग्रामीण गरीब लोगों को ऋण उपलब्ध कराने की स्थिति में सुधार के लिए एसएचजी को बैंकों से सहलग्न करना एक लागत प्रभावी, पारदर्शी और लचीला उपाय है और इससे ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण वसूली तथा बारंबार अंतराल पर छोटे उधारकर्ताओं के साथ लेन-देन में उच्च लेन-देन लागत की बैंकों की दोहरी समस्या का अति आवश्यक समाधान प्रदान की जाने की आशा है। अतः कार्यदल को ऐसा महसूस हुआ कि नीति का मुख्य उद्देश्य स्व-सहायता समूहों के गठन तथा बैंकों से उनकी सहलग्नता को प्रोत्साहित करना है और इस संबंध में बैंकों को मुख्य भूमिका निभानी होगी। कार्यदल ने सिफारिश की थी कि बैंकों को सहलग्नता कार्यक्रम को एक कारोबारी अवसर के रूप में लेना चाहिए तथा वे अन्य बातों के साथ-साथ संभाव्यता, स्थानीय आवश्यकताओं, उपलब्ध प्रतिभा/ कौशल आदि को ध्यान में रखकर क्षेत्र-विशिष्ट और समूह - विशिष्ट ऋण पैकेज बनाएं।

4. रिज़र्व बैंक ने माइक्रो-वित्त वितरण संबंधी विभिन्न मामलों की जांच करने हेतु अक्तूबर 2002 में चार अनौपचारिक समूह गठित किए थे। समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति तथा केंद्र की बजट घोषणाओं में बैंकों के साथ एसएचजी की सहलग्नता पर ज़ोर दिया गया है तथा इस संबंध में बैंकों को विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। एसएचजी सहलग्नता कार्यक्रम को बढ़ावा देने तथा उसे कायम रखने हेतु बैंकों को सूचित किया गया हैं कि वे नीति और कार्यान्वयन दोनों स्तर पर एसएचजी उधार देने को अपनी मुख्य धारा के ऋण परिचालनों का एक भाग ही मानें। एसएचजी सहलग्नता को वे अपनी कारपोरेट कार्यनीति/ योजना, अपने अधिकारियों और स्टाफ के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल करें तथा इसे एक नियमित व्यवसायिक गतिविधि के रूप में लागू करें और आवधिक रूप से उसकी निगरानी एवं समीक्षा करें।

5. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत एक पृथक खंड : बैंक एसएचजी को दिए गए अपने उधारों की रिपोर्ट बिनाकिसी कठिनाई के कर सकें, इसलिए यह निर्णय लिया गया था कि बैंकों को चाहिए कि वे अपनी रिपोर्ट मेंएसएचजी के सदस्यों को आगे उधार देने के लिए एसएचजी को दिए गए ऋण को संबंधित श्रेणी नामतः “एसएचजी को अग्रिम” दर्शाएं, चाहे एसएचजी के सदस्यों को दिए गए ऋण का प्रयोजन कुछ भी हों। एसएचजी कोदिए गए ऋणों को बैंक कमज़ोर वर्गों को दिए गए अपने ऋण के एक भाग के रूप में शामिल करें।

6. बचत बैंक खाता खोलना : पंजीकृत और अपंजीकृत एसएचजी जो अपने सदस्यों की बचत आदतों को बढ़ाने के कार्य में संलग्न हैं, बैंकों के साथ बचत खाते खोलने के पात्र हैं । यह आवश्यक नहीं है कि इन एसएचजी ने बचत बैंक खाते खोलने से पहले बैंकों की ऋण सुविधा का उपयोग किया हो। चूंकि सभी पदधारियों का केवाईसी सत्‍यापन पर्याप्‍त है, अत: एसएचजी के बचत बैंक खाते खोलते समय एसएचजी के सभी सदस्‍यों का केवाईसी सत्‍यापन करने की आवश्‍यकता नहीं है। साथ ही, यह स्‍पष्‍ट किया जाता है कि चूंकि बचत बैंक खाता खोलते समय केवाईसी का पहले ही सत्‍यापन किया जा चुका होगा और उक्‍त खाता परिचालन में होने और उसे ऋण सहलग्नता के लिए प्रयोग में लाए जाने पर, एसएचजी को ऋण सहलग्नता प्रदान करते समय सदस्‍यों अथवा पदधारियों का अलग से केवाईसी सत्‍यापन करने की आवश्‍यकता नहीं है।

7. एसएचजी उधारियाँ आयोजना प्रक्रिया का भाग हों : एसएचजी को बैंकों द्वारा दिए गए उधारों को प्रत्येक बैंक की शाखा ऋण योजना, ब्लॉक ऋण योजना, जिला ऋण योजना और राज्य ऋण योजना में सम्मिलित किया जाना चाहिए। जब एसएचजी बैंक सहलग्नता कार्यक्रम के अंतर्गत कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया जा रहा हो तो इन योजनाओं को तैयार करने में इस क्षेत्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसे बैंक की कारपोरेट ऋण योजना का एक महत्वपूर्ण भाग होना चाहिए।

