दिनांक
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घटना
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1 अप्रैल 1935
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भारतीय रिज़र्व बैंक ने कार्य करना प्रारंभ किया। सर ओसबोर्न स्मिथ पहले गवर्नर। बैंक
का गठन शेयरधारकों (शेयरहोल्डर्स) के बैंक के रूप में हुआ था।
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5 जुलाई 1935
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अनुसूचित बैंकों से अपनी माँग (डिमांड) देयताओं के 5% और मीयादी देयताओं (टाइम लायबिलिटीज़)
के 2% के बराबर आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर), अर्थात् आरबीआई के पास नकद शेष
अपेक्षित।
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अक्टूबर 1935
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रिज़र्व बैंक का लंदन कार्यालय तैयार। 30 सितंबर 1063 को यह बंद हुआ था।
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1 नवंबर 1936
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प्रथम गवर्नर सर ओसबोर्न स्मिथ का त्यागपत्र, 1 जुलाई 1937 से प्रभावी।
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15 जनवरी 1937
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भारतीय कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 1936 ने केवल बैंकों के लिए अलग से एक खंड समर्पित
किया।
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1 जुलाई 1937
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सर जेम्स ब्रैड टेलर ने गवर्नर का कार्यभार संभाला।
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1937
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भारतीय रिज़र्व बैंक, बर्मा की सरकार के लिए बैंकर और बर्मा के मुद्रा जारी करने की
जिम्मेदारी संभाली।
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जनवरी 1938
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रिज़र्व बैंक के प्रथम नोट जारी।
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21 जून 1938
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ट्रावणकोर क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक ट्रावणकोर नेशनल एंड क्विलॉन बैंक की विफलता ने
व्यापक बैंकिंग सुधार व विधान की आवश्यकता को रेखांकित किया।
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3 सितंबर 1939
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डिफेंस ऑफ़ इंडिया रूल्स के अंतर्गत विदेशी मुद्रा नियंत्रण की शुरुआत।
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11 मार्च 1940
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आरबीआई लेखा-वर्ष जनवरी-दिसंबर से बदलकर जुलाई-जून
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1940
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चाँदी के रुपए की जगह चतुष्क मिश्र धातु रुपए ने ली। एक रुपए के नोट की पुन: शुरुआत।
इस नोट का स्टेटस रुपया सिक्का (रुपी कॉइन) का था और यह भारत में आधिकारिक वैध/कागजी
मुद्रा (फियाट मनी) के प्रारंभ का दर्शाता है।
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11 अगस्त 1943
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सर सी.डी देशमुख ने गवर्नर का कार्यभार संभाला।
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1944
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भारत में पहली बार सुरक्षा विशेषता के रूप में नोटों पर सुरक्षा धागे की शुरुआत हुई।
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1944
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रिज़र्व बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों और लोक ऋण के प्रबंधन संबंधी कानून लोक ऋण
अधिनियम, 1944 के आधार पर समेकित किए गए।
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26 मई 1945
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वित्तीय व बुलियन बाजारों में अटकलिया (स्पेक्यूलेटिव) गतिविधियां। डिफेंस ऑफ़ इंडिया
रूल्स का प्रयोग करते हुए रिज़र्व बैंक को बैंकों से अग्रिमों के बारे में सूचना एकत्रित
करने का प्राधिकार दिया गया।
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9 जून 1945
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बर्मा के ब्रिटिश मिलिटरी एडमिनिस्ट्रेशन के मुद्रा व सिक्के तथा बीएमए के बैंकर का
कार्य भी भारतीय रिज़र्व बैंक को सौंपा गया।
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12 जनवरी 1946
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बेहिसाबी धन पर लगाम लगाने के लिए रु.500, रु.1000, रु.10,000 के उच्चमूल्यवर्गीय बैंक
नोटों को विमुद्रिकृत (डिमॉनीटाइज़्ड) कर दिया गया।
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1946
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अध्यादेश द्वारा बैंक पर्यवेक्षण की अंतरिम व्यस्थाएं लागू की गईं जिनके स्थान पर बाद
में बैकिंग कंपनी ऐक्ट, 1949 को लाया गया। इन अध्यादेशों से रिज़र्व बैंक को बैंकों
के निरीक्षण का और बैंक शाखाओं की लाइसेंसिंग को प्राधिकृत करने का अधिकार मिला।
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30 जून 1948
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आरबीआई ने सेंट्रल बैंक ऑफ पाकिस्तान के रूप में कार्य करना बंद कर दिया। स्टेट बैंक
ऑफ़ पाकिस्तान ने 1 जुलाई 1949 से कार्य करना प्रारंभ किया।
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1 जनवरी 1949
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भारतीय रिज़र्व बैंक राष्ट्रीयकृत।
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16 मार्च 1949
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बैंकिंग कंपनी ऐक्ट, 1949 लागू। यह भारत में बैंक पर्यवेक्षण व विनियमन का वैधानिक
आधार बना। पहली बार सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) लागू हुआ जिसके अनुसार बैंकों
से चलनिधि आस्तियां रखने की अपेक्षा की जाती है। बैंकिंग कंपनी ऐक्ट का नाम बाद में
बैंकिंग रेग्यूलेशन ऐक्ट पड़ा।
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1 जुलाई 1949
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सर बेनेगल रामा राउ ने गवर्नर का कार्यभार संभाला।
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19 सितंबर 1949
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'स्टर्लिंग क्षेत्र’ के अन्य देशों द्वारा अवमूल्यन के बाद रक्षात्मक उपाय के रूप में रुपए का 30.5% अवमूल्यन किया गया।
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