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संकट और सुधार - 1991 से 2000

दिनांक घटना
1 व 3 जुलाई 1991 बाह्य भुगतान संकट। दो चरणों में रुपए का अवमूल्यन। कुल अवमूल्यन यूएसडी के संदर्भ में में लगभग 18 प्रतिशत।
नवंबर 1991 नरसिंहमम समिति रिपोर्ट ने भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में दूरगामी सुधारों के सुझाव दिए। इसमें एसएलआर व सीआरआर में चरणबद्ध कटौती, लेखांकन मानक, आय निर्धारण मानक और पूँजी पर्याप्तता मानक भी शामिल थे।
मार्च 1992 उदारीकृत विनिमय दर प्रबंध प्रबंध प्रणाली (लर्म्स) नामक दोहरी विनिमय दर प्रणाली लागू। बाजार निर्धारित विनिमय दर की ओर चलने का यह प्रारंभिक कदम था।
अप्रैल 1992 आय निर्धारण और आस्ति वर्गीकरण मानक लागू। प्रावधानीकरण व पूँजी पर्याप्तता मानक निर्धारित। भारतीय बैंकों द्वारा इनका पालन 1994 और 1996 तक अपेक्षित।
22 दिसंबर 2009 सी. रंगराजन गवर्नर नियुक्त।
1992 सेबी ने ‘भेदिया व्यापार (इनसाइडर ट्रेडिंग) विनियम’ बनाए।
1993 एकीकृत विनिमय दर।
1993 निजी क्षेत्र (प्राइवेट सेक्टर) के बैंकों की स्थापना के दिशानिर्देश जारी। स्पर्धा को बढ़ाने वाली नई नीतिगत पद्धति का सूचक।
15 जुलाई 1994 राष्ट्रीयकृत बैंकों को अपना पूँजी आधार बढ़ाने के लिए पूँजी बाजार के दोहन की अनुमति।
जून 1994 नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने कार्य करना शुरू किया।
1994 'बीमा क्षेत्र सुधार समिति', आरएन मल्होत्रा।
अगस्‍त 1994 चालू खाते में रुपया परिवर्तनीय बनाया गया। आईएमएफ के करार की शर्तों की धारा VIII की स्वीकृति।
अक्टूबर 1994 वाणिज्य बैंकों की उधारी दरें अविनियमित की गईं। बैंकों से अपनी मूल उधार दर (पीएलआर) घोषित करने की अपेक्षा।
3 फरवरी 1995 भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण लिमिटेड रिज़र्व बैंक की एक पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक कंपनी के रूप में स्थापित। जून 1 को मैसूर में और दिसंबर 11 को सालबनी में नोटों की छपाई प्रारंभ।
जून 1995 बैंकिंग सेवाओं से जुड़ी ग्राहक शिकायतों के त्वरित व किफायती निपटारे के लिए बैंकिंग लोकपाल कार्यालय की स्थापना।
अक्टूबर 1995 दो वर्ष की परिपक्वता वाली देशी मियादी जमाराशियों पर बैंकों को अपना ब्याज दर तय करने की अनुमति।
17 दिसंबर 1996 आरबीआई वेबसाइट ने कार्य शुरू किया।
1 अप्रैल 1997 राजकोषीय घाटे के स्वत: मुद्रीकरण को समाप्त करते हुए आरबीआई और भारत सरकार तदर्थ खजाना बिलों की प्रणाली के स्थान पर अर्थोपाय अग्रिम की व्यवस्था लाने पर सहमत।
6 जून 1997 आरबीआई ने 14 दिवसीय खजाना बिलों की प्रथम नीलामी संचालित की। अक्टूबर में 28 दिनों के खजाना बिलों की शुरुआत।
10 जुलाई 1997 विदेशी संस्थागत निवेशकों (ऋण निधि) को दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश की अनुमति।
22 नंवबर 1997 बिमल जालान गवर्नर नियुक्त।
28 नवंबर 1997 एशियाई मुद्रा संकट पर कार्रवाई के तौर पर कई कदम उठाए गए।
28 नवंबर 1997 चलनिधि (लिक्विडिटी) प्रबंधन में परिवर्तनशीलता लाने तथा मुद्रा व विदेशी मुद्रा बाजारों में सुव्यवस्था लाने के लिए सरकारी-प्रतिभूतियों में निर्धारित दर रिपो प्रारंभ।
19 दिसंबर 1997 पहली बार पूँजी सूचकांक (कैपिटल इंडेक्स) बॉण्ड जारी। मुद्रास्फीति रक्षित लिखत थोक मूल्य सूचकांक से जोड़े गए।
अप्रैल 1998 विकास वित्तीय संस्थाओं और बैंकों की भूमिका व कार्यों के सुसंगतिकरण पर सुझावों से भारत में यूनिवर्सल बैंकिंग का रास्ता खुला।
11 दिसंबर 1998 आरबीआई मौद्रिक संग्रहालय वेबसाइट लॉन्च की गई।
20 अप्रैल 1999 अंतरिम चलनिधि समायोजन सुविधा प्रारंभ।
जुलाई 1999 ओटिसी व्युत्पन्नी के रूप में ब्याज दर स्वैप (आईआरएस) और वायदा दर करार (एफआरए) की शुरुआत।
नवंबर 1999 आरबीआई ने भौतिक नकदी पर दबाव कम करने के लिए बेंकों द्वारा डेबिट कार्ड व स्मार्ट कार्ड जारी करने से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए।
1999 ‘विदेशी व्यापार व भुगतान को सगुम करने’ और ‘भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के सुसंगत विकास व अनुरक्षण के लिए’ फेरा (एफईआरए), 1973 के स्थान पर विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 लाया गया। नया अधिनियम सावधि खंड (सनसेट क्लॉज़) के साथ जून 2000 से लागू।
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