8. मार्जिन और प्रतिभूति मानदण्ड : नाबार्ड के परिचालनगत दिशानिर्देशों के अनुसार, बैंकों द्वारा एसएचजी को बचत सहलग्न ऋण स्वीकृत किया जा सकता है (यह बचत और ऋण अनुपात 1 : 1 से 1 : 4 तक भिन्न-भिन्न हो सकता है)। यद्यपि, परिपक्व एसएचजी के मामलों में, बैंक के विवेकानुसार बचत के चार गुणा तक ऋण सीमा से परे भी ऋण प्रदान किया जा सकता है। अनुभव यह दर्शाता है कि समूह के महत्व और दबाव से एसएचजी के सदस्यों से उत्तम वसूली हुई है। बैंकों को मार्जिन, प्रतिभूति मानदण्डों, इत्यादि के संबंध में दी गई लचीलेपन की अनुमति के अन्तर्गत ये प्रायोगिक परियोजनाएं इस प्रायोगिक चरण के बाद भी सहलग्नता कार्यक्रम के अन्तर्गत बनी रहेंगी।

9. दस्तावेजीकरण : एक ऐसी आसान प्रणाली, जिसमें न्यूनतम क्रियाविधि और दस्तावेजीकरण की अपेक्षा हो, एसएचजी को ऋण के प्रवाह में वृद्धि करने की पूर्व शर्त है। उधारों के स्वरूप और उधारकर्ता के स्तर को ध्यान में रखते हुए बैंकों को अपने शाखा प्रबंधकों को पर्याप्त मंजूरी अधिकार प्रदान करके ऋण शीघ्र स्वीकृत और संवितरित करने की व्यवस्था करनी चाहिए तथा परिचालनगत सभी व्यवधानों को दूर करना चाहिए। ऋण आवेदन फार्मों, प्रक्रिया और दस्तावेजों को आसान बनाना चाहिए। इससे शीघ्र और सुविधाजनक रूप से ऋण उपलब्ध कराने में सहायता मिलेगी।

10. एसएचजी में चूककर्ताओं की उपस्थिति : एसएचजी के कुछ सदस्यों तथा/ अथवा उनके पारिवारिक सदस्यों द्वारा बैंक वित्त के प्रति चूक को सामान्यतया एसएचजी के वित्तपोषण में आड़े नहीं आना चाहिए, बशर्ते कि एसएचजी ने चूक न की हो। तथापि, एसएचजी द्वारा बैंक ऋण का उपयोग बैंक के चूककर्ता सदस्य को वित्त देने के लिए न किया जाए।

11. क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण : सहलग्नता कार्यक्रम में आधार स्तर के पदाधिकारियों और बैंक के नियंत्रक तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का सुग्राहीकरण एक महत्वपूर्ण कदम होगा। आधार स्तर और नियंत्रक कार्यालय स्तर पर बैंक अधिकारियों/ स्टाफ की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बैंक एसएचजी सहलग्नता परियोजना के आन्तरिककरण के लिए आवश्यक उपाय कर सकते हैं तथा आधार स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए अल्पावधि केकार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। साथ ही, उनके मध्यम स्तर के नियंत्रक अधिकारियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों के लिए उचित जागरूकता/ सुग्राहीकरण कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं।

12. एसएचजी उधार की निगरानी और समीक्षा : एसएचजी की संभाव्यता के मद्देनजर बैंकों को विभिन्न स्तरों पर नियमित रूप से प्रगति की निगरानी करनी चाहिए। असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने के लिए चल रहे एसएचजी बैंक सहलग्नता कार्यक्रम को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बैंकों को जनवरी 2004 में सूचित किया गया था कि राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति और जिला स्तरीय बैंकर्स समिति की बैठकों में एसएचजी बैंक सहलग्नता कार्यक्रम की निगरानी पर चर्चा के लिए उसे कार्यसूची की एक मद के रूप में नियमित रूप से रखा जाना चाहिए। इसकी समीक्षा तिमाही आधार पर उच्चत्तम कारपोरेट स्तर पर की जानी चाहिए। साथ ही, बैंकों द्वारा नियमित अन्तराल पर कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा की जाए। प्रत्येक वर्ष 30 सितंबर और 31 मार्च को समाप्त छमाही के आधार पर नाबार्ड (एम.सी.आई.डी.), मुम्बई को प्रगति रिपोर्ट भेजी जाए, जैसा कि दिनांक 21 मई 2015 के परिपत्र विसविवि.एफआईडी.बीसी.सं.56/12.01.033/2014-15 में निर्धारित किया गया है, ताकि संबंधित रिपोर्ट छमाही की समाप्ति के 30 दिन के भीतर नाबार्ड कार्यालय पहुंच जाए।

13. एसएचजी सहलग्नता को प्रोत्साहित करना : बैंकों को अपनी शाखाओं को एसएचजी को वित्तपोषित करने और उनके साथ सहलग्नता स्थापित करने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि प्रक्रिया बिलकुल सरल और आसान हो तथा स्थानीय स्थिति से मेल खाने वाली ऐसी प्रक्रिया में पर्याप्त लचीलापन हो। एसएचजी की कार्यप्रणाली की सामूहिक प्रगति उन पर ही छोड़ दी जाए और न उन्हें विनियमित किया जाए और न ही उन पर औपचारिक ढांचा थोपा जाए। एसएचजी के वित्तपोषण के प्रति दृष्टिकोण बिल्कुल बाधारहित होना चाहिए तथा उनमें उपभोग व्यय भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।

14. ब्याज दरें : बैंकों द्वारा एसएचजी/ सदस्य हिताधिकारियों को दिए गए ऋणों पर लागू होने वाली ब्याज दरों को उनके विवेकाधिकार पर छोड़ दिया जाए।

15. सेवा/प्रक्रिया प्रभार : रु.25,000/- तक के प्राथमिकता-प्राप्त ऋण पर ऋणसंबंधी कोई और तदर्थ सेवा प्रभार/ निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाना चाहिए। एसएचजी/जेएलजी को दिए जाने वाले योग्य प्राथमिकता-प्राप्त ऋणों के मामले में, यह सीमा समूह के प्रति सदस्य पर लागू होगी समग्र समूह पर नहीं।

16. एसएचजी का कुल वित्तीय समावेशन और ऋण आवश्यकता : बैंकों को सूचित किया गया है कि वे वर्ष 2008-09 के लिए माननीय वित्त मंत्री द्वारा घोषित केंद्रीय बजट के पैरा 93 में की गई परिकल्‍पना के अनुसार एसएचजी के सदस्यों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करें जिसमें निम्‍नानुसार कहा गया था : "बैंकों को समग्र वित्तीय समावेशन की अवधारणा अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। सरकार सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों से कुछेक सरकारी क्षेत्र के बैंकों के नक्शे कदम पर चलने और एसएचजी के सदस्यों की सभी ऋण संबंधी आवश्यकताएं अर्थात् (क) आय उपार्जक क्रियाकलाप, (ख) सामाजिक आवश्यकताएं जैसे आवास, शिक्षा, विवाह, आदि और (ग) ऋण अदला-बदली (स्वैप) की आवश्यकताओं को पूरा करने का अनुरोध करेगी”।


मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

क्रम सं. परिपत्र सं. तारीख विषय
1. ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.13/पीएल-09.22/91/92 24 जुलाई 1991 ग्रामीण गरीबों की बैंकिंग तक पहुँच में सुधार - मध्यस्थ एजेंसियों की भूमिका - स्वयं सहायता समूह
2. ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.120/04.09.22/95-96 2 अप्रैल 1996 बैंकों से स्वयं सहायता समूहों को सहलग्न करना - गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों पर कार्यदल - सिफारिशें - अनुवर्ती कार्रवाई
3. बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.11/13.01.08/98 10 फरवरी 1998 स्वयं सहायता समूहों के नाम में बचत बैंक खाते खोलना
4. ग्राआऋवि.सं.पीएल.बीसी.12/04.09.22/98-99 24 जुलाई 1998 बैंकों के साथ स्वयं सहायता समूहों की सहलग्नता
5. ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.94/04.09.01/98-99 24 अप्रैल 1999 माइक्रो ऋण संगठनों को ऋण - ब्याज दरें
6. ग्राआऋवि.सं.पीएल.बीसी.28/04.09.22/99-2000 30 सितंबर 1999 माइक्रो ऋण संगठनों/स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ऋण सुपुर्दगी
7. ग्राआऋवि.सं.पीएल.बीसी.62/04.09.01/99-2000 18 फरवरी 2000 माइक्रो ऋण
8. ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.42/04.09.22/2003-04 3 नवंबर 2003 माइक्रो वित्त
9. ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.61/04.09.22/2003-04 9 जनवरी 2004 असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना
10. भारिबैं/385/2004-05 ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.84/04.09.22/2004-05 3 मार्च 2005 माइक्रो ऋण के अन्तर्गत प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना
11. भारिबैं/2006-07/441 ग्राआऋवि.केंका.एमएफएफ आइ.बीसी.सं.103/12.01.01/2006-07 20 जून 2007 माइक्रो वित्त - प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना
12. ग्राआऋवि.केंका.एमएफएफआइ.बीसी.सं.56/12.01.001/2007-08 15 अप्रैल 2008 समग्र वित्तीय समावेशन तथा एसएचजी की ऋण आवश्यकताएं
13. बैंपविवि.एएमएल.बीसी.87/14.01.001/2012-13 28 मार्च 2013 अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) मानदंड/ धनशोधन निवारण (एएमएल) मानक/ आतंकवाद के वित्‍तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी)/ धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के अंतर्गत बैंकों के उत्‍तरदायित्‍व –स्‍वयं सहायता समूहों के लिए मानदंडों का सरलीकरण
14 विसविवि.एफआईडी.बीसी.सं.56/12.01.033/2014-15 21 मई 2015 स्‍वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्‍नता कार्यक्रम – प्रगति रिपोर्टों का संशोधन

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